*सरकार, सुप्रीमकोर्ट और स्पाक्स में फंसी पदोन्नतियां।*
कोर्ट ने कहा पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिए। यह व्यवस्था बन्द करो।जिन्हें आरक्षण नहीं था वे बल्लियों उछल गए।अब अच्छे दिन आ गए,कोर्ट ने जो कह दिया पदोन्नति में आरक्षण खत्म करो। कुछ कर्मचारियों अधिकारियों ने स्पाक्स का गठन कर लिया। श्रेय की होड़ मच गई।बड़े साहब ने खम ठोक कर गर्जना कर दी मेरे रहते कोई “माई का लाल” आरक्षण खत्म नहीं कर सकता तो माई के लाल लँगोट लगा आए।भाई लोगों को पता ही नहीं होगा कि यह भारत की कोर्ट व्यवस्था है जिसमे पड़पोते तक तो मामले को खींचा जा सकता है सो बड़े साहब ने भी वही किया। मंझले कोर्ट की शिकायत लेकर बड़े कोर्ट के पास चले गए सरकार की तरफ से और कह दिया करोड़ो लगें तो लग जाएं पर फैसला नहीं होना चाहिए।फिर क्या था,सरकारी काले कोट उतर पड़े अखाड़े में मालिश-वलिश कर के। खेल शुरू।
जैसा कि होना था पेशी पड़ी, फिर पेशी पड़ी, फिर पेशी पड़ी और हर बार बिना सुनवाई के आगे बढ़ी।बड़े साहब सरकार में थे माई के लाल जमीन पर।चंदा-वंदा हुआ और लड़ाई की ठानी लेकिन उससे क्या होना था।सरकार तो सरकार होती है।सुनवाई हुई तो इस बात पर कि नागराज जी को सुनकर यह फैसला देना चाहिये था य नहीं सो पीठ बिठाओ , भाई पीठ भी बैठ गई लेकिन पेशी, पेशी और पेशी हर पेशी आगे बढ़ी।आखिर में पीठ ने कह दिया भाई जो सुन रहा है उसे ही सुनने दो।संविधान पीठ की जरूरत नहीं।ये अलग बात है इतना कहने में कई महीने लग गए।बड़े साहब खुश। चलो अब फिर से ककहरा होगा तब तक विधानसभा पूरी हो जाएगी।नई में नई देखेंगे।
इधर स्पाक्स में कुछ पिटे मोहरे मुंह मे लार लिए आ गए कहने लगे सरकार हम बनाएंगे। उन्हें लगा कि मायावती के सवर्ण संस्करण बनने का मौका है।सो उन्होंने माई के लालों को लालीपाप दे दिया। अब कर्मचारी अधिकारी तो चुनाव लड़ नहीं सकते थे जन्मजात मोहरे और वो भी प्यादे कर्मचारियों को लगा हमारे पुराने वजीर हमे भी मलाई खिलाएंगे सो कोर्ट में मामला लटका रहे अच्छा मुद्दा है विधान सभा तक तो।इसी वैतरणी से हमारी पौ बारह हो जाएगी।हमने तब भी इन्हें समझाया भाइयों चुनाव चक्रम छोड़ो कोर्ट में अपना पक्ष रखो।लेकिन वहाट्सएपीए माई के लालों ने व्हाट्सएप पर ही अपनी स्पाक्स सरकार भी बना ली।हमने कहा कि जमानतें नहीं बचेंगी मगर भाई लोग कहाँ मानने वाले थे तो स्पाक्स के “क” को धीरे से कर्मचारी की जगह कल्याण कर दिया। बस यही कल्याण हुआ कर्मचारी का। उधर दिल्ली में बिल्ली के भाग से छींका छूटा और एट्रोसिटी पर हाय तौबा मच गई।स्पाक्स को लगा अपना तंदूर तप गया।जनता को कर्मचारियों से क्या मतलब चंबल वाले एट्रोसिटी पर भड़क गए और नोटा व स्पाक्स की तरफ नारे लगाने लगे।हमने फिर कहा ये तारणहार नहीं नाव के छेद हैं जब चाहे भर जाएंगे।बड़े साहब को लगा कि माई के लाल गलत कह दिया तो वे चुप बैठ गए।
लेकिन अटक गए सारे कर्मचारी जो बच्चों को रोज बताते अब प्रमोशन होगा कल प्रमोशन होगा और यह कहते कहते बिचारे 70 हजार रिटायर हो गए।बड़े साहब क्या करते कोर्ट में अटकाना जरूरी था और कुछ समझाना मजबूरी था।सो दो साल उम्र बढाने का झुनझुना थमा दिया।माई के लाल खुश हो गए। अब यह प्रमोशन में आरक्षण कलेक्टर एसपी से शुरुआत करने वालों के लिए तो है नहीं सो वल्लभ भवन को क्या पड़ी है वो वल्लभ भाई जैसा विलीनीकरण कराए। तो लो लगाओ नारे और घर जाओ।
इलेक्शन होना थे सो हो गए।स्पाक्स निपट ली सारे वेदी त्रिवेदी कुट पिट लिए।बड़े साहब ने खूब दम टेकी तो रस्सी सात इंच कम रह गई।और उधर दूसरे पाले में भी दो इंच ओछी। दिल्ली को लगा बिल्ली जीभ लपलपा रही है तो दस टुकड़े तोड़ कर टपका दो लेकिन उससे क्या होगा।
जो मूल मुद्दा है वह तो कोर्ट में है और कोर्ट कब सुनता है गरीब की जोरू की।कर्मचारी तो बेचारा गरीब की जोरू ही है उसे सरकार जो दे दे लेना है न दे तो खिसियाना है।क्या कर लेगा वह। खुद का वोट तक तो डालने नहीं जाता या तो छुट्टी मनाता है या ड्यूटी बजाता है।बड़े साहब बदल गए। नोटा फोटा निपट लिया। स्पाक्स मरहम पोत रहा था अजाक्स मुस्कुरा रहा था। कर्मचारी दो साल तक झुनझुना लिए बच्चों की तरह मस्त हो गया। आगे दिल्ली की तैयारी में नए पुराने बड़े साहब जुट गए।कोर्ट में पेशियां पड़ और बढ़ रही थीं। और प्रमोशन? प्रमोशन तो सरकार, सुप्रीमकोर्ट और स्पाक्स में फंसा कराह रहा था। नए काका जी ने एक दो बार लॉलीपॉप दिखाया मगर दिख कर जब तक पन्नी उघाड़ते तब तक एक जलजला आया और काका जी खुद ही टपक लिए। माई के लाल फिर अपनी जगह पर। लेकिन मुद्दा जस का तस।दो साल वाला झुनझुना भी टूट गया लेकिन तब तक कोरोना आ धमका। बाकी सारी अपथें-शपथें हो गईं मगर बिचारे कर्मचारी? वो राम-राम करते घर जा रहें हैं। सुप्रीम तो सुप्रीम है प्रशांत महासागर में ज्वारभाटा उठा सकता है मगर कर्मचारियों के पोखर से क्या लेना। स्पाक्स के कुछ शुरुआती उत्साही लाल मुंह छुपाए हैं। हीरा मोती क्यों आएं अब जमानतें तक नहीं बचाई इनकी जनता ने। अब उप चुनाव तक सब मलाई खाओ राजनीति की।और कर्मचारी रिटायर होकर अपने घर जाकर आराम करो।तुम्हारा सफर यहीं तक था। जय हो मध्यप्रदेश।
चौ.मदन मोहन समर
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