मंथन न्यूज़ भोपाल
चार साल पहले मध्य प्रदेश के छतरपुर में पटना गांव के लोग पानी लेने के लिए दर्जनों किलोमीटर जाया करते थे। लेकिन अब यह बीती बात हो गई है। यहां बने एक चेक डैम ने इन समस्याओं से निजात दिला दी है। कोकाकोला इंडिया फाउंडेशन के प्रोग्राम मैनेजर हिमांशु थपलियाल ने कहा कि यह ‘हरितिका’ NGO का काम है, जिसे उनके फाउंडेशन ने आर्थिक मदद की है। यह गांव खुजराहो से 80 किलोमीटर की दूरी पर है। इस प्रॉजेक्ट के तहत एक चेक डैम, 15 सोलर लाइट्स, 1,300 मीटर की पक्की सड़क और पीने के पानी के लिए एक तालाब के सुधार का काम किया गया है।
एक ग्रामीण गोविंद सिंह ने बताया कि लगभग चार साल पहले वहां मक्का की फसल उगानी संभव नहीं थी। यह सूखा क्षेत्र है। उन्होंने कहा, ‘चेक डैम के बनने और तालाब के सुधार के बाद हम गर्मियों में भी फसल ले पाते हैं।’ एक अन्य ग्रामीण ने कहा कि पहले गांवे के लोगों को रोजगार की तलाश में बाहर जाना पड़ता था। गांव में खेती के लिए संसाधन नहीं थे। प्रॉजेक्ट शुरू होने के बाद वे साल में 80,000 रुपये तक कमा लेते हैं।
हरितिका की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अवनि मोहन सिंह ने बताया कि वहां 100 एकड़ जमीन में एक बगीचा भी लगाया गया है। बगीचे में आम, अमरूद और करौंदे का उत्पादन होता है। यहां दशहरी आम भी होते हैं, इस आम की खासी मांग भी रहती है। ये फल पास की मंडी में बेचे जाते हैं और इससे गांव के लोगों को फायदा होता है। सिंचाई के लिए पानी सोलर पंप से खींचा जाता है। गांव की रहने वाली सावित्री ने बताया कि अब वह खेती में अपने पति का सहयोग करती हैं। उनके पति को काम की तलाश में गांव से बाहर नहीं जाना पड़ता है।
चार साल पहले मध्य प्रदेश के छतरपुर में पटना गांव के लोग पानी लेने के लिए दर्जनों किलोमीटर जाया करते थे। लेकिन अब यह बीती बात हो गई है। यहां बने एक चेक डैम ने इन समस्याओं से निजात दिला दी है। कोकाकोला इंडिया फाउंडेशन के प्रोग्राम मैनेजर हिमांशु थपलियाल ने कहा कि यह ‘हरितिका’ NGO का काम है, जिसे उनके फाउंडेशन ने आर्थिक मदद की है। यह गांव खुजराहो से 80 किलोमीटर की दूरी पर है। इस प्रॉजेक्ट के तहत एक चेक डैम, 15 सोलर लाइट्स, 1,300 मीटर की पक्की सड़क और पीने के पानी के लिए एक तालाब के सुधार का काम किया गया है।
एक ग्रामीण गोविंद सिंह ने बताया कि लगभग चार साल पहले वहां मक्का की फसल उगानी संभव नहीं थी। यह सूखा क्षेत्र है। उन्होंने कहा, ‘चेक डैम के बनने और तालाब के सुधार के बाद हम गर्मियों में भी फसल ले पाते हैं।’ एक अन्य ग्रामीण ने कहा कि पहले गांवे के लोगों को रोजगार की तलाश में बाहर जाना पड़ता था। गांव में खेती के लिए संसाधन नहीं थे। प्रॉजेक्ट शुरू होने के बाद वे साल में 80,000 रुपये तक कमा लेते हैं।
हरितिका की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अवनि मोहन सिंह ने बताया कि वहां 100 एकड़ जमीन में एक बगीचा भी लगाया गया है। बगीचे में आम, अमरूद और करौंदे का उत्पादन होता है। यहां दशहरी आम भी होते हैं, इस आम की खासी मांग भी रहती है। ये फल पास की मंडी में बेचे जाते हैं और इससे गांव के लोगों को फायदा होता है। सिंचाई के लिए पानी सोलर पंप से खींचा जाता है। गांव की रहने वाली सावित्री ने बताया कि अब वह खेती में अपने पति का सहयोग करती हैं। उनके पति को काम की तलाश में गांव से बाहर नहीं जाना पड़ता है।
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