भोपाल। पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण पर मान सर्वोच्च न्यायालय में संविधान पीठ ने आज 10.30 बजे पुन: सुनवाई प्रारंभ की। आज प्रतिवादी पक्ष की ओर से श्री राजीव धवन जी ने पक्ष रखा। श्री धवन ने पीठ को अवगत कराया कि सामान्य अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग और नौकरीपेशा अनुसूचित जाति/ जनजाति के व्यक्तियों की तुलना नहीं हो सकती। दोनों अपने आप में अलग श्रेणी हैं।
नौकरीपेशा अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग का व्यक्ति स्वयं को मात्र इसलिए पिछड़ा नहीं मान सकता क्योंकि वह इस वर्ग से आता है। नौकरी में आने तक वह इस वर्ग के निहित लाभों को प्राप्त करने के बाद अन्य वर्गों के साथ समान हो जाता है। अत: पदोन्नति हेतु एम नागराज में निर्धारित पिछड़ेपन की शर्त की पूर्ति होने पर ही उसे अन्यथा लाभ मिल सकते हैं। कोई शासकीय कर्मी सामाजिक विसंगतियों मात्र को अपने लिए आधार बनाकर यह लाभ नहीं ले सकता।
अत: किसी वर्ग-2 अथवा वर्ग-1 का अधिकारी उनके वर्ग के साधारण अन्य व्यक्तियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार अथवा भेदभाव को अपने हित में उपयोग नहीं कर सकता। यह संविधान की धारा 14, 15 और 16 में वर्णित समानता के मौलिक अधिकार का उल्लघंन है। पदोन्नति में लाभ पाने वाला व्यक्ति विशेष है न कि वह समाज जिसका वह भाग है।
श्री धवन के बाद श्री राकेश द्विवेदी ने प्रतिवादियों का पक्ष रखा और स्पष्ट किया कि धारा 16(4a) में स्वत: पिछड़ेपन को पर्याप्त प्रतनिधित्व से जोड़ा गया है अत: यह तर्क कि अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग की भांति पिछड़ेपन का परीक्षण आवश्यक नहीं है, गलत है। कल दिनांक ३०.८.२०१८ को भी प्रकरण की सुनवाई जारी रहेगी।
