मध्य प्रदेश में इतिहास जल्द ही खुद को दोहराता नजर आएगा। तेजी से बदलते हालात में मध्य प्रदेश में इस बार कमलनाथ सरकार गिर सकती है। 1967 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस सरकार का पराभव कराकर पहली गैरकांग्रेसी सरकार बना दी थी।
वर्तमान में मध्य प्रदेश कांग्रेस पर जिस तरह संकट के बादल मंडरा रहे हैं उससे यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं रह जाता कि ज्योतिरादित्य सिंधिया सूबे के नये मुख्यमंत्री हो सकते हैं। सिंधिया के साथ 30 पूरी तरह से प्रतिबद्ध विधायक हैं। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के लिए महज 5 विधायकों की जरूरत है।
सूत्रों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी कमलनाथ सरकार के पराभव के बाद अपनी सरकार बनाने की जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति पर ही काम कर रही है। सदन में कांग्रेस के 114, भाजपा के 109, बसपा के 2 और पांच अन्य विधायक हैं। माना जाता है कि बसपा के और अन्य विधायक उसी के साथ रहेंगे जिसकी सरकार रहेगी।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावती तेवर
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावती तेवरों की बात सियासी हलकों में किसी से छिपी नहीं है। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य के बीच खींचतान का ही नतीजा था कि कमलनाथ को आनन-फानन में प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा। सूत्रों की मानें तो ज्योतिरादित्य अपने पिता माधव राव सिंधिया की मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस को पुनर्जीवित करने को लेकर गंभीर हैं। 1996 में माधव राव सिंधिया ने हवाला घोटाले में नाम आने के बाद कांग्रेस से बगावत करके अलग पार्टी बनाई। इसी पार्टी के बैनर पर ग्वालियर से चुनाव जीता।
1957 में विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्र से नाराज होकर उन्होंने बगावत की। कांग्रेस की सरकार गिराकर मध्य प्रदेश में पहली गैरकांग्रेस की सरकार बना ली। इसके बाद जनसंघ के टिकट व स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में दो जगह से चुनाव लड़ीं और दोनो जगह से जीतीं।
बाद में वह जनसंघ में पूरी तरह से आ गईं। माधव राव सिंधिया भी पहला चुनाव जनसंघ के टिकट पर जीते थे। बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। गौरतलब है कि राजस्थान की मुख्यमंत्री रही वसुंधराराजे सिंधिया और यशोधरा राजे भाजपा में ही है। ये दोनों ज्योतिरादित्य की बुआएं हैं। हाल ही में ज्योतिरादित्य ने अपनी बुआ यशोधरा के साथ ट्रेन में यात्रा भी की है