डाँ नीलम महेंद्र
नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद से ही देश के कुछ हिस्सों में इस कानून के विरोध के नाम पर जो हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं वो अब गंभीर चिंता ही नहीं चिंतन का भी विषय बन गए हैं. हर बीतते दिन के साथ उग्र होते जा रहे आन्दोलनों और आंदोलनकारियों के हौंसलों के आगे घायल होती पुलिस और लाचार से प्रशासन तंत्र से ना सिर्फ विपक्ष की भूमिका पर सवाल उठे बल्कि सरकार की नाकामी भी सामने आईं. विपक्ष इसलिए कठघड़े में है क्योंकि बात बात में गाँधी की विरासत पर अपना अधिकार जमाने वाला विपक्ष आज इन हिंसक आंदोलनकारियों के समर्थन में खड़ा है लेकिन उनसे अहिंसा और शांति के साथ अपनी बात रखने की समझाइश नहीं दे रहा. लोकतंत्र की दुहाई देने वाला विपक्ष जब लोकतंत्र के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाती अराजक होती भीड़ के समर्थन में उतरता है तो वो लोकतंत्र की किस परिभाषा को मानता है इसका उत्तर भी अपेक्षित है. संविधान की रक्षा की दुहाई देता विपक्ष जब नागरिकता कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाता तो है लेकिन कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना सड़कों पर उतरता है और लोगों को भृमित करने का काम करता है तो संविधान और न्यायतंत्र के प्रति उसकी आस्था पर भी उत्तर अपेक्षित हो जाता है.
सरकार की नाकामी इसलिए कि इन आंदोलनों में अब तक लगभग बीस आंदोलनकारियों की जान जा चुकी है, तीन सौ से अधिक पुलिस कर्मी घायल हो चुके हैं, रेलवे की लगभग 90 करोड़ की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है और विभिन्न राज्यों में रोज बीसियों सरकारी परिवहन की गाड़ियों से लेकर निजी वाहनों को आग के हवाले किया जा चुका है लेकिन विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा. यह विषय मौजूदा सरकार के लिए आत्ममंथन का विषय इसलिए भी है क्योंकि नागरीकता संशोधन कानून भारत में रहने वाले किसी भी भारतीय से सम्बन्ध ही नहीं रखता इसलिए इस में विवाद का कोई विषय नहीं होने के बावजूद इसे विवादित करके देश को दंगों की आग में झोंक दिया गया जबकि कुछ समय पहले ही तीन तलाक,धारा 370 और राममंदिर जैसे सालों पुराने बेहद विवादास्पद मुद्दों पर भी देश में शांति और सद्भाव कायम रहा. स्पष्ठ है कि सरकार की तैयारी अधूरी थी. वो भूल गई थी कि सदन का संचालन भले ही अंकगणित से चलता हो लेकिन देश के जनमानस का संचालन एक ऐसा रसायनशास्त्र है जहाँ कब कौन सी क्रिया किस प्रतिक्रिया को जन्म देगी यह गहन अध्ययन और अनुभव दोनों का विषय होता है. इसलिए वो राज्यसभा में अल्पमत में होने के बावजूद संसद के भीतर की फ्लोर मैनेजमेंट में भले ही सफल हो गई हो लेकिन संसद के बाहर की मैनेजमेंट में फेल हो गई.
दरअसल अपने दूसरे कार्यकाल में अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली इस सरकार के हौसले बुलंद हैं. वैसे तो अपने पिछले कार्यकाल में भी इस सरकार ने काफी बोल्ड डिसिशनस लिए थे और मोदी सरकार अपने तेज़ फैसलों एवं कठोर निर्णयों के लिए जानी भी जाती रही है. लेकिन वो भूल गई कि सरकार को अपने फैसलों पर अकेले नहीं चलना होता, उसे उन फैसलों से देश चलाना होता है और देश फैसलों से नहीं मनोविज्ञान से चलता है. इसलिए जिन फैसलों पर सरकार को लोगों के साथ कि अपेक्षा हो, उन विषयों पर उसे कोई भी कदम उठाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि सरकार भले ही तेजी से काम कर रही है और देश बदल रही है लेकिन क्या देश का जनमानस भी उतनी तेजी से बदल रहा है ? क्या देश इन परिवर्तनों के लिए तैयार है? असल में समझने वाली बात यह है कि अभी तक के सरकार के जो भी विवादित कहे जाने वाले कदम थे जैसे नोटबन्दी, तीन तलाक, धारा 370, राम मंदिर, इन सभी फैसलों पर विपक्ष ने सरकार को भले ही कितना घेरा लेकिन उसे लोगों का साथ नहीं मिला क्योंकि इन फैसलों के पीछे छुपे कारणों और उसके इतिहास से जनता वाकिफ़ थी इसलिए वो किसी के बरगलाने में नहीं आई. लेकिन नागरिकता कानून के बारे में लोग अनजान हैं. लोगों को ना तो इस कानून की जानकारी है और ना ही इसे लाने के पीछे का मकसद ज्ञात है. और जनमानस की इसी अज्ञानता का फायदा उठाया विपक्ष ने. इसे क्या कहा जाए कि कम पढ़े लिखे लोग या फिर आम आदमी तो छोड़िए पढ़े लिखे और सेलेब्रिटीज़ कहे जाने वाले लोग तक इस बिल का विरोध करने वाली भीड़ में शामिल थे लेकिन जब उनसे विरोध का कारण पूछा गया तो बगले झांकने लगे. देश के अधिकांश लोगों तक इस बिल की मूल जानकारी का अभाव और उनकी अज्ञानता ही विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार बन गया. सुप्रीम कोर्ट को भी शायद इस बात का अंदेशा था इसीलिए उसने सरकार से इस विषय में लोगों को जागरूक करने के लिए कहा था. अब सरकार ने देर से ही सही पर इस दिशा में कदम उठा लिए हैं.दिल्ली में भाजपा की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री ने नागरिकता कानून और एन आर सी पर विपक्ष को बेनकाब करते हुए देशवासियों की इन मुद्दों से सम्बंधित उनकी शंकाओं को स्वयम दूर करने की सराहनीय पहल की. इसके अलावा वो एक अभियान भी चलाने जा रही है जिसमें अगले दस दिनों में तीन करोड़ परिवारों से मिलकर उन्हें नागरीकता कानून के बारे में बताया जाएगा. लेकिन अब जब सरकार कह रही है कि उसका अगला कदम देश भर में एन आर सी को लागू करना है और विपक्ष अभी से एन आर सी पर देश में भय का माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है तो सरकार को चाहिए कि वो ना सिर्फ सी ए ए बल्कि एन आर सी पर भी अभी से लोगों को जागरूक करे ताकि उनकी अज्ञानता का लाभ भविष्य में विपक्ष ना उठा सके
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