नोटबंदी का असर
इन चुनावों को पीएम मोदी के नोटबंदी के निर्णय पर जनता की रायशुमारी से भी जोड़कर देखा जा रहा है. चूंकि नोटबंदी की घोषणा के बाद ये विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में यदि यूपी समेत अन्य चार राज्यों में होने जा रहे चुनावों में यदि बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो यह माना जाएगा कि जनता ने उनकी नोटबंदी के फैसले को पसंद नहीं किया. वैसे भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यदि नोटबंदी के 50 दिनों में जनता विशेष रूप से ग्रामीण भारत को कैश की किल्लतों का सामना करना पड़ा. नतीजतन आरबीआई को घोषणा करनी पड़ी कि 40 प्रतिशत कैश का प्रवाह अब ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाएगा. ऐसे में यदि यूपी जैसे प्रमुख राज्यों में पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिलती तो उसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा.

इसके साथ ही यदि बीजेपी को सफलता मिलती है तो पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ेगा और उनके कद में इजाफा होगा. ‘सर्जिकल स्ट्राइक’, नोटबंदी जैसे साहसिक फैसले लेने वाले मोदी अपने बाकी बचे ढाई साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार, काला धन के खिलाफ अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम होंगे.
विपक्ष का दांव
अब चूंकि पीएम मोदी के कार्यकाल के ढाई साल बीत चुके हैं और यदि नोटबंदी पर जनता उनके खिलाफ मत देती है तो अभी तक हाशिए पर पड़े विपक्ष को वापसी का मौका मिल सकता है. 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्ष अधिक हमलावर रुख अपना सकता है. विशेष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के लिए ये वापसी का बड़ा मौका हो सकता है. उसकी बड़ी वजह यह है कि राहुल गांधी ने नोटबंदी के दौरान बीजेपी के खिलाफ मोर्चा लेने में विपक्ष की अगुआई का काम किया. पूरा शीतकालीन सत्र नोटबंदी की भेंट चढ़ गया.
यूपी चुनावों के मद्देनजर राहुल ने उत्तर प्रदेश में किसान यात्रा की है. खाट सभा का आयोजन किया गया. सूबे के मौजूदा सियासी घटनाक्रम के मद्देनजर यदि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले सपा धड़े के साथ कांग्रेस का समझौता हो जाता है और यदि यह गठबंधन सफल होता है तो कांग्रेस के लिए फायदे की स्थिति होगी. यूपी के अलावा बड़े राज्य के रूप में पंजाब को लेकर भी कांग्रेस काफी आशान्वित है.
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