Breaking News

कर्नाटक का सियासी नाटक जल्द मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी दिखेगा?


जिस दिन लोकसभा चुनाव के नतीजे आए और बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला, उन्हीं नतीजों के साथ-साथ यह चर्चा भी शुरू हो गई थी कि अब राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक की सरकारों को अस्थिर करने की कोशिशें की जाएंगी.
कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस का जो गठबंधन हुआ था, वो उसे रास नहीं आया था और इस गठबंधन में कुछ खटास भी उभर कर सामने आईं थीं, इसलिए इसका फ़ायदा उठा कर बीजेपी यहां की सरकार गिराने की तिकड़म में पहले से भी लगी हुई थी.
छत्तीसगढ़ बीजेपी के इस चाल से इसलिए अछूता है क्योंकि यहां कांग्रेस को दो-तिहाई से भी ज़्यादा बहुमत हासिल है.
राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच करीब-करीब कांटे की टक्कर थी, इसलिए यहां की सरकारें बनाने-बिगाड़ने की गुंजाइश बीजेपी को दिखी.
इस बार के लोकसभा चुनाव ने बीजेपी का मनोबल और बढ़ा दिया और सिर्फ़ मध्य प्रदेश और राजस्थान ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल पर भी पार्टी की नज़र हैलोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहा था कि तृणमूल कांग्रेस के 40 विधायक हमारे संपर्क में हैं. और चुनाव के बाद 40 में से सभी तो नहीं, लेकिन कुछ विधायकों ने बीजेपी की ओर रुख किया.वहीं बंगाल में बड़ी संख्या में पार्षदों ने तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा है.गोवा का बिल्कुल ताज़ा मामला सामने आ रहा है, जहां बीजेपी विधायकों की संख्या कांग्रेस से कम थी और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद कांग्रेस ने थोड़ी बहुत कोशिश की कि वो विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर पाए, लेकिन असफल रही.अब गोवा में पार्टी कांग्रेसी विधायकों को साधने में लगी है ताकि सरकार गिरने का ख़तरा हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए.

Image copyrightमंखन न्यूजनरेंद्र मोदी

स्थिति और चाल

भारतीय लोकतंत्र और राजनीति में यह भी अद्भुत है कि राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्षों का इस्तेमाल राजनीतिक ढंग से होने लगा है क्योंकि हमारा संविधान ऐसी स्थितियों के लिए बहुत ही स्पष्ट निर्देश नहीं देता और वो इसे उनके विवेक पर छोड़ देता है.कभी-कभी विधानसभा अध्यक्ष अगर विपक्षी पार्टी का है तो सत्तारूढ़ पार्टी के मामले में उसके विवेक में फर्क दिखता है. इसी तरह राज्यपाल के विवेक में भी फ़र्क आ जाता है.कर्नाटक में चूकि विधानसभा अध्यक्ष वर्तमान गठबंधन से है तो उसने इस्तीफों पर तकनीकी पेंच फंसा दिया है कि ये इस्तीफे उनसे मिल कर नहीं दिए गए हैं.इसलिए लोग उनसे मिलें और इस्तीफा दें और यह पता लगाना उनका धर्म है कि इस्तीफे किसी दबाव में नहीं दिए गए हैं. इस स्थिति में सरकार को थोड़ा वक़्त मिल गया है.गठबंधन में दोनों पार्टियां शामिल ज़रूर हैं लेकिन दोने के बीच के खटास समय-समय देखने को ज़रूर मिले हैं. कांग्रेस के पास विधायकों की संख्या अधिक है और उसके अंदर का एक वर्ग नहीं चाहता था कि मुख्यमंत्री जेडीएस का हो.इसी का लाभ बीजेपी वहां उठाने की कोशिश कर रही है.

Image copyrightमंथन न्यूजइंदिरा गांधी अटल बिहारी

क्या यह पहली बार ऐसा हो रहा है?

अल्पमत और नाजुक संतुलन पट्टी की सरकारों को अस्थिर करने का राजनीतिक खेल कोई नया नहीं है. कांग्रेस के जमाने में भी यह बहुत हुआ है.इंदिरा गांधी की सरकार के वक़्त बहुत से राज्य सरकारों को गिराया गया और राज्यपालों को रातों-रात बदला गया. लेकिन 2014 में जब बीजेपी केंद्र की सत्ता में आई तो उसने इस खेल को और आक्रामक रूप से खेलना शुरू कर दिया.याद कीजिए अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड का किस्सा. उत्तराखंड में तो ऐसा हुआ कि कांग्रेस की हरीश रावत की सरकार के पास बहुमत था, लेकिन उनको अपदस्थ कर दिया गया. अगर न्यायालय ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो सरकार वापस नहीं लौट पाती.थोड़ा और पीछे चलते हैं. जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार केंद्र में थी तो बिहार में राबड़ी देवी की सरकार को अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करके गिराया गया था, जिसके बाद काफी हंगामा मचा था और राबड़ी देवी की सरकार फिर से बहाल हुई थी.

