नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने गुरुवार दिनांक 28 अगस्त 2020 को एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय के अंदर कैटेगरी बनाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला इसलिए लिया था कि SC/ST के अंतर्गत आने वाली ऐसी जातियों को आरक्षण से लाभान्वित किया जा सके जो किन्ही कारणों से अब तक मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण मामले में 2004 की संविधान पीठ का फैसला पलटा
इससे पहले 2004 में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि किसी वर्ग को प्राप्त कोटे के भीतर कोटे की अनुमति नहीं है। 2020 में संविधान पीठ 2004 के फैसले को बदल दिया है। पांच जजों की दो पीठों में मतभिन्नता के कारण अब यह मामला बड़ी पीठ (सात जजों की बेंच) को भेजा जाएगा।
राज्य सरकार के पास SC/ST के भीतर जाति को उपवर्गीकृत करने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि 2004 के फैसले को फिर से पुर्नविचार की जरूरत है। पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकार के पास आरक्षण देने की शक्ति होती है, वह उप-वर्गीकरण बनाने की भी शक्ति रखती है। इसलिए, इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उचित निर्देश के लिए रखा जाना चाहिए। इंदिरा बनर्जी, विनीत शरण, एम आर शाह और अनिरुद्ध बोस वाली पीठ ने कहा कि 2004 के फैसले को सही ढंग से तय नहीं किया गया था और राज्य एससी/एसटी के भीतर जाति को उपवर्गीकृत करने के लिए कानून बना सकते हैं।
हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार के कानून को खत्म कर दिया था
पीठ ने पंजाब सरकार द्वारा CJI जस्टिस एसए बोबडे के समक्ष हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर मामले को लेकर पहले के निर्णय को फिर से पुनर्विचार करने के लिए एक बड़ी पीठ की स्थापना के लिए जोर दिया। दरअसल, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एससी/एसटी को उपवर्गीकृत करने के लिए सशक्त बनाने वाला एक कानून खत्म कर दिया था। हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत के 2004 के फैसले पर भरोसा किया था और यह माना था कि पंजाब सरकार को एससी/एसटी को उपवर्गीकृत करने की कवायद करने का अधिकार नहीं था।