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10वीं-12वीं के छात्रों का भी पता चलेगा पढ़ाई का स्तर

सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने राज्य शिक्षा केन्द्र ने शाला सिद्धि कार्यक्रम की शुरुआत की है।
मंथन न्यूज भोपाल। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने राज्य शिक्षा केन्द्र ने शाला सिद्धि कार्यक्रम की शुरुआत की है। यह कार्यक्रम पहले प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में चलाने का निर्णय लिया गया, लेकिन अब हायर सेकंडरी और हाई स्कूलों में भी शाला सिद्धि कार्यक्रम चलाया जाएगा। इसके लिए प्रदेश के 3 हजार 99 हायर सेकंडरी संकुल स्कूल चुने गए है। जहां से इस कार्यक्रम की शुरुआत की जाएगी।
इस संबंध में स्कूल शिक्षा विभाग की सचिव दीप्ति गौड़ मुखर्जी ने इस संबंध में सभी जिला शिक्षा अधिकारियों और परियोजना समन्वयकों को निर्देश जारी कर दिए है, वहीं जिला शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा केन्द्र परियोजना समन्वयक सहित संकुल प्राचार्यों को आदेश जारी किए गए हैं। जिसमें प्रदेश के चिन्हित स्कूलों को सूची बनाकर प्राचार्य और हेड मास्टरों को प्रशिक्षण दिया जा सके।
जानकारी के अनुसार प्रशिक्षण कार्यक्रम 15 मई तक जिलों में आायोजित किया जाना है। जानकारी के अनुसार इसमें स्व मूल्यांकन, बाहृय मूल्यांकन, शाला उन्न्यन कार्ययोजना, कार्ययोजना का क्रियान्वयन, शाला उन्न्यन सहित पांच चरणों और 7 आयामों में इसे पूरा किया जाएगा। इससे स्कूल के विद्यार्थियाें और स्कूल की दिशा और दशा में अभूतपर्वू सुधार होने की संभावना बताई जा रही है।
ऐसे होगा मूल्यांकन
हमारी शाला ऐसी हो कार्यक्रम में बाह्य मूल्यांकन को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य निर्धारित टूल्स के माध्यम से शाला द्वारा किए गए स्व-मूल्यांकन का आकलन कर उसका पुष्टिकरण किया जाएगा, शाला उन्न्यन की कार्ययोजना तैयार करने में मार्गदर्शन देना और बाद में विभागीय अधिकारियों द्वारा शाला का नियमित फालोअप कर शाला की समग्र गुणवत्ता को सुनिश्चित करना होगा।
बाह्य मूल्यांकन की वर्तमान प्रक्रिया को इस प्रकार से बनाया गया है कि यह वस्तुनिष्ठ रूप से अलग-अलग स्रोतों से साक्ष्य एकत्रित करती है, साक्ष्यों के आधार पर प्रत्येक आयाम को एक समग्र स्कोर देती है, शाला की सामान्य समस्याओं की पहचान करती है एवं शाला को इन समस्याओं के समाधान के लिए शाला उन्न्यन की कार्ययोजना बनाने के लिए सहायता करती है।
यह है शाला सिद्धि योजना का मुख्य बिंदु 
– शाला मूल्यांकन के लिए राज्य में एक संस्थागत प्रक्रिया निश्चित करना तथा उसका क्रियान्वयन करना।
– शाला मूल्यांकन के लिए शालाओं तथा सम्बन्धित अधिकारियों को सक्षम बनाना जिससे शालाएं निरंतर उन्‍नति करती रहें।
– शाला को इस प्रकार सहयोग देना कि वे अपनी आवश्यकताओं का विश्लेषण कर उनकी पूर्ति के लिए निरंतर प्रयास करने में सक्षम हों।

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