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बड़ी विडंबना है मेरे बैवस देश की, भाषण वीरों से पटा लोकतंत्र*

*कत्र्तव्य बोध कराते, कत्र्तव्य विमुख शासक व स्वार्थवत सत्तायें*
*बड़ी विडंबना है मेरे बैवस देश की, भाषण वीरों से पटा लोकतंत्र*
*ज्ञान-विज्ञान बांटने में जुटे, संवैधानिक पदों पर बैठे, जबावदेह लोग*
*व्ही.एस.भुल्ले*
*विलेज टाइम्स समाचार सेवा।*
युवा देश का झुनझुना लिए देश के युवाओं को विगत दो दशक से कत्र्तव्य बोध कराते, कत्र्तव्य विमुख शासक व स्वार्थवत सत्तायें अपनी संवैधानिक शपथ और दायित्व भूल इस तरह से भाषण वीरों की टोली में तब्दील हो जाएंगीं किसी ने सपने में भी न सोचा होगा। मगर मेरे देश की विडंबना और वैवसी ऐसी है कि यह सब कुछ जानते बूझते स्वयं के निष्ठा पूर्ण कत्र्तव्य निर्वहन चुनाव के समय वोट और समय से टेक्स के रुप में नोट देने के बावजूद भी समृद्ध, खुशहाल जीवन तो दूर की कोणी प्रकृति प्रदत्त नैसर्गिक सुविधा हासिल करने के लिए भी भीषण संघर्ष अपनो के ही रहते अपनो के बीच करना पड़ रहा है।
सबसे बड़ा दुर्भाग्य और बिडंबना तो यह है कि जिन लोगों या लोकतांत्रिक संस्थाओं के पास आम जन के या समुचे भूभाग के सर्वाधिकार सुरक्षित है और जिन्हें अपनी संवैधानिक शपथ अनुसार अपनी जबावदेही निष्ठा पूर्ण कत्र्तव्य निर्वहन के साथ पूर्ण करना चाहिए। वह संवैधानिक पदों पर बैठ अपने कत्र्तव्यों से विमुख कलफदार कुर्ता-पजामा पहन सुबह से ही हेलिकॉप्टर, हवाई-जहाज, आलीशान करोड़ों के रथ व लग्झरी वाहनों में बैठ जनधन से जुटाई गई भीड़ के बीच ज्ञान-विज्ञान सहित भाषण परोसने पहुंच जाते है। वैवस जनमानस के पास सिवाये इनके भाषण ज्ञान-विज्ञान को सुनने के अलावा कोई चारा नहीं। लगभग 35 करोड़ के आसपास गरीबी रेखा से नीचे जीवन निर्वहन व 80 करोड़ से अधिक सस्ते राशन के मोहताज तथा 50 करोड़ से अधिक स्वास्थ्य बीमा के हकदार लोगों के देश में 50 फीसदी से अधिक माता-बहिनें अल्प रक्त जैसी बीमारी तथा करोड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार है।
जिस विज्ञान, तकनीक की डीगे मारते हमारे कलफदार कुर्ता-पजामा पहन विकास का ककहरा सुनाने वाले भाषण वीर उपलब्धियां गिनाने से नहीं थकते। उन्हीं के रहते कहीं मल्टी स्टोरी, बिल्डिंग तो कहीं पुलों के सिलेव ताश के पत्तों की तरह धरासायी होते नजर आते है। जरा-सी बारिश में सड़कों पर कटाव और जल सैलाब के चलते नहर, तालाबों में तब्दील नगर, शहर, गांव, गली और रोड़ पर मौजूद गड्डों के चलते होने वाले एक्सीडेंटों में मरते लाखों लोग इस बात के प्रमाण है कि राज्य या देश को भाषण नहीं निष्ठा पूर्ण किए गए कार्यो की जरुरत है। जरुरत उस मूल्यांकन की है जिसके लिए संवैधानिक शपथ लेकर आप जिस संवैधानिक पद की जबावदेही निष्ठा पूर्ण निर्वहन के लिए बाध्य है और नागरिक होने के नाते आपका कत्र्तव्य भी।
