भाजपा संगठन में होगा बड़ा उलटफेर, प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में कई ने
भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश स्तर पर एक बार फिर भारी उलटफेर होने की चर्चाएं जोरों पर मंडल से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक बदलने की सुगबुगाहट तेज हो गई है. प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह दोबारा अध्यक्ष बनने की कवायद में लगे है तो दूसरी ओर आधा दर्जन नेता ऐसे है जो अध्यक्ष की दौड़ में शामिल है, जिन्होने अपने स्तर पर प्रयास भी तेज कर दिए है.
बताया जाता है कि लोकसभा व विधानसभा चुनाव के बाद से ही मध्यप्रदेश में भाजपा संगठन में बदलाव के कयास तेजी से लगाए जाने लगे थे, विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश अध्यक्ष राकेशसिंह ने अपना स्तीफा भी राष्ट्रीय अध्यक्ष को भेज दिया था हालांकि स्तीफा स्वीकार नहीं हो पाया. लेकिन संगठन में फेरबदल के कयास लगाए जाने लगे, यहां तक मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति किसी न किसी कारण टल गई.
अब नगरीय निकाय के चुनाव आने वाले है, जिसे लेकर भाजपा संगठन ने तैयारियां शुरु कर दी है, इन तैयारियों के साथ साथ संगठन में फेरबदल किए जाने की चर्चाएं भी शुरु हो गई है. इन चर्चाओं में यह बात भी सामने आ रही है कि चुनाव के पहले प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के स्थान पर किसी नए चेहरे को लाने की बात भी शुरु हो गई है, हालांकि नए अध्यक्ष की दौड़ में आधा दर्जन से ज्यादा नेता लगे है, जो नगरीय निकाय चुनाव के पहले कुर्सी पर बैठने के लिए अपने स्तर पर प्रयास कर रहे है, जिसमें जबलपुर के भी दो नेता शामिल है. वहीं राकेशसिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष की पसंद है, जिसके चलते वे दूसरी पारी खेलने के लिए आश्वस्त है, अब देखना यह है कि कौन प्रदेश अध्यक्ष बनता है.
सूत्रों की माने तो जिला स्तर भी नगर व युवा मोर्चा अध्यक्ष बदलने की सुगबुगाहट है, संगठन का मानना है कि नगरीय निकाय चुनाव में नगर अध्यक्ष की भूमिका अह्म होती है, जिसके प्रभाव का असर चुनाव में साफ साफ दिखाई देता है. विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद संगठन नगरीय निकाय के चुनाव में किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहता है, क्योंकि संगठन के वरिष्ठ नेताओं को इस बात की जानकारी है कि कहीं न कहीं भाजपा का ग्राफ गिरा है.
सूत्रों की माने तो संगठन में बदलाव प्रदेश स्तर पर ही होगें, जिसमें अंगद की तरह कुर्सी से चिपके नेताओं के पैर उखडऩे में देर न लगेगी, इधर जबलपुर में भी प्रदेश अध्यक्ष बनने से लेकर नगर अध्यक्ष बनने तक नेताओं में होड़ लगी है, खासतौर पर वे नेता शामिल है जो विधानसभा चुनाव का टिकट पाने से वंचित हो गए थे. वे इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहते है, वे भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रयासरत है.