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फिर गरमाई प्रदेश की सियासत, सिंधिया खेमे के मंत्री ने कहा- भरोसा नहीं कब तक रहेंगे हम

   

मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार अल्पमत में है। निर्दलीय और बसपा-सपा के सहारे सरकार चल रही है।

सिंधिया और कमल नाथ खेमे के मंत्रियों में पहले भी खींचतान की खबरें आ चुकी हैं।

भोपाल. मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है इसका अक और उदाहरण सामने आया है। मध्यप्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री प्रभुराम चौधरी के एक बयान ने एक बार फिर से सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। प्रभुराम चौधरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के मंत्री माने जाते हैं। सिंधिया खेमे और कमल नाथ खेमे के मंत्रियों के बीच पहले भी नाराजगी की कई खबरें आ चुकी हैं। अब प्रभुराम चौधरी के बयान के बाद एक बार फिर से सरकार की स्थितरता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

 
छलका मंत्री का दर्द
सिंधिया समर्थक एक और मंत्री का शुक्रवार को दर्द छलक गया। प्रभुराम चौधरी भोपाल स्थित प्रशासनिक अकादमी में उमंग मॉड्यूल मोबाइल एप लांच कार्यक्रम में पहुंचे थे। यहां उन्होंने अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा- मेरा भरोसा नहीं है कि मैं कब तक रहूं…बाकियों का भी भरोसा नहीं है। आप लोगों को तो विभाग में ही आगे तक काम करना है।

बाद में दी सफाई
प्रभुराम चौधरी ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा- मेरे कहने का मतलब यह था कि राजनीति में कोई स्थाई नहीं होता। मंत्री पांच साल रहेंगे, लेकिन विभागीय अधिकारी तो विभाग में हमेशा रहेंगे तो उन्हें तो वहीं काम करना है। सिंधिया खेमे के कई मंत्री पहले भी सवाल उठा चुके हैं।
कैबिनेट बैठक में हुई थी बहस
हाल ही में खबरें आई थीं कि सिंधिया खेमे के मंत्री प्रद्युन सिंह तोमर और कमलनाथ खेमे के मंत्री सुखदेव पांसे के बीच कैबिनेट बैठक में बहस की खबरें आईं थी। प्रद्युन सिंह तोमर ने कहा था कि मुख्यमंत्री हमारी बात नहीं सुनते हैं। वहीं, सिंधिया खेमे के मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, इमरती देवी आरोप लगा चुकी हैं कि उनके विभाग के अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते हैं। गोविंद सिंह राजपूत ने सीहोर में एक तलसीलदार को निलंबित करने का निर्देश कलेक्टर को दिया था। जिसके बाद कलेक्टर ने कहा था कि तहसीलदार को निलंबित करने का अधिकार मेरे पास नहीं बल्कि राज्य सरकार के पास है।
अल्पमत में है सरकार
मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार अल्पमत में है। मध्यप्रदेश की विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं तो भाजपा के पास 109 जबकि बसपा के दो, सपा के एक और 4 निर्दलीय विधायक है। भाजपा विधायक जीएस डामोर झाबुआ-रतलाम संसदीय सीट से चुनाव जीतने के बाद विधानसभा सदस्य से इस्तीफा दे चुके हैं।

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