भोपाल। ओबीसी आरक्षण के मामले में कमलनाथ सरकार ने हाईकोर्ट में पूरी ताकत के साथ केस लड़ने की तैयारी कर ली है। मामले का फैसला चाहे जो भी हो परंतु सरकार की कोशिश है कि पिछड़ा वर्ग में एक संदेश स्पष्ट रूप से जाना चाहिए कि सरकार ने उनके हितों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। गुरुवार को हाईकोर्ट में अपना जवाब पेश करते हुए कमलनाथ सरकार ने कहा कि ” संविधान में आरक्षण की कोई लिमिट फिक्स नहीं है, सरकार जितना चाहे आरक्षण दे सकती है।”
ओबीसी आरक्षण: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में कार्यवाही का संक्षिप्त विवरण
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने पिछड़ा वर्ग आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया है। इस तरह कमलनाथ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन कर दिया जिसमें बताया गया है कि ” जातिगत आधार पर आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती।” कमलनाथ सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में 13 याचिका दाखिल की गई हैं। मामले में गुरुवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।
हाईकोर्ट ने पूछा: मध्य प्रदेश में OBC आबादी की डिटेल रिपोर्ट पेश करें
इस दौरान चीफ जस्टिस एके मित्तल और जस्टिस विजय शुक्ला की पीठ ने सरकार से पूछ लिया कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की कितनी आबादी है? उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है? शासकीय नौकरियों में इस वर्ग का कितना प्रतिनिधित्व है? इस पर सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता शशांक शेखर ने कहा- इस वक्त ये आंकड़े मौजूद नहीं हैं। कोर्ट ने कहा- ये सभी आंकड़े आप कोर्ट में पेश करें। इसके बाद कोई भी दस्तावेज स्वीकार नहीं किया जाएगा। 28 अप्रैल से मामले की नियमित सुनवाई होगी। तब तक प्रदेश में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने पर पूर्व में लगाई गई रोक जारी रहेगी।
MPPSC भर्ती में हाई कोर्ट का स्टे जारी रहेगा
ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी करने के फैसले के खिलाफ 13 याचिकाएं हाईकोर्ट में लगाई गई हैं। गुरुवार को इन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई नहीं हो पाई। इसलिए अंतिम सुनवाई तक हाईकोर्ट द्वारा 28 जनवरी का वो आदेश भी यथावत रहेगा, जिसमें पीएससी परीक्षा के उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया जारी रखने, लेकिन कोर्ट की इजाजत के बिना न तो उसे अंतिम रूप नहीं दिए जाने और नियुक्तियां नहीं करने कहा गया था। हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2019 को चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में होने वाले दाखिलों में ओबीसी वर्ग को 27 के बजाय 14 प्रतिशत आरक्षण देने का अंतरिम आदेश दिया था।
13 याचिकाओं में एक ही मांग फैसला असंवैधानिक, वापस हो
प्रदेश में अभी एससी को 16%, एसटी को 20%, आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को 10% और ओबीसी को 27% आरक्षण का प्रावधान है। इस हिसाब से यहां कुल 73 फीसदी आरक्षण लागू है। फैसले के विरोध में दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि 73 फीसदी आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के 1995 के फैसले के खिलाफ है। तब कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी भी परिस्थिति में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। इसलिए 27 फीसदी आरक्षण का फैसला वापस हो।
27% ओबीसी आरक्षण का नियम पूरी तरह संवैधानिक: कमलनाथ सरकार
वहीं सरकार की दलील है कि संविधान के किसी अनुच्छेद में आरक्षण की अधिकतम सीमा के संबंध में कोई नियम नहीं हैं। मध्यप्रदेश में एससी/एसटी/ओबीसी की जनसंख्या 87 प्रतिशत है। अकेले ओबीसी की जनसंख्या 52 प्रतिशत है, इसलिए प्रतिनिधित्व के आधार पर ओबीसी को अधिक आरक्षण दिया जाना पूरी तरह संवैधानिक है।