संस्कार और मार्गदर्शन देने का काम करती है पुस्तकें:गौतम
रामायण और महाभारत पूरा हमारा इतिहास है:भार्गव
पाठक मंच की नियमित मासिक गोष्ठी जल मंदिर में संपन्न।
रामायण और महाभारत पूरा हमारा इतिहास है:भार्गव
पाठक मंच की नियमित मासिक गोष्ठी जल मंदिर में संपन्न।
साहित्य अकादमी भोपाल से सम्बद्ध पाठक मंच केंद्र शिवपुरी की पुस्तकों की मासिक समीक्षा गोष्ठी स्थानीय जल मंदिर मैरिज हाउस में शिवपुरी के समस्त वरिष्ठ व नव साहित्यकारों की उपस्थिति में संपन्न हुई,जिसमे भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन लेखक शंकर शरण,काल क्रीडति लेखक श्यामसुंदर दुबे,मन पवन की नोका लेखक कुबेरनाथ राय,व जंगल राग लेखक अशोक शाह की पुस्तकों की समीक्षा व नव साहित्यकारो की प्रस्तुति भी हुई।सर्वप्रथम ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के चित्र के आगे दीप प्रज्वलन व पुष्प अर्पित कर गोष्ठी का शुभारंभ हुआ,इसके बाद
गोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार पुरषोत्तम जी गौतम ने कहा कि इंटरनेट के युग मे पुस्तक संस्कृति का क्षरण हो रहा है,जिससे पुस्तके जो व्यक्ति की सबसे अच्छी मित्र हुआ करती थी,जिनसे ज्ञान व संस्कार मिला करते थे उससे दूर हो रहे है तभी वृद्धाश्रम व निराश्रित भवनों की वृद्धि हो रही है।उस दौर में पाठक मंच के माध्यम से युवाओं को जोड़कर पुस्तके पढ़ने की योजना प्रसंशनीय कार्य है जिसे शिवपुरी में बेहतर तरीके से संचालित किया जा रहा है और कई नव साहित्यकारों को इससे जोड़कर वास्तविक कार्य किया है,हरिश्चंद जी भार्गव ने कहा कि जीवन को जीना पुस्तके सीखाती है,और ये न सिर्फ ज्ञान बल्कि जिजीविषा भी देती है,पुस्तक पढ़ना कभी बंद नही करना चाहिए।पुस्तको की समीक्षा के क्रम में सबसे पहले भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन जो शंकर शरण जी ने लिखी है कि समीक्षा प्रस्तुत करते हुए वरिष्ठ लेखक,साहित्यकार,पत्रकार प्रमोद जी भार्गव ने कहा कि स्पष्ट शंकर शरण जी ने रोमिला थापर के लेखों को दृष्टि गत करते हुए पुस्तक में लिखा है कि क्यों नही थापर ने कभी सनातन धर्म का उल्लेख नही किया,काश्मीर से भगाए लोगो के दर्द को क्यों नही लिखा,मार्क्सवादी विचारधारा ने सर्वाधिक नुकसान भारतीय इतिहास का किया है,और शंकर शरण जी ने सर्वाधिक सटीक टिप्पणी साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत करने का कार्य किया है।प्रेमचंद को गरीब घोषित किया गया जबकि प्रेमकिशोर गोयनका जी ने बताया कि प्रेमचंद गरीब नही थे, ये भी केवल मार्क्सवादी चाले ही थी।रामायण और महाभारत पूरा हमारा इतिहास है।दूसरे समीक्षक संजय शाक्य ने अशोक शाह द्वारा लिखित जंगल राग की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि चूंकि लेखक का अधिकांश जीवन सरकारी नोकरी करते हुए मध्यप्रदेश के जंगलों में बीता तो उसे बताते हुए जंगल के पेड़ पौधे, वनोषधि के बारे में लेखक ने बताया है किस प्रकार एक ही स्थान पर खड़े पेड़ किस प्रकार अनुशासन का पाठ पढ़ाते है लेखक ने विस्तार से बताया है।शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त हुए शिवपुरी के वरिष्ठ लेखक,रंगकर्मी विजय भार्गव ने मन पवन की नोका कुबेरनाथ राय जी के द्वारा लिखित पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि तेहन्नुद जिसका अर्थ हिंदी पंथ है एक नया शब्द प्रकाश में पुस्तक पढ़ते हुए मेरे आया है,ललित निबन्धकार के रूप में विख्यात कुबेरनाथ जी ने गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है,आर्य और आर्यतर विश्वासों की अन्तर्क्रियाओं का बड़ा मार्मिक और प्रभावपूर्ण अंकन किया है,आधुनिक परिवेश की विसंगतियों को भी उल्लेखित किया गया है।काल क्रीडति श्याम सुंदर जी दुबे द्वारा लिखित पुस्तक की समीक्षा करते हुए दिनेश जी वशिष्ठ ने कहा कि हर एक पुस्तक हमे एक नया दर्शन दे जाती है,पढ़ते पढ़ते हमे ज्ञान बोध कराती है,हिंदी शब्दावली बढ़ाने की दृष्टि से पुस्तक बेहद उपयोगी है,लेखक लिखते है दिल्ली अगर कहानियां जाये तो बमुश्किल सोलह जायेगी लेकिन उस पर फिल्में सोलह हजार बन जाएगी,कहकर लेखक अपनी बात रखते है,पुस्तक के निबंध बौद्धिकता से परिपूर्ण और ज्ञान वर्धक है,भाषा काफी समृद्ध और विषय रखने की भिन्नता बेहतर है।बीच बीच मे नव साहित्यकारों कु दिव्या भागवानी ने किसी कवि की कलम बन जाऊं, आप कहो तो कवि बन जाऊं, विकास प्रचंड ने जीवन का ये बोझा ढोना पड़ता है,छुप छुप कर ये जीवन जीना पड़ता है,मयंक राठौर ने देश के हमको आना काम,सरहद पर दुश्मन का करना काम तमाम जैसी प्रस्तुतियां देकर श्रोतावर्ग को हर्षित किया।संचालन केंद्र संयोजक आशुतोष शर्मा,आभार दिनेश जी वशिष्ट ने माना।शिवपुरी के कई वरिष्ठ व नव साहित्यकार समीक्षा गोष्ठी में उपस्थित रहे।
गोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार पुरषोत्तम जी गौतम ने कहा कि इंटरनेट के युग मे पुस्तक संस्कृति का क्षरण हो रहा है,जिससे पुस्तके जो व्यक्ति की सबसे अच्छी मित्र हुआ करती थी,जिनसे ज्ञान व संस्कार मिला करते थे उससे दूर हो रहे है तभी वृद्धाश्रम व निराश्रित भवनों की वृद्धि हो रही है।उस दौर में पाठक मंच के माध्यम से युवाओं को जोड़कर पुस्तके पढ़ने की योजना प्रसंशनीय कार्य है जिसे शिवपुरी में बेहतर तरीके से संचालित किया जा रहा है और कई नव साहित्यकारों को इससे जोड़कर वास्तविक कार्य किया है,हरिश्चंद जी भार्गव ने कहा कि जीवन को जीना पुस्तके सीखाती है,और ये न सिर्फ ज्ञान बल्कि जिजीविषा भी देती है,पुस्तक पढ़ना कभी बंद नही करना चाहिए।पुस्तको की समीक्षा के क्रम में सबसे पहले भारतीय इतिहास दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन जो शंकर शरण जी ने लिखी है कि समीक्षा प्रस्तुत करते हुए वरिष्ठ लेखक,साहित्यकार,पत्रकार प्रमोद जी भार्गव ने कहा कि स्पष्ट शंकर शरण जी ने रोमिला थापर के लेखों को दृष्टि गत करते हुए पुस्तक में लिखा है कि क्यों नही थापर ने कभी सनातन धर्म का उल्लेख नही किया,काश्मीर से भगाए लोगो के दर्द को क्यों नही लिखा,मार्क्सवादी विचारधारा ने सर्वाधिक नुकसान भारतीय इतिहास का किया है,और शंकर शरण जी ने सर्वाधिक सटीक टिप्पणी साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत करने का कार्य किया है।प्रेमचंद को गरीब घोषित किया गया जबकि प्रेमकिशोर गोयनका जी ने बताया कि प्रेमचंद गरीब नही थे, ये भी केवल मार्क्सवादी चाले ही थी।रामायण और महाभारत पूरा हमारा इतिहास है।दूसरे समीक्षक संजय शाक्य ने अशोक शाह द्वारा लिखित जंगल राग की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि चूंकि लेखक का अधिकांश जीवन सरकारी नोकरी करते हुए मध्यप्रदेश के जंगलों में बीता तो उसे बताते हुए जंगल के पेड़ पौधे, वनोषधि के बारे में लेखक ने बताया है किस प्रकार एक ही स्थान पर खड़े पेड़ किस प्रकार अनुशासन का पाठ पढ़ाते है लेखक ने विस्तार से बताया है।शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त हुए शिवपुरी के वरिष्ठ लेखक,रंगकर्मी विजय भार्गव ने मन पवन की नोका कुबेरनाथ राय जी के द्वारा लिखित पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि तेहन्नुद जिसका अर्थ हिंदी पंथ है एक नया शब्द प्रकाश में पुस्तक पढ़ते हुए मेरे आया है,ललित निबन्धकार के रूप में विख्यात कुबेरनाथ जी ने गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है,आर्य और आर्यतर विश्वासों की अन्तर्क्रियाओं का बड़ा मार्मिक और प्रभावपूर्ण अंकन किया है,आधुनिक परिवेश की विसंगतियों को भी उल्लेखित किया गया है।काल क्रीडति श्याम सुंदर जी दुबे द्वारा लिखित पुस्तक की समीक्षा करते हुए दिनेश जी वशिष्ठ ने कहा कि हर एक पुस्तक हमे एक नया दर्शन दे जाती है,पढ़ते पढ़ते हमे ज्ञान बोध कराती है,हिंदी शब्दावली बढ़ाने की दृष्टि से पुस्तक बेहद उपयोगी है,लेखक लिखते है दिल्ली अगर कहानियां जाये तो बमुश्किल सोलह जायेगी लेकिन उस पर फिल्में सोलह हजार बन जाएगी,कहकर लेखक अपनी बात रखते है,पुस्तक के निबंध बौद्धिकता से परिपूर्ण और ज्ञान वर्धक है,भाषा काफी समृद्ध और विषय रखने की भिन्नता बेहतर है।बीच बीच मे नव साहित्यकारों कु दिव्या भागवानी ने किसी कवि की कलम बन जाऊं, आप कहो तो कवि बन जाऊं, विकास प्रचंड ने जीवन का ये बोझा ढोना पड़ता है,छुप छुप कर ये जीवन जीना पड़ता है,मयंक राठौर ने देश के हमको आना काम,सरहद पर दुश्मन का करना काम तमाम जैसी प्रस्तुतियां देकर श्रोतावर्ग को हर्षित किया।संचालन केंद्र संयोजक आशुतोष शर्मा,आभार दिनेश जी वशिष्ट ने माना।शिवपुरी के कई वरिष्ठ व नव साहित्यकार समीक्षा गोष्ठी में उपस्थित रहे।