मंथन न्यूज़ इंदौर –पहली स्थिति- किसान के बीज बोते ही भारी बारिश हो जाती है और बीज खराब हो जाता है। दूसरी स्थिति -बीज बोने के कई दिनों तक बारिश नहीं होती और बीज सूख जाता है। किसान अक्सर इन दोनों ही स्थितियों का सामना करता है और उसे नुकसान उठाना पड़ता है। इसकी वजह है-मौसम की सटीक जानकारी ना मिल पाना।
दरअसल, मौसम का मिजाज हर 12 वर्ग किमी में बदल जाता है, जबकि किसान को मौसम का हाल बताने वाले कृषि विज्ञान केंद्र जिला मुख्यालयों पर स्थित हैं, जो पूरे जिले का मौसम का सही पूर्वानुमान नहीं लगा पाते। इस कारण मौसम की भविष्यवाणी और वास्तविक मौसम में अक्सर 40 फीसदी का अंतर होता है। अब मौसम विभाग इस कमी को दूर करने के लिए ब्लॉक स्तर पर ऑटोमेटिक ऑब्जर्वेटरी लगाने की तैयारी कर रहा है। इससे औसत तौर पर 35 से 50 वर्गकिमी क्षेत्र में मौसम का सटीक पूर्वानुमान किसानों को बताया जा सकेगा।
जिले में ही बदल जाता है मौसम
मौसम विभाग के मुताबिक, हर 12 वर्ग किमी में मौसम का मिजाज बदल जाता है, यानी इंदौर जिले की सीमा पार करते करते मौसम का मिजाज कोई 384 बार बदल जाता होगा। क्षेत्रफल के लिहाज से प्रदेश के सबसे छोटे जिले दतिया में 224 बार और सबसे बड़े जिले छिंदवाड़ा में 984 बार मौसम बदलने की संभावना होती है। जाहिर है, बड़ा इलाका होने की वजह से जिले स्तर पर जारी होने वाला पूर्वानुमान उतना सटीक साबित नहीं हो पाता है।
ब्लॉक स्तर पर मिलेगी मौसम की जानकारी
किसानों को समय से पहले मौसम का मिजाज पता लग सके इसके लिए मौसम विभाग का एग्रोमेट्री सेंटर और नेशनल इनोवेशन क्लाइमेट रेसीलेंट एग्रीकल्चर (नीकरा) देशभर में शोध कर रहे हैं। अभी हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र हैं, जो पांच दिन का पूर्वानुमान जारी करते हैं। यह ज्यादा सटीक हो, इसके लिए ब्लॉक स्तर पर ऑटोमैटिक ऑब्जर्वेटरी लगाने की तैयारी की जा रही है। पहले चरण में देशभर में 100 ब्लॉक लिए गए हैं। मध्यप्रदेश के चार जिले डिंडौरी, नीमच, रीवा और अशोकनगर के ब्लॉक को प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है।
सटीक होगा पूर्वानुमान
ब्लॉक स्तर पर मौसम का आकलन करने से बहुत हद इसका सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। – डॉक्टर केके सिंह, प्रमुख एग्रोमेट्री सेंटर दिल्ली
12 वर्ग किमी में मौसम का पूर्वानुमान व्यावहारिक नहीं है। ऑटोमेटिक ऑब्जर्वेटरी से ब्लॉक स्तर पर 35 से 50 वर्ग किमी के दायरे में सटीक जानकारी आ सकेगी। यह किसानों के लिए विपरीत परिस्थितियों में भी ज्यादा पैदावार लेने में मदद करेगी। – डॉ. एच एस भदौरिया, नोडल ऑफिसर, कृषि परामर्श सेवा परियोजना, ग्वालियर कृषि विवि
पूनम पुरोहित
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