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प्रदेश में प्ले स्कूलों के लिए कोई नियम-कायदे नहीं

मंथन न्यूज़ भोपाल, । प्रदेश में प्ले स्कूलों के लिए कोई नियम-कायदे नहीं हैं। भोपाल में ही 1200 से ज्यादा प्ले स्कूल संचालित हो रहे हैं। हालात यह है कि जिसकी मर्जी आए वह प्ले स्कूल खोलकर चला सकता है। इसके लिए न तो प्ले स्कूलों की ओर से सरकार को कोई टैक्स दिया जाता है और न ही इनकी मॉनीटरिंग की कोई व्यवस्था है।
हाल में कोलार रोड स्थित गिरधर परिसर के किडजी स्कूल में संचालक अनुतोष प्रताप सिंह पर यहां पढ़ने वाली तीन साल की मासूम के साथ ज्यादती के आरोप लगे हैं। बावजूद इसके स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। उनकी दलील थी कि प्ले स्कूल उनके विभाग के अंतर्गत आते ही नहीं है।
राजधानी के गली-मोहल्लों में प्ले स्कूल संचालित हो रहे हैं। यहां प्री-नर्सरी, नर्सरी, केजी-वन और केजी2 तक बच्चों को पढ़ाया जाता है। स्कूलों की दलील यह होती है कि वे प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिले के हिसाब से बच्चों को तैयार करते हैं।
मचा रखी है खुली लूट 
प्ले स्कूलों ने छोटे बच्चों को प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिले के नाम पर खुली लूट मचा रखी है। एडमिशन के नाम पर ही अभिभावकों से हजारों स्र्पए लिए जाते हैं। इसके अलावा यूनिफार्म, बस्ता और किताबें भी स्कूल ही मुहैया करवाता है। इसकी एवज में भी मोटी रकम वसूल की जाती है।
ये स्कूल न तो सरकार को किसी प्रकार का टैक्स देते हैं और नही इनकी काई जवाबदेही तय है। किसी विभाग के पास इस बात की जानकारी नहीं है कि उनके क्षेत्र में कितने प्ले स्कूल चल रहे हैं। उनमें कितने शिक्षक हैं और उनकी योग्यता क्या है? बच्चों को स्कूल में साफ पानी मिलता है या नहीं यह देखने वाला भी कोई नहीं है। स्थिति यह है कि लोगों ने अपने घरों में ही प्ले स्कूल खोल लिए हैं। सुरक्षा को लेकर भी इनसे कभी पूछताछ नहीं होती है।
घरेलू दर पर बिजली 
प्ले स्कूल पूर्णत: व्यावसायिक हैं। लेकिन इन्हें घरेलू दरों पर बिजली दी जाती है। इसकी वजह यह है कि यह घोषित ही नहीं करते कि वे व्यवसाय कर रहे हैं। इन्हें सर्विस टैक्स भी नहीं देना पड़ता और नगर निगम को भी घरेलू दर पर कर देना होता है। इस तरह से यह पूरी तरह मुनाफा कमाते हैं।
ऐसे लगती है सरकार को चपत 
– शिक्षकों की योग्यता का पैमाना नहीं
– कोई टैक्स जमा नहीं करते।
– अभिभावकों से मोटी फीस पर कोई रिकॉर्ड नहीं।
– निजी प्रकाशकों से भी कमीशन।
– नगर निगम को घरेलू दर पर प्रापर्टी टैक्स देते हैं जबकि इसका कमर्शियल उपयोग होता है।
– कितने स्कूल चल रहे, कोई रिकॉर्ड नहीं।
इनका कहना है 
यह सही है कि प्ले स्कूलों की मॉनीटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन हम यह निर्देश दे रहे हैं कि संकुलवार प्ले स्कूलों की संख्या, संचालक आदि की जानकारी रखी जाए। ये स्कूल शिक्षा के अंतर्गत लाए जाएं इसके लिए प्रयास करेंगे। 
– दीपक जोशी, स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री
प्ले स्कूल, स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत नहीं आते हैं। इनके लिए कोई नियम नहीं है। जब तक कोई नियम नहीं होगा तब तक विभाग भी क्या करेगा। हालांकि महिला एवं बाल विकास विभाग को इन्हें देखना चाहिए। 
– दीप्ति गौड़ मुकर्जी, आयुक्त, राज्य शिक्षा केंद्र playschool 201732 225646 02 03 2017
सरकार बनाए नियम 
हम तो खुद चाहते हैं कि प्ले स्कूलों के लिए नियम बनें। अभी तो कोई भी दा कमरे के मकान में स्कूल चलाने लगता है। इन्हें सरकार को अपने दायरे में लाना चाहिए ताकि फर्जीवाड़ा बंद हो सके। सिर्फ इन्हें आंगनबाड़ी के अंतर्गत कहा गया है। कोई नियम नहीं है। – मुकेश सारस्वत, संचालक, एमएस किड्स पैराडाइज 
कोई अधिकार नहीं 
हम पहली से आठवीं तक स्कूल देखते हैं। नर्सरी स्कूल विभाग के अंतर्गत नहीं आते। इसलिए इन्हें नहीं देखते। अब प्रयास करेंगे कि इनकी भी जानकारी रखें। हमारे पास कोई अधिकार ही नहीं है। बीआरसी से जानकारी एकत्रित करवाएंगे। – धर्मेंद्र शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी

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