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भारी पड़ सकती है बदली हुई राजनीति राज में काज भूली कमलनाथ की टीम

   

भोपाल. विधानसभा चुनाव में मिली जीत का आधार कांग्रेस का 15 साल का जमीनी संघर्ष को माना जाता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ, सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समन्वय की भूमिका भी अहम रही है। सरकार बनते ही कांग्रेस राज करने के मूड में आ गई। नतीजन, पार्टी का विधानसभा विन फॉर्मूला लोकसभा चुनाव में नहीं दिख रहा है। समन्वय सार्वजनिक मंच पर तो कभी चारदीवारी के पीछे तार-तार हो रहा है। क्षत्रप बंटे-बंटे से हैं। इससे कांग्रेस के 20 से ज्यादा सीटें जीतने के सपने की राह में चुनौतियां बढ़ गई हैं। भाजपा के पास बड़े अंतर से जीतीं लोकसभा की 26 और कांग्रेस के पास सिर्फ तीन सीटें हैं। 
– सिर्फ पांच सीटों का फासला
भाजपा को कमजोर नहीं माना जा सकता, क्योंकि विधानसभा चुनाव में उसे कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले हैं। कांग्रेस के 40.09 फीसदी वोट हैं। भाजपा को उससे 0.2 फीसदी ज्यादा 41.01 वोट मिले हैं। इसे लोकसभा क्षेत्र के हिसाब से देखें तो कांग्रेस 12 सीटों पर बढ़त बना पाई है। कांग्रेस को बमुश्किल 114 विधायकों के साथ सत्ता हासिल हुई। भाजपा उससे महज पांच सीट पीछे है।
– कमलनाथ सरकार चलाने में व्यस्त 
खाली खजाने से वचन पूरे करने में लगे कमलनाथ मंत्रालय तक सीमित हो गए हैं। उनका अधिकांश वक्त प्रशासनिक जमावट में गुजर रहा है। लोकसभा चुनाव की रणनीति और कामकाज पीसीसी से वल्लभ भवन व मुख्यमंत्री निवास में शिफ्ट हो गया है। वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते कार्यकर्ताओं से मिलते हैं, लेकिन उनकी नपी-तुली बातचीत के चलते लोग मन की बात कहने में असहज महसूस कर रहे हैं।

– उत्तर प्रदेश पहुंच गए सिंधिया
सिंधिया का सरकार में अपने आठ से ज्यादा मंत्रियों के दम पर दखल हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश की कमान सौंपकर रवाना कर दिया। उनके संसदीय क्षेत्र गुना-ग्वालियर में उनकी पत्नी प्रियदर्शनीराजे उनकी कमी पूरी करने की कोशिश कर रही हैं। माना जा रहा है कि सिंधिया को बाहर भेजने का फैसला लोकसभा चुनाव में भारी पड़ सकता है। सिंधिया ने विधानसभा चुनाव में 100 से ज्यादा रैलियां की थीं।
– दिग्विजय की बयानबाजी भी भारी
दिग्विजय सभी कार्यकर्ताओं को जानने के साथ जमीनी पकड़ रखने वाले नेता हैं। पिछले चुनाव की तरह उनके पास समन्वय का काम जिम्मा नहीं है। उनकी जगह बावरिया को बैठा दिया गया है। अब दिग्विजय अपनी बयानबाजी से भाजपा के निशाने पर हैं। एयर स्ट्राइक पर की गई बयानबाजी से मुश्किल में दिख रहे हैं। संगठन भी उनसे नाराज दिखाई दे रहा है। पिछले दिनों उन्होंने गृहमंत्री बाला बच्चन और वन मंत्री उमंग सिंघार को डांटकर बखेड़ा खड़ा कर दिया था। मामला राहुल के दखल के बाद शांत हुआ था।
– औंधे मुंह गिरे दिग्गज
कांग्रेस के दिग्गज नेता विधानसभा चुनाव में औंधे मुंह गिर गए। जनता ने उनकी अजेय छवि को भी तार-तार कर दिया। अब वे लोकसभा चुनाव में अपने पुनर्वास का रास्ता तलाश रहे हैं। अजय सिंह, अरुण यादव, सुरेश पचौरी, रामनिवास रावत, राजेंद्र सिंह, मुकेश नायक और सुंदरलाल तिवारी जैसे दिग्गज अपनी सीट तक नहीं बचा पाए। कांतिलाल भूरिया अपने बेटे विक्रांत को भी चुनाव नहीं जिता पाए।
– विधायकों की नाराजगी से बढ़ीं मुश्किलें
मंत्री नहीं बनाए जाने से वरिष्ठ विधायक केपी सिंह, बिसाहूलाल सिंह, राज्यवर्धन सिंह और एदल सिंह कंषाना नाराज हैं। हीरा अलावा जयस का झंडा उठाकर तोल-मोल कर रहे हैं। समर्थन दे रहे निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा अपनी पत्नी को लोकसभा चुनाव का टिकट न देने की बात पर आंखें दिखा रहे हैं। वहीं, बसपा की रामबाई मंत्री न बनाने पर देख लेने की धमकी दे रही हैं। 
– प्रदेश की राजनीति में मिसफिट बावरिया 
कांग्रेस प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया यहां की राजनीति में मिसफिट दिखाई देते हैं। उनके कई बयान विवादित रहे और कई फैसलों को वापस लेना पड़ा। बैठकों में नेताओं से उनकी भिडं़त तक हो चुकी है। वे सार्वजनिक तौर पर दुखी होकर कह चुके हैं कि वापस गुजरात जाना चाहते हैं।

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