दीवाली एक गरीब कि….
दीवाली को मरते देखा मैने,,
उस गरीब की आंखो में,,
मिठाई की दुकान को निहारते देखा मैने,,
चंद सिक्के लेके हाथो मे,,
ना कुछ कहा ना कुछ बोला वो,,
बस पटाखों की चाह और बेजोड़ था राह में,,
चाहत थी नए कपड़े पहनने की,,
मैने उसे पुराने कपड़े धोते देखा फटे कपड़ों में,,
“सोम” करता रहा नुमाईंशे गमो कि,,
वो मशगूल था अरमानों का घूंट पीने मे,,
मैने ज़मीर को पालते देखा उसे,,
बहुत छोटी सी उम्र में,,
उसका हसता हुआ हताश चेहरा देखा,,
सरे राह रोशनी की चमकाहट में,,
मैने उसे शान से जीते देखा,,
टूटे हुए सपने लेके मन में,,
मै सोचता था त्यौहार जिंदगी की खुशियों के लिए होता है,,
और मै झुक गया उसकी गमों से तर बतर निगाहों में,,
इंजी. सोनू सीताराम धानुक”सोम”
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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