भोपाल. भारतीय जनता पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई पर ब्राह्मणों और क्षत्रियों का कब्जा है। जिला अध्यक्षों में भी क्षत्रीय, बनिया और ब्राह्मण ज्यादा हैं। पार्टी ने अपने तमाम दावों के बावजूद अनुसूचित जाति और जनजाति को नाममात्र का प्रतिनिधित्व दिया है। वहीं, प्रदेश पदाधिकारियों से लेकर जिला अध्यक्ष तक एक भी कुर्सी मुस्लिम नेता को नहीं दी गई है। भाजपा में पूरे देश में यही ट्रेंड है।
देशभर में पार्टी के पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों में से 66 फीसदी पदों पर अगड़ी जातियों का कब्जा है। 38 साल पुरानी पार्टी पर बनिया-ब्राह्मण पार्टी का टैग अब भी बरकरार है। जबकि, मोदी-शाह की जोड़ी लगातार सोशल इंजीनियरिंग के जरिए चुनाव जीतने के दावे कर रही है।
60 फीसदी पदों पर अगड़ों का कब्जा
मध्यप्रदेश में प्रदेश पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों के पदों में से 60 फीसदी पर क्षत्रिय, ब्राह्मण और बनिया काबिज हैं। इसमें भी एक चौथाई पर सिर्फ क्षत्रिय हैं। बाकी 40 फीसदी में प्रदेश की 87 फीसदी आबादी को संतोष करना पड़ रहा है, जिसमें ओबीसी, एससी-एसटी और अल्पसंख्यक आते हैं। प्रदेश पदाधिकारियों की बात करें तो 30 पदों में से आठ पर क्षत्रिय, छह पर ब्राह्मण और तीन पर वैश्य-जैन हंै। ओबीसी प्रदेश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें पार्टी ने प्रदेश पदाधिकारियों की टीम में महज आठ पद दिए हैं। सबसे खराब हालत एससी-एसटी की है। इस टीम में सिर्फ दो एससी और तीन एसटी के पदाधिकारी हैं। इसी तरह जिला अध्यक्षों के 56 पदों में से 14 पर क्षत्रिय, 11 पर वैश्य-जैन और 10 पर ब्राह्मणों का कब्जा है।
मध्यप्रदेश में प्रदेश पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों के पदों में से 60 फीसदी पर क्षत्रिय, ब्राह्मण और बनिया काबिज हैं। इसमें भी एक चौथाई पर सिर्फ क्षत्रिय हैं। बाकी 40 फीसदी में प्रदेश की 87 फीसदी आबादी को संतोष करना पड़ रहा है, जिसमें ओबीसी, एससी-एसटी और अल्पसंख्यक आते हैं। प्रदेश पदाधिकारियों की बात करें तो 30 पदों में से आठ पर क्षत्रिय, छह पर ब्राह्मण और तीन पर वैश्य-जैन हंै। ओबीसी प्रदेश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें पार्टी ने प्रदेश पदाधिकारियों की टीम में महज आठ पद दिए हैं। सबसे खराब हालत एससी-एसटी की है। इस टीम में सिर्फ दो एससी और तीन एसटी के पदाधिकारी हैं। इसी तरह जिला अध्यक्षों के 56 पदों में से 14 पर क्षत्रिय, 11 पर वैश्य-जैन और 10 पर ब्राह्मणों का कब्जा है।
मुस्लिम एक भी नहीं, एक सिख-दो सिंधी
भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों में एक भी मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं है। जबकि, प्रदेश की 6.57 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। शहडोल जिले के अध्यक्ष की कमान सिख धर्म के इंद्रजीत ङ्क्षसह छाबड़ा को दी गई है। उधर, प्रदेश पदाधिकारियों में तो सिंधी समाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, लेकिन प्रदेश के दो जिलों कटनी और बालाघाट में सिंधी जिला अध्यक्ष हैं।
भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों में एक भी मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं है। जबकि, प्रदेश की 6.57 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। शहडोल जिले के अध्यक्ष की कमान सिख धर्म के इंद्रजीत ङ्क्षसह छाबड़ा को दी गई है। उधर, प्रदेश पदाधिकारियों में तो सिंधी समाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, लेकिन प्रदेश के दो जिलों कटनी और बालाघाट में सिंधी जिला अध्यक्ष हैं।
एससी-एसटी अध्यक्ष इतिहास की बात
मध्यप्रदेश में एससी-एसटी वर्ग को प्रमुख पदों पर बैठाने की मांग हमेशा से उठती रही है, लेकिन मध्यप्रदेश में भाजपा संगठन सिर्फ दावों तक सीमित है। अनुसूचित जनजाति वर्ग से नंदकुमार साय 18 साल पहले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। साय 1997 से 2000 तक अध्यक्ष रहे। वहीं, अनुसूचित जाति वर्ग से आखिरी अध्यक्ष 12 साल पहले सत्यनारायण जटिया बने थे। जटिया को भाजपा ने सिर्फ नौ माह तक अध्यक्ष रखा। वे 27 फरवरी 2006 से 21 नवंबर 2006 तक ही अध्यक्ष रहे।
मध्यप्रदेश में एससी-एसटी वर्ग को प्रमुख पदों पर बैठाने की मांग हमेशा से उठती रही है, लेकिन मध्यप्रदेश में भाजपा संगठन सिर्फ दावों तक सीमित है। अनुसूचित जनजाति वर्ग से नंदकुमार साय 18 साल पहले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। साय 1997 से 2000 तक अध्यक्ष रहे। वहीं, अनुसूचित जाति वर्ग से आखिरी अध्यक्ष 12 साल पहले सत्यनारायण जटिया बने थे। जटिया को भाजपा ने सिर्फ नौ माह तक अध्यक्ष रखा। वे 27 फरवरी 2006 से 21 नवंबर 2006 तक ही अध्यक्ष रहे।
भाजपा ने हर वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया है। पिछड़ा, एससी और एसटी वर्ग के प्रदेशस्तर से लेकर मंडल स्तर तक मोर्चे गठित हैं। इनके प्रदेश अध्यक्ष भी प्रदेश पदाधिकारी के बराबर का दर्जा रखते हैं।
– राकेश सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा
– राकेश सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा