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क्या sc/st एक्ट के बाद आरक्षण के मुद्दे पर फिर फंसने वाली है बीजेपी

आरक्षण (reservation) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बड़ा फैसला है. इस फैसले ने आरक्षण को लेकर बहस को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है…

आरक्षण (Reservation) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक बेहद अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि सरकारी नौकरियों के प्रमोशन (promotion) में रिजर्वेशन किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार (fundamental right) नहीं है. जस्टिस एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की बेंच ने कहा है कि नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारें प्रतिबद्ध नहीं हैं. यहां तक की कोर्ट भी राज्य सरकारों को भी आरक्षण देने का कोई निर्देश नहीं दे सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ‘इस बात में कोई शक नहीं है कि राज्य सरकार आरक्षण देने को बाध्य नहीं है. ऐसा कोई मौलिक अधिकार नहीं है कि कोई व्यक्ति सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण की मांग रखे.’ सुप्रीम कोर्ट का ये बड़ा फैसला है. जिसने आरक्षण को लेकर बहस को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सोमवार को राहुल गांधी ने बड़ा बयान दिया. राहुल गांधी ने आरक्षण के मुद्दे को लपकते हुए कह डाला कि बीजेपी और संघ आरक्षण को खत्म करना चाहती है. लेकिन कांग्रेस ऐसा होने नहीं देगी.

आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी को फिर से घेरने की कोशिश

राहुल गांधी ने कहा कि ‘बीजेपी और संघ की विचारधारा आरक्षण के खिलाफ है. वो किसी न किसी तरह आरक्षण को हिंदुस्तान के संविधान से निकालना चाहते हैं. कोशिशें होती रहती हैं. ये चाहते हैं कि एससी-एसटी और ओबीसी कभी आगे आने न पाएं. आज ये कहा है कि आरक्षण अधिकार ही नहीं है. ये इनकी रणनीति है और ये इनका आरक्षण को रद्द करने का तरीका है. ये आरएसएस और बीजेपी वाले जितनी कोशिश कर लें. हम आरक्षण को कभी नहीं मिटने देंगे. क्योंकि आरक्षण संविधान का सीधा हिस्सा है. स्थानों को खत्म किया जा रहा है. ज्यूडिशियरी पर दबाव बनाया जा रहा है.’
एससी एसटी के साथ ओबीसी आरक्षण को लेकर राहुल गांधी ने बड़ा बयान दे डाला है. ये एक बहुत बड़े वर्ग को संदेश देने वाला बयान है. राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दबे-छिपे शब्दों में बीजेपी के दबाव में दिया फैसला बता दिया. कांग्रेस इस मुद्दे को बड़ा बनाने की कोशिश में है. ताकि आरक्षण के मसले पर बीजेपी को घेरा जाए और एक बहुत बड़े वर्ग के बीच फिर से अपनी पैठ बनाने की कोशिश की जाए.

सवाल है कि क्या बीजेपी के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर एकजुट हुए वोटबैंक को आरक्षण की सेंध लगाकर कांग्रेस उसे तोड़ना चाहती है. क्योंकि आरक्षण एक ऐसा मसला है, जिसपर एससी एसटी और ओबीसी वोटर्स का वोट निर्भर करता है.

आरक्षण के मसले पर फंसती रही है बीजेपी

ठीक इसी तरह का मामला उस वक्त सामने आया था, जब 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट को लेकर फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस एक्ट के कुछ प्रावधान कमजोर कर दिए थे. सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट के गलत इस्तेमाल का हवाला देकर ऐसे मामलों में बिना जांच किए गिरफ्तारी और अग्रिम जमानत जैसे सख्त प्रावधानों को खत्म कर दिया था.
उस वक्त भी कांग्रेस के साथ विपक्षी पार्टियों ने इस मसले पर बीजेपी पर जोरदार हमले किए थे. आखिरकार मोदी सरकार को इसके खिलाफ अध्यादेश लाना पड़ा था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्रभावी हो गया और एससी एसटी एक्ट अपने मूल स्वरूप में वापस आ सका.
कांग्रेस को एक बार फिर आरक्षण के मसले पर बीजेपी पर उसी तरह का हमला करने का मौका मिल गया है. कांग्रेस फिर से चाहेगी कि इस मुद्दे को बड़ा बनाकर मोदी सरकार को घेरा जा सके और सरकार की छवि एंटी एससी-एसटी और ओबीसी की बनाई जाए.
आरक्षण का मुद्दा अब तेजी पकड़ेगा

