खबरार्थ …. तो साहेबान! मेहरबान! कदरदान! गरजती-बरसती तोपों के मुकाबिल नरेद्र भाई मोदी ने मुंह खोल दिया. बत्तीस दांत और जुबान के बीच से पिसी ऐसी बारूद उगली कि दुश्मनों की तोपें सीलन से भर गयीं. उन्हें चलाने वालों को जैसे काठ मार गया. मोदी का बारूदमय पलटवार पूरी तैयारी के साथ किया गया. खड़ी फसल को पक्षियों से बचाने के लिए किसान खेत में बिजूका लगाता है. इंसान जैसी आकृति वाले पुतले. नागरिकता संशोधन कानून पर मोदी की फसल तेजी से पक रही है.
विपक्षी पक्षियों से उसे बचाने के लिए मोदी ने दनादन बिजूके खड़े कर दिए. कोई मोहनदास करमचंद की शक्ल अख्तियार किए हुए, तो कोई डॉ. मनमोहन सिंह सहित ममता बनर्जी और वामपंथियों के अतीत की चादर खींचकर बिजूका लिऐ सामने आ गया. इतिहास के मर्तबान से वर्तमान का घी निकालने के लिए अंगुली को टेढ़ा करने की मेहनत नहीं करना पड़ती है अतीत की चादर को जरा-सा झटकने मात्र से उस पर चढ़ी धूल की परत उतरती दिख जाती है. यही जगह से उतरती परत साक्षात्कार कराती है कि कैसे कई ऐसे चेहरे इस कानून का विरोध कर रहे हैं, जो पहले कभी ऐसे ही प्रावधानों का पूरी सख्ती से लागू करने की वकालत करते चले आये थे.
फिर मोहनदास वाला दांव चलकर तो मोदी ने कांग्रेस को बुरी तरह उलझा दिया है. खुद को गांधी का सच्चा अनुयायी बताने वाली कांग्रेस तीन पड़ोसी मुस्लिम देशों में सताये गये भारतीयों का ही विरोध कर रही है. जबकि गांधी की विरोधी कहकर प्रचारित की जाती भाजपा गांधी की भावनाओं के अनुरूप ही इन भारतीयों को उनके देश में मान-सम्मान एवं नागरिकता प्रदान करने का जतन कर रही है. मोदी ने याद दिला दिया कि मनमोहन तथा ममता बनर्जी ने भी उन प्रावधानों की जरूरत बतायी थी, जिन्हें नये कानून में पर्याप्त महत्व दिया गया है. ऐसे तमाम बिजूके खड़े करने के बाद प्रधानमंत्री ने इस खेत में भावुकता की खाद भी लगे हाथ डाल दी.
कहा कि भले ही उनके पुतले जला लिए जाएं, लेकिन कानून के विरोध के नाम पर गरीबों का नुकसान करने से बचा जाना चाहिए. इस तरह गये रविवार की सर्द दोपहर जनता ने मोदी की नरम-गरम तकरीर के बीच काफी हद तक यह महसूस कर लिया कि कानून का विरोध गलत आधार पर किया जा रहा है. मोदी ने नाम लगाकर आरोपों का खंडन किया. जवाब में राहुल गांधी केवल यह कह पाये कि आर्थिक मोर्चों पर असफलता छिपाने के लिए प्रधानमंत्री विपक्ष पर आरोप लगा रहे हैं.
ममता दीदी मात्र इतना कह सकीं कि कानून के प्रावधानों को लेकर मोदी तथा अमित शाह के विचारों के बीच अंतर है. मनमोहन सिंह तो खैर रिमोट न दबने के चलते इस विषय पर श्रीमुख खोल ही नहीं सके. बहरहाल, यह सोचना तो मूर्खता होगी कि अब मोदी ने विरोधियों का मुंह बंद कर दिया है. हां, यह कल्पना की जा सकती है कि अपनी चुप्पी तोडकर उन्होंने देश के जनमानस के सामने कई ऐसी बातें साफ कर दी हैं, जिन्हें केंद्र सरकार के हित के लिहाज से स्पष्ट की जाना बहुत जरूरी हो गया था.
यह तय है कि मोदी की इन दलीलों की काट विपक्ष के पास नहीं है. इसलिए बौखलाहट में जो होता है, वही होगा. यानी कानून के विरोध को और उग्र स्वरूप देने का कुचक्र रचा जाएगा. ऐसे लोगों के साथ एक खास मानसिकता के चुंबक से चिपकी भीड़ खड़ी हुई है. यह सोच आंख मंूदकर मोदी, भाजपा और संघ के हर कदम का विरोध करने वाली है. सोते हुए आदमी को जगाया जा सकता है, लेकिन जो जागते हुए भी सोने का नाटक करता हो, उसे फरिश्ते भी जगा सकते. ये समूह ऐसी ही आदत का मारा है. इसलिए यह सोचना नादानी होगी कि मोदी के रविवार को दिए भाषण से कानून के विरोध पर कुछ खास सकारात्मक असर होगा.
जो होगा, वह यह कि देश का आम जनमानस उस शख्स की बोली बोलने लगता दिखेगा, जिसने सोशल मीडिया पर एक गौरतलब कथन लिखा है. उसकी पोस्ट के अनुसार- मुझे नहीं पता था कि नागरिकता संशोधन कानून क्या है, लेकिन जैसे ही देखा कि कौन-कौन दल तथा लोग इसका विरोध कर रहे हैं तो मैं समझ गया कि यह देश-हित का मामला ही होगा. सचमुच तमाम विपक्षी दल गलत के आधार पर जो शोर मचा रहे हैं, उसके चलते इस कानून को लेकर उन्होंने अपनी स्थिति एक बार फिर मोदी के मुकाबले कमजोर कर दी है.
हो सकता है कि झारखंड का विधानसभा चुनाव हारने को इस कानून पर मोदी की हार समझ लिया जाए, लेकिन तय मानिए कि झारखंड की पराजय स्थानीय फैक्टर्स की वजह से हुई, राष्ट्रीय परिदृश्य में इसके असर का प्रारम्भिक रूझान पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में दिखेगा. 2024 में तो फिर अभी बहुत समय बाकी है.
प्रकाश भटनागर
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