 
मप्र के मौजूदा राजनीतिक हालात बताते हैं कि 15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस गुटबाजी औऱ कबीलाई कल्चर से बाहर नहीं आ पाई है और सिंधिया इस समय  खुद के सत्ता साकेत में हाशिए पर हैं। उनकी गुना से हुई पराजय ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें कमजोर कर दिया है। 
सिंधिया समर्थक चाहते थे कि मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष पद सिंधिया को मिले ताकि मप्र में सिंधिया का हस्तक्षेप बना रहे, लेकिन कमलनाथ इसके लिए राजी नहीं हैं क्योंकि वे सत्ता का कोई दूसरा केंद्र विकसित नहीं होने देना चाहते हैं।
इधर, लोकसभा में पार्टी की हार के बाद कमलनाथ ने मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन अब वे इस पद पर आदिवासी कार्ड खेलकर सिंधिया को रोकने में लगे हैं और अपने खास समर्थक गृहमंत्री बाला बच्चन या ओमकार मरकाम को पीसीसी चीफ बनाना चाहते हैं। इस मिशन में उन्हें दिग्विजयसिंह का साथ है जो परम्परागत् रूप से सिंधिया राजघराने के विरोधी हैं। समझा जा सकता है कि मप्र की सत्ता से बाहर किए गए सिंधिया को संगठन में भी यहां आसानी से कोई जगह नहीं मिलने वाली है।
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