नई दिल्ली: कमलनाथ सरकार में वित्त मंत्री तरुण भनोट ने राज्य का बजट पेश करते हुए जब इस बात की घोषणा की कि राज्य सरकार अब राज्य की प्रसिद्ध चीजों की इंटरनेशनल ब्रांडिंग करेगी तो इस बात की चारों तरफ चर्चा हुई. इस योजना के तहत सरकार मध्यप्रदेश की प्रसिद्ध रतलामी सेव, मालवा के लड्डू-चूरमा, दाल बाफले, बुंदेलखंड की मावा जलेबी, मुरैना की गजक, भोपाल के बटुए, चंदेरी और महेश्वरी साड़ी की ब्रांडिंग करेगी. लेकिन अब यही घोषणा सरकार के लिए मुसीबत का सबब बनती जा रही है. राज्य के तमाम इलाकों से अनदेखी की आवाज उठ रही है. यही वजह है कि चुनावों के दौरान भारी डिमांड में रहने वाला कड़कनाथ मुर्गा एक बार फिर राजनीतिक बहस का हिस्सा हो चुका है.
इस वजह से शुरू हुआ विरोध
आपको बता दें कि म.प्र में लोग खाने के बेहद शौकीन हैं और यहां अलग-अलग शहरों के अलग-अलग व्यंजन प्रसिद्ध हैं. यही नहीं तमाम शहरों की पहचान भी उन व्यंजनों के आधार पर ही होती रहती है. यही वजह है कि जब राज्य सरकार ने कुछ प्रसिद्ध व्यंजनों और वस्तुओं की ब्रांडिंग करने की घोषणा की तो जिन लोगों के इलाके की प्रसिद्ध चीजें सूची में शामिल नहीं थी अपना विरोध जताना शुरू कर दिया.
कड़कनाथ मुर्गे पर सियासी बयानबाजी
रतलाम-झाबुआ सांसद गुमान सिंह डामोर ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ पर बजट में आदिवासियों के साथ उपेक्षा का आरोप लगाया है. भाजपा सांसद गुमान सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश के बजट में प्रसिद्ध चीजों सेंव, दाल-बाफले की ब्रांडिग की बात कही गई है. आदिवासी क्षेत्र झाबुआ और अलीराजपुर में मिलने वाले दाल-पानिया और कड़कनाथ मुर्गा भी फेमस है ऐसे में कड़कनाथ मुर्गे की भी ब्रांडिंग होना चाहिए. इसके लिए भाजपा सांसद गुमान सिंह ने सीएम कमलनाथ को पत्र भी लिखा है.
कांग्रेस ने साधा बीजेपी पर निशाना
लेकिन जब बीजेपी सांसद ने कड़कनाथ मुर्गे की ब्रांडिंग की मांग की तो उस पर पलटवार करते हुए बाद कांग्रेस ने भाजपा पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा जय श्री राम के नारे लगाती है और गोहत्या रोकने की बात करती है वहीं दूसरी और कड़कनाथ मुर्गे की ब्रांडिंग की मांग कर रही है. रतलाम युवक कांग्रेस के जिला अध्यक्ष किशन सिंघाड़ का कहना है कि भाजपा सांसद मांसाहार को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं यदि आदिवासी क्षेत्र से कुछ ब्रांडिंग करना है तो आदिवासियों की उपज बालम ककड़ी की मांग करना चाहिए, भाजपा की कथनी करनी में यही अंतर है.
झाबुआ के दाल-पानिया की भी उठी मांग
पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी झाबुआ जिले में भी एक ऐसा शाकाहारी व्यंजन ‘दाल-पानिया’ है जो न केवल पौष्टिक है बल्कि उसका जायका लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. पानिया को मक्के के आटे से तैयार किया जाता है उसके बाद पलाश के पत्तों पर कंडों की अंगार पर धीमी आंच में पकाया जाता है. खड़े मासाले से तैयार तुअर दाल और पत्थर पर कुटकर तैयार की गई मिर्च की चटनी के साथ इसे खाया जाता है. दाल-पानिये का जायका लेने वाले इसके स्वाद को न केवल याद रखते हैं बल्कि दोबारा जायके का स्वाद लेने झाबुआ जरूर पहुंचते हैं. दाल-पानिये का स्वाद लेने वाले सरकार से इसकी भी ब्रांडिंग किये जाने की मांग कर रहे हैं.