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स्वार्थपूर्ण वैचारिक सैलाब, खतरनाक- मुख्य संयोजक स्वराज

मंथन न्यूज –  राष्ट्र खुशहाल, सक्षम, समर्थ और गौरवशाली हो, यह राष्ट्र के हर नागरिक का कत्र्तव्य और उत्तरदायित्व  है मगर जब अपनो के हाथों अपना ही कोई सड़कों पर सरेयाम पिटे या अपमानित हो , तो दु:ख भी होता है और दर्द भी महसूस होता है, आज सवाल यह नहीं कि राज कौन करेगा यक्ष सवाल आज यह है कि भारत गौरवशाली, खुशहाल राष्ट्र कैसे बनेगा।
            मगर स्वार्थ परख वैचारिक सैलाबों में समय-समय पर तार-तार होते, हमारे जीवन मूल्य, परम्पराओं का क्या होगा? जिनका निर्वहन आजाद भारत में कर पाना संघर्ष पूर्ण, अक्षम, असफल साबित हो रहा है। गांव, गली, गरीब, किसान अपने ही देश में अपनी राज सत्ता के बीच बैवस हो नैसर्गिक सुविधाओं को कलफ रहा है। आखिर कहीं तो हमारी कोशिस प्रयासों में कोई तो कमी है जिसे हम सभी को मिल पूरा कर, राष्ट्र में खुशहाली का सैलाब लाना है। और यह तभी सम्भव है जब हम व्यक्ति से व्यक्ति, समाज से समाज और राष्ट्र में अपने कत्र्तव्य उत्तरादायित्वों का निर्वहन कर  राष्ट्रीयता का भाव लोगों में पैदा कर सके। और ऐसे लोगों को अपनी राष्ट्रीयता का आभास करा सके, जो खुशहाल भारत के मार्ग में कन्टक बने है।
                अगर हम यो कहे कि आज भी हम अपनी आजादी के बीच कत्र्तव्य उत्तरदायित्वों के निर्वहन में असफल और अक्षम साबित हो रहे हैै, तो कोई अतिसंयोक्ति न होगी। हमारा अनुभव ही नहीं, इतिहास गवाह है कि हम कई मर्तवा अपनी राष्ट्रीयता के आभाव में हम खंण्ड-खंण्ड हो अपमानित होते रहे है। इसलिये आज जरुरी है व्यक्ति से व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की और वह एक ही मार्ग हो सकता है, हमारी राष्ट्रीयता, जिसके आभाव में हम ही नहीं, हमारे अपने ही, आज रास्ता भटक, इस महान राष्ट्र को वह दिन देखने पर मजबूर कर रहे है, जिन्हें देखने पर बड़ा दु:ख और दर्द भी होता है।
           मगर फिलहाल समाधान किसी के भी पास नहीं। अब इसे हम अपना सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य या फिर नियति। कि हम अपने सुनहरे इतिहास से छेड़-छाड़ कर, एक ऐसे इतिहास को गढऩे प्रयास कर रहे है, जिसकी इजाजत न तो हमारे जीवन मूल्य, न ही परम्परा और संस्कृति देती है। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता कि एक महान, खुशहाल गौरवशाली राष्ट्र के लिये जहां सत्ता, सेवक और नागरिक तीनों ही संघर्षरत है। इसीलिये राष्ट्र के नागरिकों राष्ट्र के बारे में विचार करना चाहिए और अपने कत्र्तव्य उत्तरादायित्वों का निर्वहन पूरी निष्ठा ईमानदारी से करना चाहिए।  हमारा धर्म, जाति, भाषा, बोली, क्षेत्र अलग-अलग हो सकते है, हो सकता है, हमारे दल भी वैचारिक तौर पर अलग-अलग हो, मगर हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा महान राष्ट्र एक है।
              हमें शुरुआत करनी होगी, हर नागरिक, समाज, व्यवस्था और उन संस्थाओं से, जिनके कंधो पर गौरवशाली राष्ट्र निर्माण करने का उत्तरादायित्व है। जिससे वह अपने कत्र्तव्य उत्तरदायित्व निर्वहन में सफल और सक्षम साबित हो, हमें हमारे महान नागरिक, अपने बच्चों में वह सामर्थ जगाना होगा जिससे हमारा राष्ट्र खुशहाल गौरवशाली हो, जिसे भारत वर्ष के नाम से जाना जाता है। हमें, हमारे अपनो के बीच यह विश्वास भी जगाना होगा कि हम सभी एकता के सूत्र में रह, राष्ट्र के लिये यह कार्य सफलता पूर्वक कर सकते है।
           आज आवश्यकता है हमारे महान संविधान के संरक्षण में राष्ट्र सेवा, जनसेवा की, आवश्यकता है, स्वयें को सक्षम बना समाज और राष्ट्र को सक्षम बनाने की। अगर हम भारत के महान नागरिक, ऐसा कर पाये तो हम भारत वासियों के लिये यह गौरव की बात होगी।

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