Image copyrightमंथन न्यूजकर्नाटक

विधायक बागी क्यों होते हैं

कर्नाटक में जिन विधायकों के इस्तीफे की बात सामने आई है वो पार्टी के साथ विचारधार के आधार पर जुड़े थे, ऐसा पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है.पश्चिम बंगाल में तृणमूल के नेता जो बीजेपी का हाथ थाम रहे हैं, ऐसा नहीं है कि उन्हें उनकी विचारधार से प्यार हो गया है और तृणमूल कांग्रेस से उनका वैचारिक मतभेद हो गया है.राज्यों और विधानसभाओं में लगभग सभी दलों के पास आपराधिक चरित्र के ऐसे विधायक हैं जिनके ख़िलाफ़ कुछ मामले हैं, सीबीआई, स्थानीय पुलिस या आर्थिक अपराध शाखा की जांच उनके ख़िलाफ़ चल रही हैं.ऐसे विधायक जब विपक्ष में होते हैं तो उन पर यह ख़तरा मंडरा रहा होता है कि विरोधी दल की सरकार उन्हें कहीं जेल में न डाल दे, उनकी सदस्यता खतरे में न पड़ जाए.इसलिए ऐसे विधायक हमेशा सत्तारूढ़ दल की तरफ भागने की कोशिश करते हैं. ऐसा पश्चिम बंगाल में हम देख रहे हैं, कर्नाटक में भी ऐसा देखा जा रहा है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी इसकी संभावनाएं बराबर बनी हुई हैं.

Image copyrightमंथन न्यूजकमलनाथ

Image captionकमलनाथ बीजेपी की केंद्र सरकार ने कमलनाथ के ख़िलाफ़ 1984 के सिख नरसंहार के मामले खोलने की बात की है. इतना ही नहीं पार्टी उनके ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति का कोई पुराना मामला भी खोलने की बात कर रही है.ऐसा उसने बिहार में लालू यादव के साथ किया, ऐसा उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और मायावती के साथ करने की कोशिश की गई.सपा-बसपा का जब गठबंधन हो रहा था तब बार-बार यह बात सामने आ रही थी कि मायावती के ख़िलाफ़ कभी भी सीबीआई शिकंजा कस सकती है. अखिलेश यादव की सरकार के दौरान किए गए कामों में घपलों का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग की गई थी.यह बीजेपी की रणनीति है कि विभिन्न विपक्षी दलों की राज्यों में जो अल्पमत या नाजुक संतुलन पर टिकी सरकारें हैं, उन्हें अस्थिर करने की कोशिश की जाए.कल को अगर कर्नाटक का नाटक मध्य प्रदेश और राजस्थान में दोहराया जाया जाने लगेगा तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा, बल्कि तमाम राजनीतिक पर्यवेक्षक और कांग्रेस के नेता यह खुद मान कर चल रहे हैं कि यह नाटक अन्य राज्यों में होना ही है.

Image copyrightमंथन न्यूजअमित शाह

अमित शाह फैक्टर

इन सब के पीछे एक और घटनाक्रम को जोड़े जाने की ज़रूरत दिखती है और वो है अमित शाह का अध्यक्ष पद पर बने रहना और भाजपा का नया कार्यकारी अध्यक्ष चुना जाना.अमित शाह एक चतुर रणनीतिकार हैं. एक-एक कार्यकर्ता से उनके संपर्क हैं और गुजरात से उन्होंने उठा पटक की राजनीति का जो पाठ सीखा है, उसमें वो माहिर हैं.अगर कोई नया अध्यक्ष आता है तो उसे अपना संपर्क बनाने और अपनी जड़े फैलाने में वक़्त लगेगा, अमित शाह के पास वो पहले से मौजूद है और उनके जो प्रयोग हैं वो कई बार सफल होते दिखे हैं.जैसे नरेंद्र मोदी को अजेय नेता के रूप में देखा जाता है, वैसे ही चुनाव जीतने, सरकारों को गिराने और अल्पमत में रहते हुए भी सरकार बनाने की रणनीति में अमित शाह की महारथ साबित हुई है, इसलिए उन्हें अध्यक्ष पद पर बरकरार रखा गया है.अब आने वाले समय में देखना होगा कि कर्नाटक की सरकार बचती है या बिगड़ती है और मध्य प्रदेश-राजस्थान में भाजपा की रणनीति कहां तक सफल हो पाती है.

Check Also

गुना संसदीय क्षेत्र की जनता के लिये प्रतिदिन, गुना से शिवपुरी होते हुए ग्वालियर तक रेलगाडी चलाने को लेकर की मांग*

🔊 Listen to this *गुना संसदीय क्षेत्र की जनता के लिये प्रतिदिन, गुना से शिवपुरी …