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क्या मुझे ऐसी संस्था का अध्यक्ष रहना चाहिए जिसने जनता के पैसों का दुरुपयोग किया

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बुधवार को जनअभियान परिषद के कर्मचारियों से हुई गड़बड़ियों पर नाराजगी जताते हुए कहा कि परिषद…

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बुधवार को जनअभियान परिषद के कर्मचारियों से हुई गड़बड़ियों पर नाराजगी जताते हुए कहा कि परिषद की बहुत शिकायतें मेरे पास हैं। इनके प्रमाण भी हैं। मुख्यमंत्री ने आर्थिक सांख्यिकी विभाग के एसीएस केके सिंह की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि बताइए कि क्या मैं ऐसी संस्था का अध्यक्ष रह सकता हूं, जिसमें सरकारी धन का दुरुपयोग राजनीतिक संस्थाओं को आगे बढ़ाने के लिए किया हो। नाथ समन्वय भवन में परिषद के कर्मचारियों से बात कर रहे थे। 
कर्मचारियों ने भी रखा अपना पक्ष- अपनी बात रखने के बाद कमलनाथ ने कहा कि कोई कर्मचारी अपना पक्ष रखना चाहे तो रख सकता है। इस पर एक कर्मचारी ने कहा कि हमें जैसे-जैसे आदेश मिले वैसा काम किया। अगर दो-चार प्रतिशत कर्मचारियों ने गलत काम किया तो उसकी सजा शेष कर्मचारियों को न मिले। एक अन्य कर्मचारी ने कहा कि कई ऐसे बड़े शासकीय अधिकारी थे जो ईवीएम के साथ पकड़े गए, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 
मैं किसी का अहित नहीं करता, तीन माह बाद फिर रिव्यू करूंगा 
मुख्यमंत्री ने परिषद के कर्मचारियों से कहा कि वे किसी का अहित नहीं करते, लेकिन ऐसे काम किए हैं, जो नहीं किए जाने चाहिए थे। बहुत सी शिकायतें हैं, इसलिए तीन महीने में फिर रिव्यू करूंगा। राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग करने के संबंध में आत्म-मंथन करने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि जनअभियान परिषद पर भाजपा के लिए काम करने के आरोप लगे हैं। साथ ही यह आरोप भी हैं कि चुनाव के दौरान पिछली सरकार के लिए कई कर्मचारियों ने काम किया था। 
ऋण माफी किसानों की समस्याओं का स्थाई समाधान नहीं : सीएम 
भोपाल| फसल ऋण माफी किसानों की समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। यह उन्हें संकट से उबारने का तात्कालिक उपाय है, क्योंकि कर्ज का मनोवैज्ञानिक दबाव होता है। अब ज्यादा लाभ के लिए विविधतापूर्ण खेती को अपनाने का समय है। यह बात मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बुधवार को कही। वे मंत्रालय में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की राज्य ऋण संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। 
उन्होंने कहा कि किसानों के हित में बदलते हुए कृषि परिदृश्य को ध्यान में रखकर नई योजनाएं बनाना जरूरी है। उन्होंने नाबार्ड के अधिकारियों से कहा कि मप्र में परिवर्तित कृषि परिदृश्य को देखते हुए राज्य की कृषि नीति का प्रारूप तैयार करें। उन्होंने कहा कि अब सीमित भौगोलिक क्षेत्र में कृषि उत्पादों की मार्केटिंग का समय आ गया है। चार-पांच जिलों में एक फूड पार्क स्थापित हो सकता है, जिसमें बने उत्पाद उन्हीं जिलों के ब्रांड बनकर बिकें। मार्केट अर्थ-व्यवस्था में ऐसे ब्रांड टिके रहेंगे, यह कहना मुश्किल है, पर किसानों को इससे लाभ होगा। 

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