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अयोध्या के विवादित स्थल को हाई कोर्ट मान चुका है रामजन्मभूमि

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पूनम पुरोहित मंथन न्यूज़ इलाहाबाद –इलाहाबाद हाई कोर्ट अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि घोषित कर चुका है। सात साल पहले 30 सितंबर, 2010 को हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पूर्णपीठ ने बहुमत से फैसला दिया था कि विवादित भूमि जिसे राम जन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदुओं के राम जन्मभूमि न्यास को सौंप दिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। साथ ही तीन जजों की खंडपीठ ने मुसलमानों के सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को भी खारिज कर दिया था। 

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, न्यायमूर्ति एसयू खान व न्यायमूर्ति डीबी शर्मा ने अयोध्या के विवादित स्थल 2.77 एकड़ को तीन हिस्सों में बांटने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा कि परिसर के एक हिस्से में भगवान राम विराजमान हैं, दूसरे पर सीता रसोई और राम चबूतरा जहां बना है, पर निर्मोही अखाड़े का कब्जा रहा है। इसलिए यह हिस्सा निर्मोही अखाड़े के ही पास रहेगा। दो न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि इस विवादित परिसर के कुछ स्थान पर मुसलमान नमाज अदा करते रहे हैं। इसलिए, जमीन का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दे दिया जाए। कोर्ट के इस फैसले पर सभी पक्षों ने असंतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका दाखिल करने वालों में निर्मोही अखाड़ा, भगवान राम विराजमान, अखिल भारत हिंदू महासभा, जमीयत उलेमा- ए- हिंद और यूपी सुन्नाी सेंट्रल वक्फ बोर्ड शामिल है। 
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने 30 सितंबर को दस हजार पन्नों का अपना फैसला सुनाया। हालांकि, जजों ने यह भी माना कि विवादित परिसर के अंदर भगवान राम की मूर्तियां 22 या 23 दिसंबर 1949 को रखी गईं थीं। अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर या उसके आदेश पर उसके सिपहसालार मीर बकी ने उसी स्थल पर किया था, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थल मानते रहे हैं। कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खोदाई में वहां एक विशाल प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं, जिसके खंडहर पर मस्जिद बनी। तीनों जजों में इस बात को लेकर मतभेद थे कि मस्जिद बनाते समय पुराना मंदिर तोड़ा गया था। अदालत ने फैसले में यह भी कहा कि जमीन बंटवारे में सहूलियत के लिए केंद्र सरकार की ओर से अधिग्रहीत 70 एकड़ जमीन को शामिल किया जाएगा। 
21 साल में 13 बार बदली विशेष पीठ 
अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक के चार मामलों की सुनवाई करने वाली हाई कोर्ट की विशेष पीठ निर्णय आने के पहले 21 वर्षों में 13 बार बदली गई। खंडपीठ में यह बदलाव जजों के रिटायर होने, पदोन्नति या फिर तबादले की वजह से करने पड़े। रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद का यह मामला शुरू में फैजाबाद के सिविल कोर्ट में चल रहा था। स्थानीय स्तर पर सुनवाई होने के कारण शुरुआत में कम लोगों को ही इसकी जानकारी थी। 1984 में रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के आंदोलन और 1986 में विवादित परिसर का ताला खुलने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ा। 1989 में लोकसभा चुनाव के पहले विश्व हिंदू परिषद ने विवादित जमीन पर राममंदिर के शिलान्यास की घोषणा करके मामले को काफी गर्मा दिया। इसके बाद राज्य सरकार के अनुरोध पर हाई कोर्ट ने एक जुलाई 1989 को मामले को फैजाबाद की अदालत से हटाकर अपने पास ले लिया। इसके बाद से ही इस मामले की हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में सुनवाई होती रही।

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