हैडिंग: कुपोषण के विरुद्ध खड़ा हुआ ‘उल्लू का पट्ठा’
भोपाल। चर्चित लेखक और पत्रकार अमिताभ बुधौलिया का हाल में प्रकाशित हुआ उपन्यास ‘उल्लू का पट्ठा’ एक अनूठी पहल के कारण चर्चाओं में है। राजनीति हास्य-व्यंग्य पर लिए गए इस उपन्यास से होने वाली कमाई कुपोषित बच्चों पर खर्च होगी। इसके लिए एक स्वयंसेवी संगठन ‘विकास संवाद’ सहयोग के लिए आगे आया है।
अमिताभ बताते हैं-‘हम एक कोशिश करने जा रहे हैं। उम्मीद है कि लोगों को यह उपन्यास पसंद आएगा और ज्यादा से ज्यादा हाथों से पहुंचेगा। विकास संवाद इस पहल को आगे बढ़ा रहा है, यह अच्छी बात है। हम अगर थोड़ा-बहुत भी कुपोषित बच्चों के लिए कुछ कर पाए, तो मेरा लिखना सार्थक होगा।’
अमिताभ का 3 महीने के अंदर यह दूसरा उपन्यास प्रकाशित हुआ है। पहला उपन्यास ‘सत्ता परिवर्तन’ भी काफी चर्चाओं में है। इस पर एक फिल्म का निर्माण भी हुआ था, जो किसी कारणवश अधूरी रह गई। यह उपन्यास ठीक उस समय प्रकाशित हुआ था, जब मप्र, छग और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। इन तीनों ही राज्यों में ‘सत्ता परिवर्तन’ हुआ था। इस वजह से भी उपन्यास अपने शीर्षक के कारण सुर्खियों में आया था।
अब ‘उल्लू का पट्ठा’ इसी वजह से चर्चाओं में है, क्योंकि यह ठीक आम चुनाव से पहले प्रकाशित हुआ है।
‘उल्लू का पट्ठा’ चुनावी प्रक्रिया पर एक मजेदार कटाक्ष करता है। बुंदेली भाषा का पुट लिए यह उपन्यास हास्य-व्यंग्य शैली पर आधारित है। इस कहानी पर भोपाल में पिछले साल एक नाटक खेला जा चुका है। उपन्यास नोशन प्रेस ने प्रकाशित है। यह अमेजॉन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है।
उपन्यास पर फिल्म-साहित्य और पत्रकारिता के कई जाने-माने लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं।
‘जाने भी दो यारो’ जैसी फिल्मों के लेखक रंजीत कपूर लिखते हैं-‘उल्लू का पट्ठा’ राजनीतिक वंशवाद पर हास्यशैली का व्यंग्य/उपन्यास है।
‘कृष और काबिल’ जैसी फिल्में लिखने वाले संजय मासूम कहते हैं-‘उल्लू का पट्ठा’ राजनीति में ‘ना-काबिल’ नेताओं की मौजूदगी को रोचक अंदाज में प्रस्तुत करता है।
ख्यात कवि मदनमोहन समर ने लिखा-‘उल्लू का पट्ठा’ हास्य-व्यंग्य काव्यशैली की तर्ज पर रचा गया है।
मशहूर साहित्यकार प्रीता व्यास ने कहा- ‘उल्लू का पट्ठा’ सरल भाषा में आमजीवन की सच्चाइयों को बयां करता बड़ा सजीव चित्रण है।
व्यंग्यकार अनुज खरे लिखते हैं- लोकतंत्र में कौन-किसे और कैसे ‘उल्लू’ बना रहा है, ‘उल्लू का पट्ठा’ इसी की बानगी है।
फिल्म गीतकार और गजलकार विजय अकेला ने प्रतिक्रिया दी- ‘उल्लू का पट्ठा’ द ग्रेट इंडियन पॉलिटिक्स का मिरर है।
फिल्मकार राजकुमार भान कहते हैं-‘उल्लू का पट्ठा’ पढ़ते वक्त हर किरदार-दृश्य आंखों के सामने सजीव हो उठते हैं।
अभिनेता राजीव वर्मा ने लिखा-‘उल्लू का पट्ठा’ राजनीतिक वंशवाद को फिल्म-शैली में प्रस्तुत करता है।
फिल्म लेखक और निर्देशक राज शांडिल्य कहते हैं-‘उल्लू का पट्ठा’ पढ़ते वक्त यूं महसूस हुआ मानों हम कोई फिल्म देख रहे हों।
पत्रकार अजीत वडनेरकर ने लिखा-हमारे सामाजिक परिवेश में घर कर चुके ‘ठलुअई’ के स्थायी भाव का बुंदेलखंडी संस्करण।
पत्रकार केके उपाध्याय कहते हैं-‘उल्लू का पट्ठा’ लोकतांत्रिक अ-व्यवस्थाओं पर करारा व्यंग्य है।
अमिताभ बताते हैं-‘दोनों ही उपन्यास को लेकर फिल्मकारों ने रुचि दिखाई है। अगर राइट्स बिकते हैं, तो यह पैसा भी कुपोषित बच्चों पर खर्च कर दिया जाएगा।’