भोपाल- चुनाव दस्तक दे चुके हैं। राजनीतिक दल वोटबैंक भुनाने के लिए चुनावी बिसात बिछा रहे हैं। भारतीय राजनीति में आरक्षण चुनावी शतरंज का एक ऐसा मोहरा रहा है, जिसकी चाल से उनके वोटों का नफा-नुकसान तय होता रहा है।
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा एससी-एसटी वर्ग के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के बाद देशभर में रोष झलका। दोनों ही पक्षों के लोग सड़कों पर उतरे, भारत बंद हुआ और जातिगत जहर उगला गया। देश दो-फाड़ हो गया। बहस फिर शुरू हुई, आरक्षण रहे या खत्म हो?
राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में चुनावों से ऐन पहले देश को झकझोरने वाले आरक्षण के ज्वलंत मुद्दे पर जनता की नब्ज टटोली। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में किए महासर्वे में कई खुलासे हुए।
सामाजिक वैमनस्यता…
हमने आरक्षण से जुड़े 08 सवालों के जरिए सामान्य और एससी-एसटी वर्ग के लोगों से मांगे दो टूक जवाब। इस महासर्वे में सामान्य और एससी-एसटी वर्ग को समान अनुपात शामिल किया गया। इन आठ सवालों में दो प्रमुख सवाल थे ..
हमने आरक्षण से जुड़े 08 सवालों के जरिए सामान्य और एससी-एसटी वर्ग के लोगों से मांगे दो टूक जवाब। इस महासर्वे में सामान्य और एससी-एसटी वर्ग को समान अनुपात शामिल किया गया। इन आठ सवालों में दो प्रमुख सवाल थे ..
– क्या आरक्षण ने जातिगत वैमनस्यता बढ़ाई है और क्या क्रीमीलेयर को आरक्षण मिलना चाहिए?
देश में शायद यह पहला मौका था जब महासर्वे में एससी-एसटी और सामान्य, दोनों वर्गों के लोगों ने बेबाकी से अपना मत जाहिर किया। सामान्य तबके के 64 फीसदी लोगों ने आरक्षण को सामाजिक वैमनस्यता बढ़ाने वाला बताया, वहीं एससी-एसटी वर्ग के 46 फीसदी लोगों ने इससे सहमति जताई।
हालांकि, सामान्य वर्ग के महज 26 फीसदी और एससी-एसटी वर्ग के 41 फीसदी लोगों ने इससे इत्तेफाक नहीं रखा। सामान्य वर्ग के 10 फीसदी, और एससी-एसटी वर्ग के 13 फीसदी लोगों ने कोई भी मत जाहिर नहीं किया।
वहीं, क्रीमीलेयर को आगे आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं? इसके जवाब में सामान्य वर्ग के 66 फीसदी और एससी-एसटी वर्ग के 50 फीसदी लोगों ने कहा, क्रीमीलेयर को आरक्षण की जरूरत नहीं। क्रीमीलेयर को आरक्षण देने के समर्थन में एससी-एसटी तबके के 39 फीसदी और सामान्य वर्ग के महज 23 फीसदी लोग रहे। साथ ही सामान्य वर्ग में 11 फीसदी और एससी-एसटी वर्ग में 12 फीसदी लोग ऐसे रहे, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।