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भाजपा के किले ढहाने कांग्रेस बिछा रही बिसात

   

मिशन लोकसभा : भोपाल, इंदौर और विदिशा में 1984 के बाद नहीं मिली जीत
सरप्राइज फैक्टर पर हो रहा मंथन, राहुल कार्यालय भी एक्टिव
 

 कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भाजपा के तीन किले ढहाने के लिए नया फॉर्मूला ला रही है। मध्यप्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार आई है, इसलिए पार्टी ने उन सीटों पर भी फोकस करना तय किया है, जो दशकों से चुनौती बनी हुई हैं। इसमें भोपाल, इंदौर और विदिशा को चुना है। यहां 1984 के बाद से भाजपा का परचम लहरा रहा है। कांग्रेस का मानना है कि ये तीनों सीटें छीन ली तो लोकसभा में उसकी बड़ी जीत होगी। साथ ही मुख्यमंत्री कमलनाथ इस रणनीति के जरिए प्रदेश को भाजपा के कब्जे से पूरी तरह बाहर लाने की ब्रांडिंग भी कर पाएंगे। इन सीटों पर नाम तय करने के लिए वरिष्ठ नेताओं में बैठकों का दौर चल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यहां की रिपोर्ट ली है। दिल्ली में इस महीने के अंत में इस मुद्दे को लेकर बैठक होगी। 
– ऐसे समझिए कहां-कौनसा फैक्टर
भोपाल : भोपाल सीट जीतना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। यह 35 साल से भाजपा के पास है। भाजपा यहां जनसंघ सहित नौ बार चुनाव जीती है, जबकि कांग्रेस महज पांच बार जीती है। आखिरी बार 1984 में कांग्रेस के केएन प्रधान ने जीत दर्ज कराई थी। प्रधान के बाद भाजपा से सुशीलचंद्र वर्मा ने तीन बार भाजपा का परचम लहराया। फिर उमा भारती और कैलाश जोशी यहां से सांसद रहे। अभी आलोक संजर सांसद हैं। इस बार कांग्रेस के पास भोपाल से एक दर्जन दावेदार हैं, लेकिन इनमें सर्वमान्य कोई नहीं है। इसी कारण कांग्रेस ने भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर पर डोरे डाले हैं, लेकिन यह प्रयास कितना सफल होगा इसका जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है। पिछली बार यहां से पीसी शर्मा ने चुनाव लड़ा था, पर अब वे प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी यहां से 1999 में चुनाव हार चुके हैं। हाल ही में विधानसभा चुनाव भी हारे हैं। इस कारण उनकी बजाए उनके गुट से तीन अन्य नेता तगड़े दावेदार हैं। कमलनाथ भोपाल को लेकर वरिष्ठ नेताओं से दो बार विचार-विमर्श कर चुके हैं। इसमें कांग्रेस सरप्राइज फैक्टर पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।
इंदौर : यहां 1984 में आखिरी बार कांग्रेस को प्रकाशचंद्र सेठी ने जीत का स्वाद चखाया था। इसके बाद 35 साल से कांग्रेस यहां नहीं जीत पाई। 1984 के बाद 1989 में जब भाजपा की सुमित्रा महाजन ने इस सीट पर कब्जा किया, तो 2014 तक उनकी ही जीत होती आई है। सुमित्रा के लोकसभा अध्यक्ष होने के कारण राहुल गांधी का फोकस भी इस सीट पर है, इसलिए उनके स्तर पर यहां के दावेदारों के नाम मांगे गए हैं। सुमित्रा ने इस बार भी इंदौर की चाबी अपने पास होने का दावा किया है, लेकिन सूबे में कांग्रेस सरकार और भाजपा में ताई-भाई की लड़ाई के बीच कांग्रेस इस किले को भेदने की रणनीति बनाने में जुटी है। सुमित्रा से प्रकाशचंद्र सेठी, मधुकर वर्मा और महेश जोशी तक मात खा चुके हैं। पिछली दो बार से सत्यनारायण पटेल हार रहे हैं। वे 2018 का विधानसभा चुनाव भी हारे हैं। इस बार कांग्रेस के सामने आधा दर्जन दावेदार मजबूती से ताल ठोंक रहे हैं। कांग्रेस की मंशा इंदौर सीट पर बड़ा चेहरा लाने की है। इसमें भी सरप्राइज एलीमेंट आ सकता है। कमलनाथ इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ बैठक कर चुके हैं।
विदिशा : वर्तमान में केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की संसदीय सीट विदिशा पर भी आखिरी बार 1984 में कांग्रेस ने जीत देखी थी। इसके बाद 1989 में यहां भाजपा का ध्वज लहराया, तो अब तक है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक 1991 में यहां से चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यहां से चार बार सांसद रहे। पिछली दो बार से यहां से सुषमा स्वराज सांसद हैं। पिछली बार दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह यहां चुनाव हारे थे। इस बार भी लक्ष्मण विदिशा और राजगढ़ दोनों सीट से दावेदार हैं, लेकिन सरकार में विधायकों के संख्या बल के कारण दिक्कत है। लक्ष्मण एकमात्र अपवाद हो सकते हैं। इसके अलावा राजकुमार पटेल भी यहां से दावेदार हैं। केंद्रीय मंत्री की सीट होने के कारण इस पर भी कांग्रेस अध्यक्ष का फोकस है, इसलिए इन सीटों का गणित भी राहुल कार्यालय ने पिछले दिनों बुलाया था। इसमें संभावित दावेदारों से लेकर जातिगत फैक्टर तक पर रिपोर्ट ली गई। इस बार कांग्रेस किसी भी सीट पर वॉकओवर नहीं देना चाहती, इसलिए यहां भी चेहरे को लेकर खूब मशक्कत हो रही है।

– कांग्रेस के किलों पर भाजपा की नजर
इस बार भाजपा भी कांग्रेस के गढ़ छिंदवाड़ा, गुना और रतलाम-झाबुआ को फोकस कर रही है। गुना और छिंदवाड़ा में भाजपा की चुनौती लगातार बढ़ती जा रही है। पिछली बार गुना सीट पर भाजपा ने काफी जोर लगाया था, जिसके चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया की जीत का अंतर पिछली जीतों के मुकाबले बेहद घट गया था। इस कारण कांग्रेस इस बार अपने किले में सेंध का जवाब भाजपा के गढ़ों को हिलाकर देना चाहती है, इसलिए इन सीटों के नाम तय करने में कई पहलू कारगर होंगे। इसमें कमलनाथ के स्तर पर सर्वे के अलावा लोकसभा प्रभारियों की रिपोर्ट व पार्टी और राहुल कार्यालय के अपने फीडबैक भी शामिल हैं।
– कमलनाथ के यहां दावेदारों की भीड़
कमलनाथ के यहां लोकसभा चुनाव के लिए दावेदारों की भीड़ बढ़ रही है। अनेक हारे विधायकों ने कमलनाथ को दावेदारी पेश की है। बीते दिनों हारे विधायक निशंक जैन ने भी सागर सीट से चुनाव लडऩे के लिए कमलनाथ से मिलकर दावा पेश किया है। उनके अलावा अरुण यादव, मुकेश नायक, सुंदरलाल तिवारी, रामनिवास रावत सहित आधा दर्जन हारे विधायक दावेदार हैं।

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