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संवैधानिक पदों को सुशोभित करते, कत्र्तव्य विमुख माननीयों,श्रीमानों की जंग, शर्मनाक -व्ही.एस.भुल्ले

विलेज टाइम्स समाचार सेवा।  20 जून 2018
जनता के दुख, दर्द छोड़ स्वयं के मान-सम्मान, स्वाभिमान, सुरक्षा को लेकर संवैधानिक पदों पर सुशोभित माननीय, श्रीमानों के बीच छिड़ी जंग को लोकतंत्र में शर्मनाक ही कहा जायेगा। अब उसकी समय अबधि एक सप्ताह रही हो या फिर एक सप्ताह से अधिक। जिस तरह का भोड़ा प्रदर्शन देश की राजधानी नई दिल्ली में देश को देखले मिला वह बड़ा ही दर्दनाक भी था और शर्मनाक भी। चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री, मंत्रियों का आरोप यह था कि केन्द्र सरकार से नियुक्त दिल्ली के उपराज्यपाल उन्हें न तो मिलने का समय दे रहे, न ही केन्द्र सरकार के इसारे पर उनकी सरकार को जनता के काम करने दे रहे।
वहीं दूसरी ओर दिल्ली के आला अफसरों अर्थात आई.एस एसोसियशन का आरोप था कि जिस तरह का दुव्र्यव्हार दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव के साथ हुआ। वह उसके मद्देनजर स्वयं को असुरक्षित मेहसूस कर रहे है। इसलिये वह स्वयं को असहज मेहसूस करते है। मगर सूत्रों की माने तो सच यह है कि संविधान अनुरुप व्यवस्था अनुसार चुनी हुई सरकार को जो अधिकार है। अगर उन अधिकारों का कोई अधिग्रहण करता है। तो उसके लिए न्यायालय है। सरकार को स्वयं भी विधायी अधिकार है।
रहा सवाल नौकरशाह जिन्हें आई.ए.एस का दर्जा प्राप्त होता है और उन्हें संवैधानिक संरक्षण प्राप्त होता है। रहा सवाल सुरक्षा का तो दिल्ली में सुरक्षा की जबावदेही केन्द्र सरकार के अधीन उपराज्यपाल व स्वयं केन्द्रीय ग्रह मंत्रालय की है। फिर पुलिस विहीन चुनी हुई सरकार अपने नौकरशाहों को सुरक्षा कहां से दे सकती है।
अगर खबरों की माने तो असल मसला मान-सम्मान, स्वाभिमान को लेकर भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में माननीय, श्रीमानों के बीच कुछ शेष होता ही नहीं है। क्योंकि कई आयोगो की रिपोर्ट हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को बड़ी दर्दनाक है। जिनमें माफिया, नेता, नौकरशाहों के गठजोड़ पर चिन्ता तक कई मर्तवा व्यक्त की गई है। मगर हम आज तक इस गठजोड़ को तोडऩे के सार्थक परिणाम प्राप्त नहीं कर सके।
बहरहाल मसला विशुद्ध रुप से दलों के बीच सियासी अदावत और सत्ता को लेकर है। जिस तरह से दिल्ली प्रदेश की सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी की समस्या निदान में जो लम्बी लकीर खींची है। उससे उसके विरोधी दल हैरान-परेशान है। उनकी जमीन उन्हें खिसकती नहीं साफ होती दिखाई दे रही थी। वहीं जिस तरह से दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के चुने-हुए विधायक मंत्री, मुख्यमंत्री के खिलाफ प्राप्त शिकायतों पर राष्ट्र भक्ति, जन सेवा का निष्ठा पूर्ण निर्वहन किया और थोकबंद विधायक व मंत्रियों को हवालात की हवा खिलवाई है। निश्चित ही भारतीय लोकतंत्र में यह आजादी के 70 वर्षो में लिखा नया इतिहास है। कास देश के अन्य प्रदेशों की पुलिस भी थोकबंद घपले, घोटाले, हत्या, अपहरण, बलात्कार से अरोपित विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्रियों को सीखचों के पीछे पहुंचा हवालात की हवा खिलवाती तो यह भारतीय लोकतंत्र की सार्थकता और केन्द्र सरकार की ईमानदार कत्र्तव्य निष्ठ सरकार की दर्द, पीड़ा से कराहते, आत्महत्या का रास्ता इख्तियार करते युवा, बेरोजगार छात्र, किसानों को बड़ी राहत होती। मगर दुर्भाग्य केन्द्र की राष्ट्र भक्ति जनसेवा को लेकर 70 सदस्यों वाले दिल्ली की सरकार से आगे विगत 4 वर्षो में वह नहीं बढ़ सका।
फिलहाल तो हमारे माननीय, श्रीमान या केन्द्र सरकार सहित दिल्ली सरकार ही नहीं, देश के करोड़ों करोड़ कराहते पीडि़त, वंचितों के लिए दर्द की बात यह है। कि क्यों न जिन लोगों ने संविधान और अपने उत्तरदायित्व, कत्र्तव्य, जबावदेहियों को दरकिनार कर मान, सम्मान, स्वाभिमान सेवा, सुरक्षा के नाम जो जश्र विगत दिनों मनाया है उन लोगों का उन दिनों का वेतन भत्ता काट इनकी निंदा इनकी कार्यावली मे दर्ज करना चाहिए। जिससे कभी कोई माननीय, श्रीमान, कत्र्तव्य विमुख हो, देश की जनता को अपनी महत्वकांक्षा स्वार्थ, सत्ता के लिए मूर्ख न बना सके है।

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