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आरक्षण का दशकों से जिन्‍हें मिल रहा लाभ अब आगे मिलना उचित नहीं

नई दिल्‍ली- सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण से संबंधित दिए गए हालिया फैसले से एक बार फिर देश में इस विषय पर चर्चा शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आंध्र प्रदेश सरकार के उस फैसले को निरस्त करते हुए आरक्षण के संबंध में कई बातें कही हैं जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति को शत-प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई थी। कोर्ट ने कहा है कि जो आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़ गए हैं उन्हें लगातार आरक्षण का लाभ देना उचित नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने की केवल समीक्षा

सुप्रीम कोर्ट द्वारा कही गई बातों का अर्थ कुछ लोग आरक्षण के खात्मे या उसके औचित्य से लगा रहे हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट की ये बातें आरक्षण की समीक्षा से संबंधित हैं। आरक्षित समूहों में ही कुछ लोग ऐसे हैं जो दशकों से इसका लाभ ले रहे हैं। ऐसे लोगों का प्रयास आरक्षण को एक ऐसे पवित्र गाय की तरह बना देने का है जिसके बारे में कोई बात करना मतलब उसे खत्म करना है। उन्हें आरक्षण की समीक्षा से जुड़ी कोई भी बात अपने हितों पर कुठाराघात की तरह लगती है और वे अपने हित को समाज हित से जोड़ देते हैं।

भावुक मुद्दा बन गया आरक्षण

खुद आरक्षित समूहों के भीतर एक बड़ा समूह ऐसा है जो इस व्यवस्था में खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है, लेकिन कोई भी उनकी बातें सुनने को तैयार नहीं है। अपने देश में आरक्षण एक भावुक मुद्दा बन गया है। आरक्षण की मांग यह दर्शाती है कि सरकारी नौकरियों की तरफ लोग कितनी अधिक आशा भरी निगाह से देख रहे हैं। जब भी किसी आरक्षित वर्ग के अंदर के समूहों को आरक्षण का लाभ दिलाने के लिए किसी समीक्षा की बात होती है तो इसी के संपन्न समूह विरोध में झंडा उठा लेते हैं। वर्ष 1990 के मंडल विरोधी आंदोलन की भयावहता हमें याद है। वहीं अभी कुछ दिनों पहले जब मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णो को आरक्षण देने की घोषणा की तो कुछ गैर-सवर्ण जातियों ने विरोध किया। ओबीसी आरक्षण का विरोध यह कहकर किया गया कि इससे ‘मेरिट’ प्रभावित होगी तो आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णो के आरक्षण का विरोध यह कहकर किया जा रहा है कि इस तरह का कोई भी प्रावधान संविधान में नहीं है। विरोध चाहे जिस नाम पर हो, उसके मूल में यही भावना है कि आरक्षण का लाभ केवल मुझे मिले, दूसरे समूहों को नहीं।

आरक्षित श्रेणियों के अंदर भी सुगबुगाहटें

अब आरक्षित श्रेणियों के अंदर भी आरक्षण को लेकर कई तरह की सुगबुगाहटें हैं जिसकी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने इशारा किया है। कोर्ट ने सरकार से आरक्षित श्रेणी के अंदर की सुगबुगाहटों को सुनने और उसे समझने के लिए कहा है। विडंबना यह भी है कि सरकारों ने अब तक यह जानने की भी कोई कोशिश नहीं की है कि आरक्षण का लाभ संबंधित वर्ग को मिल भी रहा है या नहीं। सरकारों ने यह भी जानने का प्रयास नहीं किया कि आरक्षण का लाभ कौन लोग ले रहे हैं। जबकि अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गो के अंदर यह बहस आम हो गई है कि इन वर्गो के भीतर ही जो आर्थिक रूप से मजबूत जातियां हैं वे आरक्षण का पूरा लाभ हड़प जा रही हैं। अनुसूचित जाति, जनजाति आरक्षण के 70 वर्षो और ओबीसी आरक्षण के 27 वर्षो के बाद इन वर्गो के अंदर एक ऐसा क्रीमीलेयर पैदा हो गया है जो आरक्षण के लाभ को अपने ही समूह में नीचे तक पहुंचने नहीं दे रहा है।

ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर

ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर का प्रावधान तो लागू है, लेकिन इसके अंदर अत्यंत पिछड़ा वर्ग की बड़ी आबादी वाले समूह की स्थिति बहुत खराब है। अनुसूचित जाति और जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर से संबंधित कोई भी प्रावधान अभी तक लागू नहीं हो पाया है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है जो आरक्षण की मूल भावना के भी खिलाफ है कि एक ही परिवार में कई बड़े अधिकारी बन जा रहे हैं, लेकिन उसी समाज का सबसे निचला हिस्सा शिक्षा के लिए न्यूनतम अवसरों से भी वंचित रह जा रहा है। वर्तमान में आरक्षण प्राप्त जातियों के बीच भी वर्ग भेद पैदा हो गया है। आरक्षण के लाभ से अब तक वंचित परिवारों के लोग कहने लगे हैं कि जिन्हें एक बार आरक्षण का लाभ मिल चुका है, उन्हें बार-बार क्यों मिल रहा है?

आरक्षण पर सौहार्दपूर्ण माहौल में करें बात

हालांकि इन सभी बातों के समर्थन में हमारे पास आंकड़ों का अभाव है। आरक्षित समूहों के लोग भी बार-बार यह कहते हैं कि उन्हें आरक्षण का लाभ मिला ही नहीं, क्योंकि अब तक इसे ठीक से लागू ही नहीं किया जा सका है, लेकिन क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि आरक्षित समूहों को आरक्षण का जो भी लाभ मिला उसे उसी समूह के कुछ संपन्न परिवारों ने हड़प लिया। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के कथन को आरक्षण से संबंधित इन्हीं सभी सवालों के जवाब खोजने की कोशिश के संदर्भ में देखना चाहिए। सरकार को चाहिए कि आरक्षण पर सौहार्दपूर्ण माहौल में बात करे, उसकी समीक्षा करे ताकि आरक्षित समूहों के अंदर के पिछड़े समूहों की स्थिति का सही आकलन हो सके।

अब समय आ गया है कि आरक्षण के समस्त पहलुओं की समीक्षा की जाए ताकि इसमें व्याप्त विसंगतियों को दूर किया जा सके और अधिक से अधिक जरूरतमदों को इसके दायरे में लाया जा सके।

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