आर्थिक रूप से कमजोर तबकों (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण संबंधी कानून के पीछे केंद्र 2010 में सौंपी गई सिन्हो आयोग की जिस रिपोर्ट को आधार बनाया, उसमें स्पष्ट रूप से EWS को आरक्षण देने की बात नहीं की गई थी। रिपोर्ट में सिर्फ सभी जनकल्याण योजनाओं तक EWS की पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया था। रिपोर्ट में कहा गया था आर्थिक मापदंड आरक्षण के लिए पिछड़े वर्गों की पहचान के सूचक नहीं हो सकते। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य EWS की पहचान “केवल जनकल्याण कार्यक्रमों की पहुंच बढ़ाने” के लिए कर सकते हैं।
यूपीए सरकार द्वारा मेजर जनरल (रिटायर्ड) एसआर सिन्हो की अगुवाई में गठित तीन सदस्यीय आयोग ने जुलाई, 2010 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। EWS को रिजर्वेशन का लाभ देने की कोशिशों के इतिहास की समीक्षा वाले चैप्टर में रिपोर्ट कहती है, “कमीशन की संवैधानिक और कानूनी समझ यह है आर्थिक मापदंड के आधार पर रोजगार और शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण देने हेतु ‘पिछड़ी जातियों’ की पहचान नहीं की जा सकती और इसलिए ‘आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’ की पहचान राज्य केवल जनकल्याण उपायों का लाभ देने के लिए कर सकता है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “उन्हें (EBCs) किसी तरह का आरक्षण देने के लिए दो जरूरी पहलुओं को ध्यान में रखना जरूरी है।” रिपोर्ट के अनुसार, पहला पहलू यह है कि आर्थिक रूप से पिछड़ेपन को सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से जोड़ने की जरूरत है। दूसरा यह कि राज्य पर आरक्षण की 50 फीसदी सीमा तब तक बाध्यकारी है, जब तक सुप्रीम कोर्ट अलग निर्देश न दे या संविधान संशोधन न हो।
मार्च 2015 में आयोग के इस स्टैंड को एनडीए सरकार ने खुद संसद में दिए एक जवाब में दोहराया था। राज्य सभा में बुधवार (9 जनवरी) को विधेयक पारित होने से पहले, सदन के पटल पर सरकार ने सिन्हो आयोग की रिपोर्ट का संदर्भ दिया था और कहा था कि 2010 की रिपोर्ट में EWS को आरक्षण की सिफारिश की गई थी। सरकार का कहना था कि आयोग के सदस्यों ने रिपोर्ट में बताया है कि कैसे उन्होंने पूरे देश का भ्रमण कर अधिकतर राज्य सरकारों से सलाह ली थी।हालांकि अपनी रिपोर्ट में कमीशन कहता है, “आयोग ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से आरक्षण की सीमा पर राय ली और राजस्थान को छोड़कर अधिकतर राज्यों ने सामान्य श्रेणी में EBCs को आरक्षण पर कोई स्पष्ट राय नहीं दी।”
मार्च 2015 में आयोग के इस स्टैंड को एनडीए सरकार ने खुद संसद में दिए एक जवाब में दोहराया था। राज्य सभा में बुधवार (9 जनवरी) को विधेयक पारित होने से पहले, सदन के पटल पर सरकार ने सिन्हो आयोग की रिपोर्ट का संदर्भ दिया था और कहा था कि 2010 की रिपोर्ट में EWS को आरक्षण की सिफारिश की गई थी। सरकार का कहना था कि आयोग के सदस्यों ने रिपोर्ट में बताया है कि कैसे उन्होंने पूरे देश का भ्रमण कर अधिकतर राज्य सरकारों से सलाह ली थी।हालांकि अपनी रिपोर्ट में कमीशन कहता है, “आयोग ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से आरक्षण की सीमा पर राय ली और राजस्थान को छोड़कर अधिकतर राज्यों ने सामान्य श्रेणी में EBCs को आरक्षण पर कोई स्पष्ट राय नहीं दी।”