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म.प्र.विधानसभा के मानसून सत्र में भाजपा करा सकती है फ्लोर टेस्ट

भोपाल। भले ही लोकसभा चुनाव संपन्न् हो गए हों पर कमलनाथ सरकार की अग्नि परीक्षा सालभर होती रहेगी। सबसे पहली परीक्षा विधानसभा के मानसून सत्र में हो सकती है। इसमें सरकार को बजट पारित कराना है। वही भाजपा की कोशिश होगी कि सरकार को उलझाकर फ्लोर टेस्ट कराने की इसके बाद किसानों से जुड़ी सहकारी समितियों और फिर मंडी समिति के चुनाव होंगे। इसमें भाजपा कर्ज माफी को मुद्दा बनाकर सरकार की घेराबंदी करेगी। वैसे ये चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर चुनाव के सारे सूत्र पार्टियों के हाथ में ही होते हैं। राजनीतिक दल ही ये तय करते हैं कि कहां, कौन लड़ेगा।
साल के अंत में शहर सरकार (नगरीय निकाय) के चुनावों का नंबर आएगा। लोकसभा चुनाव के बाद यह पहले दलीय आधार पर होने वाले चुनाव होंगे, इसलिए सियासी नजरिए से काफी अहम होंगे। निकाय चुनाव से निपटते ही त्रिस्तरीय पंचायराज संस्थाओं के चुनाव का शंखनाद हो जाएगा। वैसे तो यह चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं, लेकिन राजनीतिक दलों का पूरा हस्तक्षेप रहता है।
विधानसभा में संख्या बल करना होगा साबित
सरकार की सबसे पहली चुनौती विधानसभा के मानसून सत्र में संख्या बल साबित करने की होगी। इस सत्र में सरकार वर्ष 2019-20 का बजट पारित कराएगी। इस दौरान विपक्ष मत विभाजन की मांग करके सरकार को बहुमत साबित करने पर विवश कर सकता है। यही वजह है कि सरकार ने विधायकों को साधने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। जिला सरकार इसी कड़ी का हिस्सा है। इसमें प्रभारी मंत्रियों के अधिकार बढ़ेंगे और विधायकों की पूछ-परख बढ़ेगी। स्थानीय स्तर पर तबादले से लेकर छोटे-मोटे काम जिले में ही हो जाएंगे।
सहकारी संस्थाओं के चुनाव
मानसून बीतने के बाद प्रदेश में सवा चार हजार प्राथमिक सहकारी समिति, 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के संचालक मंडल और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल के चुनाव प्रस्तावित हैं। मतदाता सूची तैयार करने का काम शुरू हो गया है। इसमें इस बार जमाकर्ताओं में से एक संचालक बनेगा। इसके लिए नियम बदले गए हैं। सहकारी समितियों के चुनाव यूं तो गैर दलीय आधार पर होते हैं पर इनमें राजनीतिक दलों का पूरा दखल रहता है। गांव-गांव में किसानों की प्रतिनिधि संस्था होने की वजह से मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच होगा।
मंडी समितियों के चुनाव
लाखों किसानों का वास्ता मंडियों से पड़ता है। इसमें जो कुछ भी होता है, उसका असर व्यापक होता है। प्रदेश की 257 कृषि उपज मंडियों के चुनाव बीते एक साल से टाले जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने मंडियों में खरीदी के काम का हवाला देकर छह-छह माह करके दो बार मंडियों के निर्वाचित संचालक मंडल का कार्यकाल बढ़ाया है।
फिलहाल यहां प्रशासक तैनात हैं, लेकिन सरकार के पास बारिश के बाद चुनाव कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। किसानों से सीधा वास्ता होने की वजह से इनमें अपने समर्थकों को बैठाने के लिए कांग्रेस और भाजपा जोर लगाएंगी। मुख्यमंत्री के सामने चुनौती यह है कि वे किसानों को यह भरोसा दिला पाएं कि सरकार उनके हितों को सुरक्षित करने में भाजपा से ज्यादा कारगर रहेगी। इसकी शुरुआत उन्होंने मंडियों में किसानों को दो लाख रुपए तक का एक दिन में नकद भुगतान की सुविधा दिलाकर कर दी है।
नगरीय निकाय चुनाव
ज्यादातर निकायों पर भाजपा पर कब्जा है। साल के अंत में 16 नगर निगम सहित ढाई सौ से ज्यादा नगर पालिका और नगर परिषदों के चुनाव होने हैं। कांग्रेस ने शहर सरकार में अपने नुमाइंदे पहुंचाने के लिए रणनीति तैयार करना शुरू कर दी है। हालांकि, सरकार के लिए निकाय चुनाव किसी चुनौती से कम नहीं है।
विधानसभा चुनाव में शहरी सीटों पर कांग्रेस को जो लीड मिली थी, वो लोकसभा चुनाव में गंवाई जा चुकी है। शहरी मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा जताया है। इस स्थिति को भांपते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंत्रियों को अब निकाय चुनाव पर ध्यान देने के निर्देश दिए हैं।
पंचायतराज संस्थाओं के चुनाव
नगरीय निकायों के बाद त्रिस्तरीय पंचायतराज संस्थाओं (51 जिला पंचायत, 313 जनपद पंचायत और 23 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायत) के चुनाव होंगे। अभी ज्यादातर जिला व जनपद पंचायत अध्यक्ष भाजपा समर्थक हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार का सारा काम पंचायतों के माध्यम से चलता है। इससे ही सरकार की छवि बनती है। सरकार के लिए चुनौती होगी कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस की पहुंच बढ़ाने के लिए इन संस्थाओं में पार्टी के ज्यादा से ज्यादा लोगों को जितवाकर भिजवाए।

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