राहुल गांधी के आरक्षण पर दिए बयान के बाद लोकसभा में भी ये मुद्दा उठाया गया. सरकार में साझीदार लोकजनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं है. समाजवादी पार्टी की तरफ से रामगोपाल यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला संविधान के खिलाफ है. अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने भी फैसले के खिलाफ असहमति दिखाई है. संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को कहना पड़ा कि ये संवेदनशील मुद्दा है. इस बारे में सामाजिक कल्याण मंत्री जल्दी ही प्रतिक्रिया देंगे.

एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी बीजेपी को दलितों की नाराजगी झेलनी पड़ी थी
बीजेपी के लिए आरक्षण का मसला हमेशा से फंसने वाला रहा है. ऐसे कई मौके आए हैं जब आरक्षण पर संघ या बीजेपी के किसी नेता के बयान की वजह से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है. 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मोहन भागवत का आरक्षण पर दिया बयान, एक ऐसा ही मौका था. हालांकि कई मौकों पर बीजेपी खुद को बचाने में भी कामयाब रही है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर होगी जमकर राजनीति

आरक्षण की राजनीति ऐसी है, जो आमतौर पर क्षेत्रीय दलों की रही है. आरक्षण के मुद्दे का सबसे ज्यादा फायदा इन्हीं पार्टियों ने उठाया है. लेकिन अगर कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी आरक्षण को बड़ा सवाल बनाते हुए एससी एसटी और ओबीसी वर्ग तक पहुंच बनाने में कामयाब हो जाती है तो ये बड़ी बात होगी.
राजनीतिक विश्लेषक और दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर सुबोध कुमार कहते हैं कि ‘बात कांग्रेस का मुद्दा बनाने की नहीं है. इस मुद्दे पर बीजेपी को भी सामने आना चाहिए. बीजेपी को बताना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट का यै फैसला संवैधानिक नहीं है. लेकिन बीजेपी शांत होकर बैठी है. एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बीजेपी पहले वैसे ही शांत बैठी थी. लेकिन जब जनता सड़कों पर उतरी, आंदोलन हुए और विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया तब जाकर वो संशोधन बिल लेकर आए. बीजेपी के इसी रवैये की वजह से उसके प्रति प्रति संदेह पैदा होता है. अगर कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर सड़क पर उतर जाएगी तो उसे निश्चित तौर पर फायदा मिलेगा.’
हालांकि एससी एसटी और ओबीसी का इतना बड़ा मतदाता वर्ग है कि बीजेपी निश्चित ही इनसे नाराजगी मोल लेने का जोखिम नहीं लेगी. अगर मामला उछलता है तो बीजेपी को इस मतदाता वर्ग के भीतर विश्वास पैदा करना होगा कि वो उनके हितों के साथ समझौता नहीं होने देंगे. हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर जात-पात से उठकर बीजेपी ने जो अपना समर्थक वर्ग तैयार किया है, वो उसे खोना नहीं चाहेगी.
इस मुद्दे पर समाजशास्त्री और दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर सुधीर सिंह कहते हैं कि ‘इसमें बीजेपी और आरएसएस कहां से आई? सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक फैसले के जवाब में दिया है. उस वक्त उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी, जिसने कहा था कि प्रमोशन में हम आरक्षण नहीं देंगे. उसी फैसले की सुप्रीम कोर्ट ने नए सिरे से व्याख्या की है कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. ये संविधान प्रदत्त एक प्रावधान है, जिसे देना या न देना राज्य सरकारों पर निर्भर करता है. एक न्यायिक व्याख्या पर राहुल गांधी राजनीति कर रहे हैं. ये बिल्कुल बेकार की बात है. ये बात भी ध्यान रखनी चाहिए की जाति की राजनीति ज्यादा दिन नहीं चलती. और इसमें मोदी सरकार का क्या है, ये फैसला तो सुप्रीम कोर्ट का है.’

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