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मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेताओं के सियासी भविष्य पर लगा सवालिया निशान

भोपाल। लोकसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस की प्रथम पंक्ति के लगभग सारे नेताओं के सफाए ने जहां कांग्रेस के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा कर दिया, साथ ही पराजित नेताओं के सियासी भविष्य पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि पार्टी आलाकमान नए चेहरों को आगे लाएं।

कांग्रेस के दिग्गज माने जाने वाले नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, विवेक तन्खा, रामनिवास रावत की पराजय से उबरने में कांग्रेस को लंबा वक्त लग सकता है। सिंधिया की पराजय सभी के लिए अचरज भरी है।
इसकी वजह उनका अपनाव्यक्तित्व तो है ही, साथ-साथ क्षेत्र के साथ जीवंत रिश्ता और विकास कार्यों को लेकर उनकी सक्रियता मानी जा सकती है। सिंधिया अपने परंपरागत गढ़ में एक ऐसे व्यक्ति के हाथों बुरी तरह परास्त हो गए, जिसके अलंबरदार कुछ समय पहले तक खुद सिंधिया थे। पार्टी आलाकमान में उनकी गहरी पैठ के चलते उनके सियासी भविष्य को लेकर तो किसी को संदेह नहीं है।
माना जा रहा है कि शीघ्र ही संगठन में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। यह जिम्मेदारी प्रदेश स्तर की भी हो सकती है और राष्ट्रीय स्तर की भी। पराजय के बावजूद सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने के लिए उनके समर्थक मंत्री और विधायकों द्वारा जिस तरह से अभियान छेड़ा गया था, उससे समझा जा सकता है कि भविष्य में यदि उनके नाम पर विचार होता है तो पराजय का पेंच आड़े नहीं आएगा।
दिग्विजय सिंह
कांग्रेसी गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भविष्य को लेकर है। सिंह संगठन के सबसे जानकार नेता माने जाते हैं। उनका उपयोग विधानसभा चुनाव में समन्वय के लिए कमलनाथ ने बखूबी किया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में भोपाल जैसी कठिन सीट पर चुनाव लड़ना उनके सियासी जीवन का सबसे गलत निर्णय माना जाएगा। हालांकि इस सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय उनका नहीं था। वे तो राजगढ़ सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उन्हें भोपाल से लड़ने के लिए मनाया। सिंह अभी राज्यसभा में हैं, जहां उनका कार्यकाल अगले साल मई तक है। उसके बाद पार्टी उनका क्या उपयोग करती है, यह देखने वाली बात होगी।
अजय सिंह
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह विधानसभा के बाद लोकसभा चुनाव हार कर प्रदेश अध्यक्ष से लेकर अन्य पदों के लिए अपने सारे दावे कमजोर कर चुके हैं। दोनो चुनाव उन्होंने अपने प्रभाव वाले क्षेत्र से लड़े थे, इसलिए हार के लिए किसी दूसरे नेता पर तोहमत भी नहीं लगाई जा सकती।
कांतिलाल भूरिया
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया विधानसभा चुनाव में अपने बेटे को नहीं जितवा पाए और लोकसभा चुनाव में खुद नहीं जीत पाए। पिता पुत्र को भाजपा के एक ही नेता ने हराया, ये हैं जीएस डामोर। कांतिलाल भूरिया पिछले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा उम्मीदवार दिलीप सिंह भूरिया के हाथों पराजित हुए थे। बाद में दिलीप सिंह भूरिया के निधन से हुए उपचुनाव ने उन्हें दोबारा संसद पहुंचाया। भूरिया भी उस रतलाम झाबुआ संसदीय सीट से चुनाव हारे हैं जो कांग्रेस की परंपरागत सीट है। भाजपा अब तक वहां यह दूसरा चुनाव जीत पाई है। उनके सियासी भविष्य को इस चुनाव ने उलझा दिया है।
अरुण यादव
एक अन्य पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव भी खंडवा सीट से चुनाव हार चुके हैं। छह माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में खंडवा संसदीय सीट के अधिकांश विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के पाले में थे। यादव के अनुज कमलनाथ सरकार में कृषि मंत्री हैं। खुद अरुण यादव को पार्टी ने भाजपा के दिग्गज शिवराज सिंह चौहान के सामने बुदनी सीट से मैदान में उतारा था, जहां से उनका हारना उसी दिन से तय था, जिस दिन उनकी उम्मीदवारी घोषित हुई थी। राहुल गांधी की गुड बुक में शामिल अरुण यादव का राजनीतिक पुनर्वास अब कहां होता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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