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3.5 लाख करोड़ के एनपीए जल्दी निपटाने के लिए रिजर्व बैंक के बढ़े अधिकार, बैंकों को फंसे प्रोजेक्ट बेचने का दे सकेगा आदेश

मन्थन न्यूज एनपीएऔर डिफॉल्ट से निपटने के लिए रिजर्व बैंक को व्यापक अधिकार मिल गए हैं। आरबीआई अब बैंकों को डिफॉल्टरों के खिलाफ दिवालिया घोषित करने की कार्रवाई शुरू करने का आदेश दे सकता है। वह बैंकों को फंसे कर्ज का समाधान निकालने के लिए भी कह सकता है। इसके लिए बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में संशोधन के अध्यादेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को हस्ताक्षर किए। मानसून सत्र में इस पर संसद की मंजूरी ली जाएगी। सूत्रों ने बताया कि इस कवायद का मकसद 6 से 9 महीने में एनपीए के 40-50 बड़े मामलों को सुलझाना है। 60% यानी करीब 3.5 लाख करोड़ रु. के एनपीए इन्हीं मामलों में हैं। 
इन्सॉलवेंसी या दिवालिया की कार्रवाई का अधिकार बैंकों के पास अब भी है। लेकिन जांच एजेंसियों के डर से वे ऐसा करते नहीं। अब रिजर्व बैंक उन्हें ऐसा करने का आदेश दे सकता है। आरबीआई एक निगरानी (ओवरसाइट) समिति बनाएगा। यह समिति बैंकों को सलाह देगी। बैंक एनपीए के मामले इसी समिति को भेजेंगे। यह एक तरह से जांच एजेंसियों से बैंकरों को बचाएगी। यही समिति तय करेगी कि किसी खास मामले में बैंक कितना कर्ज माफ कर सकते हैं। 
रिजर्व बैंक को अलग-अलग मामलों में बैंकों को अलग निर्देश देने का भी अधिकार होगा। इसमें थोड़ा नुकसान सहकर एनपीए बेचना भी शामिल है। सरकारी बैंक एनपीए की नीलामी करेंगे। जिस सेक्टर का एनपीए होगा, उस सेक्टर की कैशरिच सरकारी कंपनियों से उन्हें खरीदने को कहा जाएगा। एनपीए वाली ज्यादा कंपनियां दिवालिया होने की तरफ बढ़ेंगी। इसलिए बैंकरप्सी बोर्ड और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में मैनपावर बढ़ाया जाएगा। 
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि कुछ फंसे प्रोजेक्ट की सूची रिजर्व बैंक के पास तैयार है। समाधान क्या होगा, यह पूछने पर उन्होंने कहा कि इसमें एसेट की बिक्री, घाटे वाली शाखाएं बंद करना, कर्मचारियों की संख्या घटाना और प्रोजेक्ट को रिवाइव करने के लिए कदम उठाना शामिल हैं। 
पिछले साल दिसंबर में सरकारी बैंकों का एनपीए 6.06 लाख करोड़ रुपए हो गया। मार्च 2016 में यह 5.02 लाख करोड़ और मार्च 2015 में सिर्फ 2.67 लाख करोड़ रुपए था। यानी 2016-17 के शुरू के नौ महीने में सरकारी बैंकों का एनपीए एक लाख करोड़ रु. बढ़ा है। ज्यादातर समस्या बिजली, स्टील, सड़क और टेक्सटाइल सेक्टर में है। पूरे बैंकिंग सेक्टर का एनपीए कुल कर्ज के 17% तक पहुंच गया है। ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस की एक रिपोर्ट के मुताबिक एनपीए में फंसी रकम देश की जीडीपी के 8.4% के बराबर है। 
. रिजर्व बैंक केस के हिसाब से बैंकों को निर्देश देगा, ऐसा क्यों? 
आमतौर पर रेगुलेटर के नियम सब पर एक समान रूप से लागू होते हैं। लेकिन एनपीए की वजहें अलग होती हैं। इसलिए आरबीआई अब किसी मामले में एक तरीके से फैसला ले सकता है तो दूसरे मामले में दूसरे तरीके से। 
.रिजर्व बैंक को आगे क्या करना है? 
अध्यादेशके बाद रिजर्व बैंक विस्तृत फ्रेमवर्क बनाएगा। इसमें एनपीए को तय समय में निपटाने का प्रावधान किया जा सकता है। बैंक और कंपनी से निर्धारित समय में निर्णय के लिए कहा जाएगा। 
.तय समय में मामला नहीं सुलझा तो? 
ऐसानहीं होने पर रिजर्व बैंक की ओवरसाइट कमेटी फैसला लेगी। कार्रवाई बैंकरप्सी कोड के तहत होगी। कमेटी सबसे अच्छा रास्ता अपनाने के लिए रेटिंग एजेंसियों की भी राय लेगी। 
.क्या अभी ऐसी व्यवस्था नहीं है? 
सस्टेनेबलस्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड एसेट्स में ओवरसाइट कमेटी का प्रावधान है। इसमें बैंक एसोसिएशन की सिफारिश पर ‘जाने-माने लोग’ रखे जाते हैं। अब रिजर्व बैंक यह कमेटी बनाएगी। इसमें आरबीआई के भी प्रतिनिधि होंगे। 
.अभी बैंक सेटलमेंट क्यों नहीं करते? 
किंगफिशरको 950 करोड़ कर्ज देने के मामले में आईडीबीआई बैंक के पूर्व चेयरमैन समेत कई अधिकारियों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद बैंक अधिकारी सेटलमेंट से बच रहे हैं। 
.तो क्या अब बैंकरों से पूछताछ नहीं होगी? 
ऐसानहीं कि उन्हें खुली छूट होगी। पूछताछ होगी, लेकिन अधिक गंभीर मामलों में। 
.लेकिन कम पैसे पर सेटलमेंट से भी तो उन्हें नुकसान होगा! 
हांहोगा। लेकिन फायदा भी है। मान लीजिए अभी बैंक के 1,000 करोड़ रुपए फंसे हैं। ये कब मिलेंगे नहीं मालूम। नए फैसले के बाद 700 करोड़ मिलते हैं तो नुकसान सिर्फ 300 करोड़ का होगा। 
.सरकारी कंपनियां एनपीए वाले एसेट क्यों खरीदेंगी? 
नियम-शर्तोंमें बदलाव करके कुछ प्रोजेक्ट को रिवाइव किया जा सकता है। सरकारी कंपनियों को ऐसे प्रोजेक्ट में प्लांट और मशीनरी सस्ते में मिलेगी, नया प्लांट नहीं लगाना पड़ेगा। 
{ज्यादा एनपीए से बैंकों को क्या नुकसान है? 
-अभीबैंक को फंसे कर्ज के एवज में प्रोविजनिंग करनी पड़ती है। यानी तय रकम अलग रखनी पड़ती है। इससे उनका मुनाफा घट जाता है। इस रकम को वे लोन पर भी नहीं दे सकते। 

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