कविता सावन, दिव्या भागवानी
द्वारा लिखित
एक प्यारी सी बात हर बार लिखती हूंँ
मैं सावन की पहली बौछार लिखती हूंँ
सावन के इस पवित्र माह में
पावन भाई बहन का प्यार लिखती हूंँ
प्यारी सी परी हूंँ मैं तो अपनी मांँ की
सुनो मांँ का वह दुलार लिखती हूंँ
इंसानियत का रिश्ता है सबसे प्यारा
मैं इंसानियत वाला प्यार लिखती हूंँ
सुनाई देती है मुझे मासूमों की आवाज़
मैं उन्हीं मासूमों की पुकार लिखती हूँ
सावन में मनाया था जो वृद्धा आश्रम में
हां मैं वही रक्षाबंधन का त्यौहार लिखती हूंँ
भूली नहीं हूंँ अपनी ज़िंदगी के तूफानों को
मुझपर हुआ जो शब्दों का वार लिखती हूंँ
सीधेपन से दुनिया नहीं चलती यही सीख मिली
इसलिए कभी कभी मैं तलवार की धार लिखती हूंँ।
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