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साइकिल पर बेचते थे च्यवनप्राश, अब खड़ा किया 10 हजार करोड़ का एम्पायर

पानीपत (हरियाणा)। बाबा रामदेव द्वारा पतंजलि के नाम से खड़ा किए गए कारोबार का सालाना टर्नओवर 10 हजार करोड़ के पार पहुंच चुका है। यह खुलासा बाबा रामदेव ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद किया। दैनिक भास्कर बता रहा है उस दृढ इच्छाशक्ति की कहानी के बारे में, जिसके बूते पर पतंजलि ब्रांड कामयाबी के इस शिखर पर पहुंच पाया है। बाबा रामदेव कभी साइकिल पर बेचते थे च्यवनप्राश, ऐसा है डेली रूटीन…
 
– शुरुआती दिनों में बाबा हरियाणा में साइकिल से घूम-घूमकर च्यवनप्राश बेचते थे।
– बाबा रामदेव का जन्म जनवरी 1968 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के सैद अलीपुर गांव में हुआ। उनके पिता का नाम रामनिवास व माता का नाम गुलाब देवी है।
– 1977 में जब रामदेव के गांव में एक योगी आए, उनके सानिध्य में रामदेव का मन योग में लगने लगा और उनका रुझान वैदिक शिक्षा की तरफ बढ़ा।
– 1979 स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन के बारे में पढ़कर उनपर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने 8वीं कक्षा में स्कूल छोड़ दिया। 
– गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए रामदेव घर से भाग गए और कई गुरुकुल में प्रवेश के लिए पहुंचे लेकिन वहां प्रवेश नहीं मिल सका।
– अंत में 1985 में हरियाणा के खानपुर गुरुकुल में पहुंचे जहां गुरुकुल शिक्षा पद्धति से शिक्षा ग्रहण की।
– गुरुकुल में रहते हुए 1989 में शिक्षक के कहने पर उन्होंने अपना नाम रामदेव रख लिया। उनके पिता उन्हें ढूंढ़ते हुए गुरुकुल पहुंचे और घर वापस ले जाने लगे तो रामदेव ने मना कर दिया। 
 
आचार्य बालकृष्ण से हुई दोस्ती
– 1990 में बाबा रामदेव की मुलाकात आचार्य बालकृष्ण से हुई और दोनों की दोस्ती हुई।
– संस्कृत व्याकरण, वेद दर्शन, योग और आयुर्वेद में आचार्य बनने के बाद 1990 में वे जींद के कालवा गांव में गुरुकुल के प्रिंसिपल बन गए। 
– 1991 में यहां से गंगोत्री चले गए। वहां रहकर ध्यान और योग में मन लगाया। 1993 में हरिद्वार लौटे और दो छात्रों को योग शिक्षा देने लगे। इन्हीं में से एक ने बाबा रामदेव को गुजराती बिजनेसमैन जिवराज भाई पटेल से मिलाया। 
– जिवराज भाई बाबा को सूरत ले गए। जहां बाबा ने अपना पहला योग शिविर लगाया। इसमें करीब 200 लोग शामिल हुए थे। इसके बाद बाबा ने देश के कई दूसरे शहरों में भी योग शिविर लगाने शुरू किए। 
 
ऐसे हुई दवा बनाने की शुरुआत
– दिल्ली में बाबा का योग शिविर ऑर्गनाइज कराने वाले एक शख्स ने रामदेव को 50 हजार रुपए दिए और उनसे मलेरिया और काला अजर की आयर्वेदिक मेडिसिन बनाने की बात कही। उस वक्त ये दोनों बीमारियां असम के कई हिस्सों में फैली हुई थीं। 
– ये पहला अवसर था जब रामदेव और बालकृष्ण ने पहली बार दवाएं बनाईं और उन्हें असम के डिब्रूगढ़ और उदलगिरी ले गए। यहां उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा लेकिन, जब लोगों को लगा कि वो गरीबों और बीमारों की सेवा करना चाहते हैं तो उनके काम की सराहना हुई। 
– असम से लौटने के बाद रामदेव और बालकृष्ण हरियाणा में बीमार लोगों का इलाज करने लगे। इस दौरान दोनों साइकिल से घूम-घूमकर च्यवनप्राश भी बेचते थे।
 
ऐसे शुरू हुई दिव्य फॉर्मेसी
1995 में जिवराज पटेल ने 3.5 लाख और बाबा के दूसरे शुभचिंतकों ने 1.5 लाख रुपए बाबा और बालकृष्ण को डोनेट किए। इन पैसों से दोनों ने हरिद्वार के कनखाल में ‘दिव्य फॉर्मेसी’ नाम से एक आयुर्वेदिक हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर शुरू किया। 
– 2001 में बाबा पहली बार टीवी पर नजर आए। संस्कार चैनल पर उनका एक शो आना शुरू हुआ। सुबह 6.45 पर आने वाले 20 मिनट के योग प्रोग्राम ने बाबा को घर-घर में पहचान दिला दी।
– तीन साल बाद रामदेव ‘संस्कार’ से ज्यादा पापुलर चैनल ‘आस्था’ पर नजर आने लगे। इस चैनल ने बाबा के योगा सेशन को लाइव करना शुरू किया। 
– आज ‘आस्था’ चैनल पर पंतजलि का लगभग पूरी तरह कंट्रोल है। जबकि ‘संस्कार’ चैनल के शेयर में भी पतंजलि की हिस्सेदारी है। 
 
बाबा से ब्रांड तक का सफर
– बाबा के बिजनेस का ये सिलसिला अब कॉस्मेटिक से लेकर किराना के अलावा हर तरह के घरेलू प्रोडक्ट तक पहुंच चुका है और जल्द ही ‘स्वदेश जींस’ भी लॉन्च करने वाले हैं।
– 2006 में बाबा के पतंजलि योगपीठ की स्थापना हरिद्वार में हुई। इसी साल बाबा पहली बार इंग्लैंड गए और चार योग शिविर आयोजित किए। 
– 2007 में वे पहली बार योग शिविर लगाने अमेरिका गए और 4 योग शिविर लगाए। 2009 में बाबा ने पतंजलि आयुर्वेद और भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना की। 
– साल 2006 में जब रामदेव और बालकृष्ण ने पतंजलि की स्थापना की तो कुछ ही लोगों का ध्यान इस ओर गया होगा, लेकिन 2009 में हरिद्वार से 20 मील दूर 150 एकड़ की जमीन पर फैक्ट्रियां लगनी शुरू हो गईं।
– महज 10 साल में उन्होंने पतंजलि को 5 हजार करोड़ तक पहुंचा दिया। वर्ष 2016-17 में यह लक्ष्य 10 हजार करोड़ होने का अनुमान था, जिसे पूरा कर लिया गया है।
 

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