स्त्री हूँ
तन से नाजुक
मन से कोमल
पर वीरता ,त्याग ,
स्वजन रक्षार्थ नहीं सुकोमल
पुरूष जहाँ गर्दिश से निकलने
नशा और दूसरी स्त्रियाँ ढूंँढता है |
वहीं स्त्री हालातों से जूझकर ,
लड़कर बाहर निकलती है |
अपने एक ही हथियार
हाशिए से वो तरकारी ,चारा ,
नरभक्षी नरपिशाच की
गर्दन नापती है |
तो उसी हाशिये की ताक़त को
कॉपी कलम उठाकर
अभिमानी के सर को झुकाती है |
उर्वशी शर्मा गौतम