नई दिल्ली:
नागरिकता संशोधन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में चर्चा के बाद पास हो गया. इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने रिपीट करने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दी थी. इसका मसौदा दोबारा से तैयार किया गया है. घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में विधेयक को मंजूरी दी गई.
यह विधेयक 2016 में पहली बार पेश किया गया था. असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. उनका कहना है कि यह 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी हो.
नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. विपक्षी पार्टियों के कुछ सदस्यों ने रिपोर्ट में असहमति जताई है.
दिलचस्प है कि BJP की सहयोगी, शिवसेना और जदयू ने भी संसद में विधेयक का विरोध किया है. ऐसे में राज्यसभा में इस विधेयक को पास करना सरकार के लिए चुनौती होगी.