भोपाल। कांग्रेस सरकार ने किसानों को कर्ज मुक्त बनाने के लिए कर्जमाफी का जो तोहफा दिया है, उससे प्रदेश के 90 हजार किसान महरूम रहेंगे। इन्हें खुद कर्ज चुकाना होगा वरना जमीन गिरवी ही रहेगी। दरअसल, सरकार ने कृषि ऋण माफ करने का फैसला किया है, जबकि इन किसानों ने टर्म लोन लिया है यानी उपकरण खरीदी से अन्य कामों के लिए कर्ज उठाया है।
30 जून 2018 की स्थिति में इन किसानों के ऊपर 38 जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों का लगभग दो हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। कर्ज अदायगी न होने से हालत यह हो गई कि जो बैंक दूसरों को कर्ज देते थे वे खुद कर्जदार हो गए और इसका बोझ इतना बढ़ा कि सरकार को इन्हें बंद करने का फैसला करना पड़ा। इतना ही नहीं, बैंकों के ऊपर जो देनदारी है, उसे चुकाने का भार सरकार को उठाना पड़ा।
सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव केसी गुप्ता का कहना है कि कर्जमाफी अल्पावधि के कृषि ऋण की है और इन किसानों ने मध्यावधि या फिर दीर्घकालीन लोन लिया है, जो कृषि से जुड़े दूसरे कार्यों के लिए दिया जाता है, इसलिए सिद्धांत: ये किसान दायरे में नहीं आएंगे।
प्रदेश में किसानों को खेती के लिए जिला सहकारी केंद्रीय बैंंकों के अलावा जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक कर्ज देते थे। 2009 तक बैंक ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक से कर्ज लेकर किसानों को खूब कर्ज बांटा। 2009 के लोकसभा चुनाव के समय से किसानों ने कर्जमाफी की आस में कर्ज चुकाना बंद कर दिया। यूपीए सरकार की कर्जमाफी और राहत योजना आई तो हजारों किसानों के कर्ज माफ हो गए तो कुछ को राहत राशि भी मिली। इसके बाद बैंक कभी पटरी पर नहीं आ पाया।
बैंक ने कर्ज देना बंद कर दिया पर वसूली जारी रखी। इसके लिए समय-समय पर एकमुश्त समझौता योजना भी लागू की गई यानी मूलधन चुकाओ और ब्याज माफ कराओ। इसका भी कोई खास असर नहीं हुआ। बैंकों का एक लाख आठ हजार किसानों के ऊपर साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज निकल रहा था।
हालत यह हो गई कि बैंक के लिए वेतन बांटना और अन्य खर्च जुटाना भी मुश्किल हो गया। इस स्थिति से बैंक को उबारने के लिए तत्कालीन शिवराज सरकार ने एक बार फिर एकमुश्त समझौता योजना लागू की। इसमें दो या तीन किस्त में मूलधन चुकाने पर ब्याज माफ करने का ऑफर दिया गया। 96 हजार किसानों ने संकल्प पत्र भरकर दिया कि वे योजना में शामिल होंगे पर यह कोरा वादा साबित हुआ।
सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि किसानों की एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन बैंकों के पास गिरवी रखी हैं। वे दूसरे किसी बैंक से कर्ज भी नहीं ले सकते हैं। ब्याज माफी जैसी आकर्षक योजना होने के बावजूद लगभग 18 हजार किसानों ने ही कर्ज चुकाकर ब्याज माफी का लाभ लिया। इन किसानों को उम्मीद थी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कर्जमाफी की घोेषणा का फायदा उन्हें भी मिलेगा पर ऐसा नहीं होगा।
एक तो सरकार का फैसला कृषि ऋण से जुड़ा है और इन किसानों ने मध्यावधि या दीर्घावधि के लिए टर्म लोन यानी कृषि से जुड़े दूसरे कामों के लिए कर्ज लिया है। उधर, बैंेकों को बंद करने का निर्णय भी सरकार कर चुकी है। इसकी प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। अब इन किसानों को कर्ज चुकाना ही होगा वरना कड़ी कार्रवाई भी हो सकती है क्योंकि बैंक का कर्ज चुकाने की गारंटी राज्य सरकार ने नाबार्ड को दी है। नाबार्ड की उधारी 880 करोड़ रुपए से ज्यादा है।
कर्जदार किसान – 90 हजार
मूल कर्ज – 487 करोड़ रुपए
ब्याज – डेढ़ हजार करोड़ रुपए
विदिशा के किसानों पर सर्वाधिक 208 करोड़ का कर्ज
जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की कर्ज की स्थिति को देखा जाए तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक कर्मभूमि रहे विदिशा के सवा आठ हजार से ज्यादा किसानों पर 208 करोड़ रुपए बकाया है। भिंड के 4 हजार 900 किसानों पर 137 करोड़, सागर के साढ़े चार हजार किसानों पर 45 करोड़, सीहोर के 35 सौ से ज्यादा किसानों पर 110 करोड़ और छिंदवाड़ा के डेढ़ हजार किसानों पर 35 करोड़ रुपए का कर्ज है। सबसे कम 17 करोड़ रुपए टीकमगढ़ के नौ सौ किसानों से लेना है।
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