भोपाल। मप्र के मेडिकल कॉलेजों में अब सरकार का दखल बंद हो जाएगा। चिकित्सा शिक्षा विभाग आईआईटी की तर्ज पर मेडिकल कॉलेजों को ऑटोनामस बनाने पर विचार कर रहा है। इस संबंध में रविवार को चिकित्सा शिक्षा विभाग के आयुक्त मनीष रस्तोगी और सभी मेडिकल कॉलेजों के डीन की बैठक भी हुई, जिसमें कानून के प्रावधानों पर चर्चा की गई।
अधिकारियों के मुताबिक आईआईटी की तरह ऑटोनामस बनाने से मेडिकल कॉलेज अपने स्तर पर फैसला ले सकेंगे। सरकार मेडिकल कॉलेजों को सिर्फ ग्रांट देगी। भर्ती, उपकरण खरीदी सहित अन्य कामों के लिए कॉलेजों को सरकार की अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी।
अधिकारियों के मुताबिक अभी मेडिकल कॉलेजों में भर्ती या खरीदी के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी होती है। इससे फैसले लेने में देरी होती है और व्यवस्थाएं बिगड़ती है। ऑटोनामस बॉडी बनने से कॉलेज की गवर्निंग बॉडी सभी फैसले लेगी। कॉलेज अपने हिसाब से विभिन्न् प्रकार की जांच और इलाज की फीस तय कर सकेंगे।
इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी और डॉक्टरों को ज्यादा तनख्वाह मिलेगी। सभी मेडिकल कॉलेजों को एक अलग बॉडी कॉरपोरेट बनाया जाएगा। इसके साथ ही एक राज्य स्तरीय संस्था बनाई जाएगी, जो इन मेडिकल कॉलेजों पर नियंत्रण रखेगी। मेडिकल कॉलेजों की फीस एक जैसी होगी, अभी कॉलेजों में अलग-अलग फीस है।
अलग हो सकती है प्रवेश परीक्षा

सूत्रों के मुताबिक मेडिकल कॉलेज को ऑटोनामस बनाने के बाद राज्य के मेडिकल कॉलेजों की परीक्षाएं भी अलग से हो सकती हैं। एम्स और पीजीआई मेडिकल कॉलेजों की तर्ज पर ये परीक्षाएं हो सकती हैं। अभी राज्य के मेडिकल कॉलेजों में नीट के जरिए प्रवेश मिल रहा है।
आमदनी बढ़ाने के लिए बढ़ाया जा सकता है इलाज का खर्च
मेडिकल कॉलेजों को ऑटोनामस का दर्जा देने के बाद मेडिकल कॉलेजों को जांच और इलाज का खर्च अपने हिसाब से तय करने की छूट मिलेगी। सूत्रों के मुताबिक ऐसे में कॉलेज में सुविधा बढ़ाने के लिए कॉलेजों को आमदनी बढ़ानी होगी। इसके लिए कॉलेज अस्पताल में होने वाली जांच और इलाज के खर्चे में बढ़ोतरी कर सकता है।
इनका कहना है
अभी इस कानून पर विचार चल रहा है। कई मंजूरियां बाकी हैं। इस संबंध में एक ही बैठक हुई है।
– मनीष रस्तोगी, आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा विभाग
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