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दरअसल शपथ ग्रहण से ठीक पहले मंच पर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शिवराज सिंह का हाथ थामकर ये संकेत दे दिया कि वो हर कदम पर विपक्ष को साथ लेकर चलेंगे। इस तस्वीर में सिंधिया का भी वो हाथ थामे नजर आए और उन तमाम अटकलों को खत्म कर दिया कि सिंधिया हाशिये पर हैं। इस शपथ ग्रहण समारोह में ये साफ भी हो गया, जब उन्होंने राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को उचित सम्मान दिया। इस एक तस्वीर के जरिए कमलनाथ ने ये संदेश दे दिया कि एक तरफ तो प्रदेश को विकास की पटरी पर दौड़ाने के लिए वो विपक्ष के साथ कदमताल करेंगे, तो वहीं पार्टी के भीतर भी बगावत और गुटबाजी को किनारे पर रखेंगे। ये तस्वीर प्रदेश की सियासत का नया मिजाज बताने के लिए काफी है। जहां धुर विरोधी भी एक-दूसरे का गर्मजोशी से स्वागत करते दिखे और मंच पर बैठे कांग्रेस और विपक्षी दलों के दिग्गज नेताओं ने भी इसे हाथों-हाथ लिया और पूरा जंबूरी मैदान तालियों से गूंज उठा। संजय गांधी की राजनीति के मिजाज से जुड़े कमलनाथ को सियासी मैनेजमेंट में माहिर माना जाता है। वो गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी के साथ काम कर रहे हैं। वो केंद्र की सरकारों में अहम मंत्रालय संभाल चुके हैं। ऐसे में प्रदेश की बागडोर संभालने से पहले उन्होंने जो संकेत दिए हैं। वो ये बताने के लिए काफी हैं कि वो किस मिजाज से सरकार चलाएंगे। प्रदेश में बदली हुई इस सियासत की बुनियाद उसी दिन पड़ गई थी। जब प्रदेश में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। नतीजे आने के बाद कमलनाथ खुद कार्यवाहक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मिलने सीएम हाउस पहुंचे थे। इस मुलाकात के दौरान शिवराज सिंह ने भी बड़ा दिल दिखाते हुए उन्हें जीत की बधाई दी थी और प्रदेश के विकास के मुद्दे पर पूरे सहयोग का भरोसा दिलाया था।उस मुलाकात के बाद शिवराज सिंह का जो बयान सामने आया था, वो भी कई मायने में खास था। क्योंकि उन्होंने प्रदेश के विकास के मुद्दे पर साफ कहा था कि, कांग्रेस प्रदेश का विकास करे, हम पूरा सहयोग करेंगे, पहले दिन से गालियां भी नहीं देंगे। लेकिन शुभमकामना देने के साथ ही उन्होंने ये भी ताकीद कर दी थी कि अगर कांग्रेस वचन-पत्र में किए वादे नहीं निभाएगी तो भाजपा सड़कों पर ही उतरने से गुरेज नहीं करेगी। इतना ही नहीं पूर्व सीएम शिवराज सिंह ने किसानों के मुद्दे पर भी सरकार को घेरने की चेतावनी दे दी थी। साथ ही ये कहा था कि कमलनाथ के शपथ लेने के बाद वो उनसे मिलेंगे और धान खरीदी में किसानों को हो रही परेशानी दूर करने के अलावा भाजपा सरकार की जनहितैषी योजनाएं जारी रखने का आग्रह भी करेंगे।जंबूरी मैदान में बदली हुई सियासत की जो तस्वीर सामने आई है। उसका क्या असर होगा, इसके लिए इंतजार करना होगा। लेकिन एक बात तो साफ हो गई कि सियासत में चार दशक गुजार चुके कमलनाथ न सिर्फ पार्टी के बाहर अपने विरोधियों को साधना जानते हैं, बल्कि पार्टी के अंदर भी विरोध के सुर थामने में उनका कोई सानी नहीं है।
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