8 दिसंबर से विधानसभा का सत्र प्रस्तावित, शीतकालीन सत्र में लाएंगे अनुपूरक
– बारिश के कहर से बजट-प्रबंधन गड़बड़ाया, केंद्र से भी नहीं मिली कोई राहत
भोपाल। पंद्रह साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार दस महीनों तक आर्थिक संकट से जूझने के बावजूद उबर नहीं पाई है। बारिश के कहर ने वापस सरकार के पूरे बजट प्रबंधन को गड़बड़ा दिया। ऐसे में कमलनाथ सरकार दिसंबर में होने वाले विधानसभा के शीतकालीन सत्र में अब अपना पहला अनुपूरक बजट लाएगी। यह सत्र 8 दिसंबर से प्रस्तावित है। इस अनुपूरक के लिए विभागों ने मांग-प्रस्ताव देना शुरू कर दिया है। केंद्र के मदद न करने के बीच राज्य में बढ़ते खर्चों और चुनावी वादों को पूरा करने के दबाव के कारण कमलनाथ सरकार के लिए आर्थिक प्रबंधन बड़ी चुनौती है।
बजट : यूं आते ही मिली थी चुनौतियां-
दरअसल, कमलनाथ सरकार ने 17 दिसंबर को जब काम सत्ता संभाली थी, तभी आर्थिक आपातकाल के हालात थे। इसलिए सरकार को फरवरी 2019 में पिछली सरकार का 122 करोड़ 21 लाख का अनुपूरक बजट पेश करना पड़ा था। तब, सरकार के सामने लोकसभा चुनाव थे, इसलिए मुख्य बजट लाने की बजाए 89438 करोड़ का लेखानुदान बजट भी पेश किया था।
मांगों को फायनल करने की तैयारी
इसके बाद मानसून सत्र में जुलाई में सरकार ने अपना मुख्य बजट 2.33 लाख करोड़ का पेश किया था। लेकिन, यह नाकाफी साबित हो रहा है। इसलिए अब अनुपूरक बजट की तैयारी शुरू हो गई है। विभागों ने अपनी मांग के प्रस्ताव भेजना शुरू कर दिए हैं। वित्त विभाग ने भी नवंबर के दूसरे सप्ताह में विभागों की मांगों के प्रस्तावों पर पहली बैठक रखना तय कर लिया है। नवंबर अंत तक अनुपूरक की मांगों को फायनल करने की तैयारी है।
बारिश का कहर व कर्ज माफी पर ज्यादा जोर-
कमलनाथ सरकार के पहले अनुपूरक बजट में सबसे ज्यादा मांग बारिश के कहर से हुए नुकसान की भरपाई और कर्ज माफी पर रहेगी। वजह ये कि बारिश के कारण प्रदेश में 17 हजार करोड़ का नुकसान आंका गया है। इसमें 6700 करोड़ रुपए का बोझ सीधे तौर पर राज्य को उठाना है। यह ऐसा नुकसान है, जो सड़कों की मरम्मत और इंफ्रास्ट्रक्चर की नुकसानी को ही पूरा करने में खर्च हो जाएगा। सीएम कमलनाथ ने केदं्र सरकार से आर्थिक मदद मांगी, लेकिन केंद्र ने अब तक कोई मदद नहीं दी। इससे सरकार की परेशानी दोगुनी हो गई है।
बढ़ते खर्च और वादों का बोझ-
सरकार के लिए लगातार बढ़ते खर्च और चुनावी वादों को पूरा करने का दबाव भी चिंता का कारण है। सरकार को कर्मचारियों को तीन फीसदी डीए देना है, जिस पर 900 करोड़ से ज्यादा खर्च आएगा। उस पर बिजली में सबसिडी पर एक हजार करोड़ से ज्यादा का बोझ बढ़ रहा है।
कामों को रोक दिया गया
इसके अलावा ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर को भी पटरी पर लाना है। इन खर्चों के बोझ के कारण फिलहाल नए स्कूल भवन, आंगनवाड़ी भवन और अन्य नए निर्माण कामों को रोक दिया गया है। केवल पूर्व से मंजूर और निर्माणाधीन कामों को ही पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
ये बड़े खर्च जो सामने आए-
– कर्मचारियों को 3 फीसदी डीए देना प्रस्तावित है। इससे 900 करोड़ का बोझ बढ़ेगा।
– 150 यूनिट तक एक रुपए बिजली देने से एक हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ बढ रहा।
– बारिश के कहर के कारण 6700 करोड़ का अतिरिक्त बोझ राज्य पर पड़ा है।
इनका कहना-
पिछली भाजपा सरकार ने मध्यप्रदेश को आर्थिक हादसे की कगार पर ला दिया था, लेकिन पिछले दस महीने से हमारी सरकार ने आर्थिक हालात को संभाला है। केंद्र से भी मदद नहीं की जा रही है, लेकिन राज्य सरकार के प्रयास से अब हालात काफी सुधर गए हैं। कहीं पर भी आर्थिक संकट जैसी स्थिति नहीं है।
– तरुण भनोत, मंत्री, वित्त विभाग, मप्र
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