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आज़ाद इस देश में, आज़ादी के नाम पर, कहें जो हम आज़ाद नहीं  लगे वतनपरस्ती दांव पर- कवयित्री आकांक्षा भटनागर

शीर्षक-आज़ादी”
आज़ाद इस देश में,

आज़ादी के नाम पर,

कहें जो हम आज़ाद नहीं 

लगे वतनपरस्ती दांव पर।

हालात कहीं गंभीर हैं ,आज़ादी की चीर है ,

कहना मत किसी से पर कि तुमको कुछ पीड़ है ।

कहा जो इस देश में डर है किसी बात पर ,

होगा संदेह देशप्रेम पे और कलंक तुम्हारी जात पर ।

मून्द लो आँखे तुम, है देश महान,कहो शान से,

वरना उठेंगे सवाल यही क्या हो तुम पाकिस्तान से।

बढ़ रहा है देश ये बात बस तुम मानलो ,

शक का यहाँ कोई हक़ नहीं तथ्य ये जान लो ।

उठा अगर एक स्वर तुम्हारा ये देश रक्षक आएंगे,

कुचल देंगे ये लोग तुम्हें फिर देश द्रोही ठहराएंगे।

बेरहमी है बढ़ रही साथ देश के उत्थान से ,

बंध पिट रहे कहीं राम-रहीम हर धर्म के अभिमान से।

बता रहा मानव खुदको हर शख्स है इस देश में,

कत्ल हुए हैं कई यहां धर्म बचाव के भेष में ।

कल लोग न जाने कौन थे,धर्म की लाठी थामी थी,

अहिंसा की खातिर जो चली हिंसा की मनमानी थी।

पकड़ के अन्य लोगों को जबरन अल्लाह राम बुलवाया था,

न बोला था कोई अगर तो उसका शीश उड़ाया था।

हक़ नहीं अगर बोलने का तो चुप्पी का ही दे दो तुम,

धर्म हैं सारे एक बराबर समझ के ये भी देखो तुम।

बात छिड़ी जब जन्नत की बस एक शहर को ध्यान किया,

किया विचार कोई मुल्क और तब देशप्रेम को ज्ञात किया।

ले कश्मीर भारत में ख़ुशियों में हम झूल गए,

बही जो वहाँ रक्त की धारा वो देखना ही भूल गए।

उनके हर सुख की चर्चा हम खुद ही सबको बता दिए,

पीड़ा वो कहें कहां से उनके माध्यम सारे हटा दिए।

गर्वित हो ये देश हमसे जब इस ज़मीन को गले लगाते हैं,

दर्द जो हम देखें उनका तो दूसरे मुल्क का कहलाते हैं ।

मना रहे हैं जश्न अगर आज इस आज़ादी को देखकर,

कट रहे हैं सर फिर क्यों उनकी आवाज़ों को रेतकर।

देश ये श्रेष्ठ है शक नहीं इस बात पर,

मगर हमारी स्वतंत्रता आज जल रही है आग पर।

महत्व हो हर सोच का फिक्र हो हर आवाम की,

आज़ादी इस देश में न रहेगी सिर्फ नाम की ।

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