अटल बिहारी वाजपेयी की वाकपटुता बताने की जरूरत नहीं। बात 1984 की है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। कहीं पर कांग्रेसियों के पथराव से अटल बिहारी वाजपेयी के पैर में चोट लगी हुई थी। वह लंगड़ाकर चल रहे थे।
झंडे वाले पार्क में शाम 7.30 बजे सभा थी। सभाएं करते हुए वाजपेयी जब लखनऊ के झंडे वाले पार्कपहुंचे तो रात के 10.30 बज रहे थे। कड़ाके की ठंड। बावजूद इसके पार्क में लोग जमे हुए और अमीनाबाद की बाजार में आसपास के बरामदों में लोग बैठे हुए।
अटल जी को पकड़ाकर मंच पर ले जाया गया। वहां वे कुर्सी पर बैठे और बोलना शुरू किए। वरिष्ठ पत्रकार प्रद्युम्न तिवारी भी उस सभा में मौजूद थे। तिवारी बताते हैं कि अटल जी ने बोलना शुरू किया तो बस तालियां बजती ही चली गईं।
अटल जी बोले, ‘आप लोगों ने मुझे बैठकर भाषण देते कभी देखा।’ लोग बोले, ‘नहीं।’ अटल जी बोले, ‘पर, कांग्रेसियों ने मुझे बैठकर बोलने पर मजबूर कर दिया। दरअसल, कांग्रेस वालों को अपनी मनमानी नीतियों में मेरा बार-बार टांग अड़ाना शायद पसंद नहीं आया।
लिहाजा उन्होंने सोचा कि टांग ही तोड़ दो जिससे बार-बार टांग न अड़ा सके। वह विपक्ष की टांग तोड़कर उसे बैठाना चाहते हैं। पर, उन्हें समझ लेना चाहिए कि वह हमें बैठा तो सकते हैं लेकिन हटा नहीं सकते। हटना तो एक दिन कांग्रेस को पड़ेगा।’
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