
असम में गैरकानूनी तरीके से रहे रहे सात रोहिंग्या प्रवासियों को वापस म्यांमार भेजे जाने के केंद्र के फैसले को हरी झंडी मिल गई है। अब रोहिंग्याओं को हर हाल में वापस जाना होगा। केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (4 अक्टूबर) को किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। याचिका खारिज कर दी गई। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इसकी सुनवाई की। याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा, “म्यांमार ने यह स्वीकार कर लिया है कि रोहिंग्या उनके देश के नागरिक हैं। साथ ही उन्हें वापस बुलाने पर भी सहमत हो गए हैं। ऐसी कोई वजह नहीं है कि उन्हें उनके देश जाने से रोका जाए।”बता दें कि बुधवार को केंद्र सरकार द्वारा सात रोहिंग्याओं को वापस भेजने के फैसले पर रोक लगाने के लिए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट को रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करने के लिए अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। इन रोहिंग्याओं को उनके देश जाने से रोका जाना चाहिए। उन्हें जबरन वापस भेजा जा रहा है।” उनकी इस दलील पर सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि आपको एहसास याद दिलाने की जरूरत नहीं है। हमें सब पता है।
कोर्ट के इस फैसले के बाद अब हर हाल में रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस जाना होगा। जिन सात रोहिंग्याओं को वापस भेजा जा रहा है, उन सभी को विदेशी कानून के उल्लंघन के आरोप में 29 जुलाई, 2012 को गिरफ्तार किया गया था। असम जिले के काचार जिले के अधिकारियों ने बताया कि जिन्हें वापस भेजा जाएगा उनमें मोहम्मद जमाल, मोहबुल खान, जमाल हुसैन, मोहम्मद युनूस, सबीर अहमद, रहीम उद्दीन और मोहम्मद सलाम शामिल हैं। इनकी उम्र 26 से 32 वर्ष के बीच है। इन्हें मणिपुर की मोरेह सीमा चौकी पर सात रोहिंग्या प्रवासियों को म्यामांर के अधिकारियों को सौंपा जाएगा।