मेरी कविता -मंदिर मास्जिद सुने सुने से नजर आते है
नोटबंदी का असर कुछ यू सरेआम हो गया है
हर आम ओ खास शख्स भी इंसान हो गया है
अब ओ हवा भी बदली सी नजर आती है
कुछ वक्त से।
शायद फिजाओ में भी बदलाव का पैगाम हो गया है
कतारे लगती नजर आती है हर तरफ सुबह से शाम तक
फर्क इतना है की सजदा करने का परिवतिर्त स्थान हो गया है
मंदिर मास्जिद सुने-सुने से नजर आते है आज कल
लगता है जैसे की पैसा ही खुदा और भगवान हो है
नोटबंदी का असर कुछ यूं सरेआम हो गया है
हर -आओ-ओ खास शख्स भी इंसान हो गया है
रूह की पाकि जगी भी दब चली नोटों के तकिये तले
इन्सानियत का जैसे कि नमो निशान खो गया है
मशरूफ हर शख्स इस कदर है जालसाजी में
पैसा ही जैसे दीन और ईमान हो गया है
बदकिस्मती ए -हिन्द देखो तो जरा एक नजर
झुकाने की खातिर एक शख्स का दुश्मन
ये सारा जहान हो गया है।
अंकित राज पुरोहित
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