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क्या मध्यप्रदेश में सफल होगा सोनिया गांधी का यह फॉर्मूला? इन चार लोगों की वजह से उठ रहे सवाल

समन्वय समिति में सात लोगों को मिली है जगह

भोपाल/ मध्यप्रदेश में जब से कांग्रेस सत्ता में आई है। उसके बाद से ही संगठन और सरकार में तालमेल बैठाने की कोशिश हो रही है। मगर नेताओं की गुटबाजी की वजह से आज तक यह सफल नहीं हो पाया है। ऐसे में कांग्रेस शासित प्रदेशों के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया ने एक नया फॉर्मूला अपनाया है। इसके जरिए सरकार और संगठन में समन्वय बनाने की कोशिश की है।

दरअसल, सोनिया गांधी ने मध्यप्रदेश में सरकार और संगठन के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए एक कमिटी गठित की है। इस कमिटी में सात लोगों को जगह मिली है। कमिटी का अध्यक्ष कांग्रेस कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया को बनाया है। इसके साथ ही सीएम कमलनाथ, दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मंत्री जीतू पटवारी, पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव औऱ मीनाक्षी नटराजन हैं। इनके कंधों पर सरकार और संगठन के बीच समन्वय स्थापित करने की है।

चारों के हैं अलग-अलग गुट
मध्यप्रदेश में कांग्रेस कई गुटों में बंटी है। हर गुट पॉवर कॉरिडोर में अपनी स्थिति मजबूत चाहती हैं। ऐसे में सबके तकरार भी सामने आते रहते हैं। दरअसल, प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया का एक अलग खेमा है। सीएम कमलनाथ का गुट भी अलग है। वहीं दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी अपने अलग-अलग गुट हैं। सरकार और संगठन में चारों पकड़ चाहते हैं। इस वजह बीच-बीच में खटपट सामने आते रहती है।

दीपक बावरिया
सोनिया गांधी द्वारा गठित कमिटी के मुखिया दीपक बावरिया है। दीपक बावरिया की पकड़ दिल्ली दरबार में मजबूत है और सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं। प्रदेश में सार्वजनिक रूप से वह अपने इरादे स्पष्ट करते रहे हैं। प्रदेश प्रभारी रहते हुए वह पार्टी के अलग-अलग गुट को साथ लाने में कामयाब नहीं हुए। सियासी जानकारों के बीच चर्चा यह भी है कि सीएम कमलनाथ के साथ ही हाल के दिनों में उनकी ठन गई। वजह निगम और मंडलों में नियुक्तियों को लेकर भी है। ऐसे में सरकार और संगठन के बीच में समन्वय स्थापित करना उनके लिए आसान नहीं हैं।

सीएम कमलनाथ
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के साथ-साथ संगठन के भी मुखिया है। गुटबाजी की वजह से वह विरोधियों से ज्यादा अपने ही उनके लिए मुसीबत खड़ी करते हैं। कभी सरकार के खिलाफ कोई विधायक उतर आता है तो कभी मंत्री कहने लगते हैं कि अफसर हमारी सुनते नहीं। यहीं नहीं इनके गुट के लोग दूसरे खेमे के नेताओं को टारगेट करते हैं। समन्वय समिति के ही सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया की बेरुखी सरकार से कई बार सुर्खियां बनीं। ऐसे में दूसरे खेमे के साथ तालमेल बैठाना सीएम के लिए आसान नहीं हैं। क्यों सरकार गठन के एक साल बीत जाने के बाद भी वह पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाए हैं।

दिग्विजय सिंह
मध्यप्रदेश कांग्रेस में दिग्विजय सिंह का एक अलग गुट है। उनके ऊपर प्रदेश के मंत्री यह आरोप लगाते रहे हैं कि पर्दे के पीछे से सरकार वहीं चला रहे हैं। दिग्विजय सिंह बीच-बीच में चिट्ठी लिखकर सरकार को नसीहत भी देते रहते हैं। ऐसे में कयास लगाए जाते हैं कि सीएम के साथ उनका कम्यूनिकेशन गैप है। ऐसे में दिग्विजय सिंह के लिए पहली चुनौती तो समन्वय समिति के बाकी दिग्गज नेताओं के बीच ही समन्वय स्थापित करने की होगी। क्योंकि समिति में शामिल चारों नेताओं की राह अलग-अलग है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया
कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश में पावर के लिए लगातार दिल्ली से लेकर भोपाल तक संघर्ष कर रहे हैं। मध्यप्रदेश कांग्रेस का कोई खेमा नहीं चाहता कि सिंधिया को कोई बड़ी जिम्मेदारी मिले। ऐसे में नए समीकरण के जरिए प्रदेश में वह सभी को साधने में लगे हैं। दूसरे गुट के नेताओं के साथ भी वह हालिया भोपाल दौरे के दौरान सक्रिय रहे और विरोधियों को भी साधने में लगे रहे।

क्या सफल होगा सोनिया गांधी का फॉर्मूला
ऐसे में सवाल है कि सोनिया गांधी का यह फॉर्मूला क्या मध्यप्रदेश में कामयाब होगा। क्योंकि कमिटी में जिन चार नेताओं को उन्होंने समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी है, उनके बीच आपसी समन्वय की कमी है। ऐसे में पहले तो इन नेताओं के बीच तालमेल सही हो। तभी मध्यप्रदेश में सोनिया गांधी का यह फॉर्मूला सफल होगा। अब सभी को इंतजार समन्वय समिति की पहली बैठक की है, जिससे बहुत कुछ साफ होगा।

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