सहयोगियों से भले ही बीजेपी के रिश्ते खट्टे मीठे रहे हों, लेकिन आम चुनावों से पहले पार्टी ने शिवसेना को साथ लाकर साफ कर दिया है कि एनडीए का कुनबा छोटा नहीं होगा.
लोकसभा चुनाव से गठबंधनों के बनने और बिगड़ने का दौर जारी है. यूपीए जहां अपने गठबंधन को अंतिम रूप नहीं दे पाया है. वहीं बीजेपी गठबंधन बनाने के अंतिम दौर में है. गठबंधन में बीजेपी ने अपने तीन सबसे बड़े सहयोगियों जेडीयू और शिवसेना और एआईएडीएमके से गठबंधन का गणित तय कर लिया है. बिहार में जहां एनडीए में नीतीश कुमार की जेडीयू और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी शामिल है.वहीं, लोकसभा सीटो के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अपना दल और सुहेलदेव समाज पार्टी के साथ बीजेपी गठबंधन में है. लेकिन यहां अभी तक सीटों पर फैसला नहीं हो पाया है. सुहेलदेव समाज पार्टी के नेता और राज्य सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर रोज नया बयान देकर गठबंधन में मुश्किल खड़ी करते नजर आ रहे हैं.कुछ यही हाल केंद्रीय मंत्री और अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल का है. पंजाब में बीजेपी का अकाली दल के साथ गठबंधन करीब-करीब तय है.राज्यों में अलग है एनडीए का गणित
एनडीए को राज्यवार देखे तो वर्तमान में करीब 40 पार्टियां इसका हिस्सा है. बीजेपी सबके लिए लोकसभा में सीटें छोड़ेगी ऐसा कहना मुश्किल है, क्योंकि 40 दलों के इस आंकड़े में कुछ राजनीतिक दल तो ऐसे हैं जो अपने राज्य में एक या दो विधानसभा सीट ही जीत सके है. लेकिन राज्य में सरकार चलाने के लिए उनका साथ रहना जरूरी है.दक्षिण में विस्तार की राह खोज रही बीजेपी को तमिलनाडु में भले ही एआईएडीएमके का साथ मिल गया हो, लेकिन चंद्रबाबू नायडू के साथ छोड़ने के बाद पार्टी आंध्र और तेलंगाना दोनों में अकेले चुनाव लड़ती दिख रही है.तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव और बीजेपी के साथ होने की अटकलें लगती रहती है, लेकिन अबतक जो खबरें आ रही है. उसमें बीजेपी अकेले ही चुनावी समर में उतरती दिख रही है. केरल में अपना विस्तार देख रही बीजेपी को भले ही कोई साथी नहीं मिल रहा है, लेकिन सबरीमाला के बाद वह स्थिति अकेले ही मजबूत करने में लगी है.ओडिशा में भी पार्टी अकेले चुनाव लड़ने में फायदा देख रही है. हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश ,जम्मू कश्मीर, राजस्थान, उत्तराखंड, दिल्ली ये ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी को किसी के साथ की जरुरत ही नहीं है.राज्य सरकार में साथ लेकिन आम चुनाव में नहीं
हरियाणा में अकाली दल, त्रिपुरा में आईपीएफटी, पुड्डुचेरी में एआईएनआर कांग्रेस, गोवा में एमजीपी और जीएफपी, कर्नाटक में केपीजे, मणिपुर में एनपीएफ, एनपीपी, लोकजनशक्ति पार्टी, अरुणाचल प्रदेश में एनपीपी, असम में बीपीएफ ऐसे सहयोगी दल है, जिन्हें बीजेपी लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं देना चाहेगी.2014 में 30 दलों से बना था एनडीए
बात करें 2014 लोकसभा चुनाव की तो उस समय एनडीए में कुल तीस दल थे. इनमें पांच दलों के लिए बीजेपी ने कोई सीट नहीं छोड़ी थी. बीजेपी 2014 में लोकसभा की कुल 543 में 426 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पार्टी ने आंध्र प्रदेश में 30 सीटें टीडीपी के लिए छोड़ी थी यानी गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें.महाराष्ट्र मे शिवसेना के लिए 20 और छोटे सहयोगी दलों के लिए चार सीटें छोड़ी थी. बिहार में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के लिए सात और उपेंद्र कुशवाहा की लोकसमता पार्टी के लिए तीन सीटें छोड़ी थी. चुनाव परिणामों के बाद 18 सीटें जीतकर शिवसेना सबसे बड़ा सहयोगी दल हो गया, जबकि 16 सीटें जीतकर टीडीपी दूसरे नंबर का सहयोगी दल रहा था.तमिलनाडु में 6 दल साथ थे मगर सीट मिली एक
बात करें गठबंधन की संख्या की, तो तमिलनाडु में 2014 में बीजेपी ने डीएमडीके, पीएमके, एमडीएमके, केएमडीके, एनजेपी, आईजेके जैसे 6 दलों के साथ मिलकर गठबंधन बनाया, लेकिन परिणामों पर उसका कोई असर नहीं पड़ा.तमिलनाडु के बाद बीजेपी के पास सबसे ज्यादा सहयोगी दल महाराष्ट्र में थे. पार्टी ने यहां शिवसेना का साथ-साथ आरपीआई, स्वाभिमान पक्ष, राष्ट्रीय समाज पक्ष के लिए भी सीटें छोड़ी थी. बिहार में 2014 के चुनाव में पार्टी का साथ देने वाले उपेंद्र कुशवाहा इस बार विपक्ष में है, जबकि 2014 के चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती नीतीश कुमार इस बार एनडीए का झंडा बुलंद कर रहे हैं.अब इतना बड़ा होगा एनडीए का कुनबा
साफ है 2014 से 2019 आते-आते सहयोगियों से भले ही बीजेपी के रिश्ते खट्टे मीठे रहे हों, लेकिन आम चुनावों से पहले पार्टी ने शिवसेना को साथ लाकर साफ कर दिया है कि एनडीए का कुनबा छोटा नहीं होगा. आंध्र प्रदेश में भले ही टीडीपी का साथ छूट गया हो, लेकिन तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ एनडीए में उसकी कमी पूरी करेगा.बिहार में जहां उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए का साथ छोड़ा, तो पार्टी ने अपने सबसे पूराने साथियों में एक रहे नीतीश कुमार को अपने साथ कर लिया है. पिछले पांच सालों में एनडीए में उत्तर पूर्व में कई छोटे दल शामिल हुए हैं, जिनसे लोकसभा सीटों की संख्या पर मोलभाव जारी है यानी 2019 के चुनाव में एनडीए का कुनबा 2014 से बड़ा होगा.