ग्वालियर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग को लेकर बड़ा आदेश दिया है। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि यदि रंजिश का कारण जातिगत नहीं है तो ऐसे विवादों में पुलिस एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध दर्ज ना करें। बता दें कि पुलिस हर उस मामले में एससी-एसटी एक्ट लगा देती है, जिसमें पीड़ित अनुसूचित जाति जनजाति से हो। विवाद चाहे मोहल्ला पड़ौस का हो, पार्किंग का या संपत्ति का, पुलिस ना केवल एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध दर्ज करती है बल्कि विवेचना में एससी-एसटी एक्ट को प्रमाणित भी बताती है।
ग्वालियर के घाटमपुर इलाके के रहने वाले राजेश सिंह भदौरिया का पड़ोस में रहने वाले, दलित परिवार से विवाद चल रहा था। जिसमें एक दिन दोनों पक्षों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया, जिसके फलस्वरुप दलित परिवार ने राजेश भदौरिया और उनके परिजनों के खिलाफ थाटीपुर थाने में एफआईआर दर्ज करा दी लेकिन एफआईआर में दलित परिवार ने जातिगत अपमान का कोई आरोप नहीं लगाया। यहां तक की पुलिस ने जब उनके बयान दर्ज किए तब भी उन्होंने इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया लेकिन मामले में पुलिस अधिकारियों ने राजेश भदौरिया सहित परिजन पर एफआईआर में एससी-एसटी एक्ट के तहत धाराएं बढ़ा दीं।
इसके बाद एक्ट में बढ़ी धाराओं को लेकर राजेश ने ग्वालियर खंडपीठ में एक याचिका दायर की।मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि इस तरह के मामलों में एससी-एसटी एक्ट न लगाया जाए। वहीं याचिकाकर्ता अवदेश सिंह भदौरिया का कहना है कि इस आदेश के बाद एससी-एसटी एक्ट के मामले में गिरावट आएगी। साथ ही इससे समाज में समरसता बरकरार रहेगी और जो मामले वाजिब हैं उन पर एससी एसटी एक्ट दर्ज किए जाएंगे।
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