जिन राज्यों या जिस देश की सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी देश में घटती बलात्कार की घटनाओं को लेकर सख्त हो। जिस राष्ट्र में प्रतिवर्ष बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का आंकड़ा 38 हजार के करीब हो और म.प्र. जैसा प्रदेश पहले पायदान पर तो उत्तरप्रदेश दूसरे पायदान पर हो। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे आजाद भारत में माता-बहिनों के आबरु की सुरक्षा का पैमाना क्या है।
जिस व्यवस्था में बगैर लेन-देन के कोई भी कार्य यथा संभव न हो। जिस राज्य में प्यून से लेकर बाबू और अधिकारी से लेकर सर्वोच्च नौकरशाहों के यहां इनकम टेक्स, सीबीआई, लोकायुक्त के छापो में करोड़ों, अरबों की वैध-अवैध संपत्ति मिलती हो तथा अरबों के घपले-घोटालों पर चर्चा न होती हो जहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था में रोजगार उन्मुख संस्थानों का अघोषित केन्द्रीयकरण कर, भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के नाम बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार मौजूद हो तथा युवा स्वयं या सार्वजनिक रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरे खाने पर मजबूर हो। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि संवैधानिक पदों की शपथ लें, संवैधानिक पदों पर बैठ कितनी निष्ठा और ईमानदारी के साथ कत्र्तव्यों का निर्वहन सिवायें भाषणों को छोड़ किया जा रहा है।
सेवा के नाम लुटता जनधन इस बात का प्रमाण है कि स्वार्थवत सत्ताओं को राज्य, राष्ट्र जनकल्याण और स्वयं के कत्र्तव्य निर्वहन से अधिक सत्ता महत्वपूर्ण है। जिसके लिए जिसकी जैसी मांग उसकी हैसियत के हिसाब से योजनाऐं व उन्हें आर्थिक लाभ व्यवस्था केे नाम और सेवा कल्याण के नाम दिया जा रहा है। जो किसी भी सभ्य समाज तथा स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए दर्दनाक भी है और शर्मनाक भी।
मगर यहां समझने वाली बात यह है कि कहते है जिस राज्य और राष्ट्र का युवा वर्ग स्वयं में लीन बुजुर्ग बैवस और बच्चे नैतिक संस्कारों के मोहताज हो राजनैतिक चेतना से अनभिज्ञ हो। वहां स्वार्थवत सत्तायें सेवा कल्याण के नाम इसी तरह लोकतांत्रिक व्यवस्था का दुरुपयोग कर स्वयं कल्याण में जुटी रहती है। अगर राज्य या देश के युवा स्वयं से बाहर और व्हाटसअप, फैसबुक तथा सपनों की दुनिया से बाहर निकल सच्चे मन से चेतन्य भाव से स्वयं परिवार, समाज, राज्य व राष्ट्र के बारे में सोचेगें और गिरोह बंद हो चुके दल, संस्थाओं से इतर उन संस्थाओं में पहुंचने अपना मार्ग स्वयं प्रस्त करेगें जहां कानून बनते है और लोगों के भाग्य का फैसला होता है। तभी हम सच्चे और अच्दे आजाद देश के सर्वकल्याणकारी सोच के नागरिक और नस्ल कहे जायेगें। क्योंकि हमारी कई पीढिय़ां यू ही आजाद भारत में अपने अधूरे सपने और संघर्ष पूर्ण जीवन से विदा ले, अपने जिगर से प्यारे हम लोगों को संघर्षरत छोड़ इस दुनिया से जा चुकी है। अब विचार हमें करना है कि हमारा भविष्य झूठे कभी न पूर्ण होने वाले सपनों और भाषण वीरों की बिना पर सुरक्षित करना है या स्वयं के पुरुषार्थ से सिद्ध करना है।
जय स्वराज

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